Book Title: Surajprakas Part 03
Author(s): Sitaram Lalas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 461
________________ ७क ७घ Jain Education International ककुत्स्थ (पुरंजय) मिथि (जनक) विश ऊरुश्रवा अनेनाः उदावसु विविंश देवदत्त अग्निवेश्य या कानीन पृथु नन्दिवर्धन खनीनेत्र विश्वगश्व (विश्राश्व-विश्वगन्धि) सुकेतु करंधम जातूकण्य आद्र देवरात अविक्षित बृहदुक्थ (वृहद्रथ) मरुत्त (चक्रवर्ती) For Private & Personal Use Only युवनाश्व (प्रथम) शावस्त (श्रावस्त) [ १० ] महावीर्य नरिष्यंत बृहदश्व धतिमंत दम कुवलयाश्व (धुंधुमार) सुधति राष्ट्रवर्धन (राज्यवर्धन) धृष्टकेतु सुधृति ७क(१) कपिलाश्व क(२) भद्राश्व ७क (३) दृढ़ाश्व हर्यश्व नर प्रमोद --- केवल हर्यश्व (प्रथम) www.jainelibrary.org * इन्होंने एक हजार सांवत्सरिक सत्र किये थे । * श्रावस्ती नगरी बसाई।

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