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[ ७४ ] थी, निर्धनता के कारण इसका पालन-पोषण बड़ी कठिनता से किया। बगड़ी ठाकुर प्रतापसिंह सूंडा द्वारा इसका पालन-पोषण व शिक्षा-दीक्षा हुई । इसी का एक दोहा निम्न है----
माथै मावीतांह, जनम तणौ क्यावर जितौ।
'सूडौं' सुध पाताह, पाळणहार प्रतापसी ।। इसको बीकानेर के राजा रायसिंह द्वारा चार गांव, एक करोड़ का पुरस्कार और एक हाथी प्राप्त हुआ था। काव्य रचना के फलस्वरूप दुरसा को धन, यश एवं सम्मान बहुत प्राप्त हुआ। अकबर के दरबार में भी इसकी बहुत प्रतिष्ठा थी। इसके रचित ग्रंथों में 'विरुद छिहत्तरी, किरतार बावनी, श्री कुमार अजाजीनी भूचरमोरी नी गजगत' प्रसिद्ध हैं। यह हिन्दू धर्म, हिन्दू जाति और हिन्दू संस्कृति का अनन्य उपासक था। राजस्थानी साहित्य में दुरसा का स्थान बहुत ऊँचा है।
नरहरदास (नरहरिदास) यह रोहड़िया गोत्र के चारण लक्खा का पुत्र था। इसका जन्म वि० संवत् १६०० के उत्तरार्द्ध में हुआ था। अठारहवीं शताब्दी के प्रारम्भिक काल के भक्त कवियों में इसका नाम उल्लेखनीय है । इसका लिखा हुअा 'अवतार चरित्र' एक प्रसिद्ध ग्रंथ है। इसके अतिरिक्त कवि की राजस्थानी मुक्तक रचनायें भी उपलब्ध हैं। 'अमरसिंह रा दूहा' और अनेक फुटकर गीत इसकी काव्य-प्रतिभा का प्रमारण देने में पूर्ण समर्थ हैं । भक्ति इसका मुख्य विषय था।
मल्लिनाथ प्रसिद्ध टीकाकार मल्लिनाथ का समय ई० की १४वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध माना गया है। इसका पूरा नाम 'कोलाचल मल्लिनाथ सूरि' था। कृष्णमाचारी के अनुसार यह तेलगु ब्राह्मण था। इसने कई संस्कृत काव्यों की टीका की है। इसके रचित काव्यों में 'रघुवीर चरित' महाकाव्य है जिसमें राम के वनगमन से लेकर राज्याभिषेक तक की कथा है।
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