Book Title: Surajprakas Part 03
Author(s): Sitaram Lalas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 450
________________ [ ६६ ]. मेड़ता . यह एक प्राचीन नगर है। इसका प्राचीन नाम मेडन्तक मिलता है, जिसका अपभ्रंश मेड़ता है | मंडोवर के प्रतिहार सामन्त बाउक ने वि० सं० ८९४ में मेड़ते को अपनी राजधानी बनाया था। राव जोधाजी के पुत्र राव दूदाजी को यह नगर जागीर में मिला था । बाद में इसे राव मालदेव ने जैमल मेड़तिया से छीन कर नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था । अत्र यहाँ प्राचीन वस्तुनों में केवल १२ वीं शताब्दी के आसपास के दो स्तंभ, लक्ष्मी का मंदिर व उसकी प्राचीन मूर्तियें शेष हैं । मुसलमानों के समय को बहुत सी मस्जिदें भी हैं । यहाँ के जैन मंदिर नवीन हैं किन्तु उनकी मूर्तियें प्राचीन हैं जिन पर १५ वीं व १७ वीं शताब्दी के लेख खुदे हुए हैं । रेवा नदी ( नर्मदा ) अति वेगवान प्रवाह वाली यह नदी नर्मदा के नाम से प्रसिद्ध है । इसका प्राचीन ऐतिहासिक नाम रेवा है । यह विन्ध्याचल पर्वत की शाखा अमरकंटक पर्वत से निकल कर गुजरात के पश्चिमी भाग में बहती है। गुजरात प्रान्त का एक प्राचीन व्यापारिक नगर भड़ोंच इसी के किनारे पर स्थित है । लालकोट इस नाम के दो प्राचीन किले हैं जिनमें से एक श्रागरे में और दूसरा दिल्ली में है । इनमें से प्रथम आगरे के किले का निर्माण सम्राट अकबर के समय में हुआ था किन्तु इस किले में कुछ इमारतें जहाँगीर और शाहजहाँ के समय में भी बनी थी। दूसरा किला दिल्ली में शाहजहाँ के समय में बनवाया गया था । ये लाल पत्थर के बने हुए हैं । विगिर (विन्ध्याचल पर्वत ) विन्ध्याद्रि प्रसिद्ध पर्वत श्रेणी जो भारतवर्ष के मध्य भाग में पूर्व से पश्चिम को फैली हुई है । यह पर्वत आर्यावर्त देश की दक्षिण सीमा पर है । इसके दक्षिण का प्रदेश दक्षिण पथ कहलाता है । इससे दो प्रसिद्ध नदियें नर्मदा और ताप्ती दक्षिण और पश्चिम दिशा में बह कर अरब की खाड़ी में गिरती हैं। इस पर्वत की अनेक शाखाएँ सतपुड़ा, हिन्दकुश श्रादि नाम से विख्यात हैं । पुराणानुसार यह सात कुल पर्वतों में है और मनु के अनुसार मध्य प्रदेश की दक्षिणी सीमा है । यह पर्वत अनेक प्रकार की वनस्पतियों और फल-फूलों से भरा पड़ा है। इसी पर्वत के भाग में एक टीले पर विन्द्यवासिनी का मंदिर है जो प्रति प्राचीन प्रतीत होता है । संखोधार (शंखोद्धार) यह प्राचीन भू-भाग द्वारिकापुरी के निकट है और नोखा मंडल के नाम से प्रसिद्ध है । पहले यह प्रसिद्ध बंदरगाह था और नोखापोर्ट कहलाता था । राव श्रासनाथजी के तीसरे भाई अज ने यहाँ के शासक (स्वामी) भोजराजजी को मार कर अपना अधिकार कर लिया । अज ने स्वयं अपने हाथ से वहाँ के राजा का मस्तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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