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१३७० में झालोरी ( जालोरी) अफगान मलिक युसुफ ने जो बिहार का सूबेदार था, मक्का जाते हुए रास्ते में डीसा और पालनपुर पर अधिकार कर लिया। कई लोग इसे वीसलदेव की विधवा पत्नी पोपां बाई से लिया बताते हैं ।
पाली
यह पाली जिले का मुख्य नगर है। राजपूताने में रेल का प्रवेश होने के पहले यह नगर व्यापार का केन्द्र था । यहाँ के व्यापारियों की कोठियाँ गुजरात के सूरत, मांडवी, नवानगर और अहमदाबाद तक में थी । पाली के व्यापारी प्राचीनकाल से ही ईरान, अरबिस्तान, अफ्रीका, यूरोप आदि देशों से माल मंगवाते और यहाँ का माल वहाँ भेजते थे । अब भी यहाँ कपड़े की बड़ी मील है व कपड़े की रंगाई व छपाई का काम सुन्दर होता है । यहाँ के ब्राह्मण पालीवाल नाम से प्रसिद्ध हुए । इनमें नंदवाने बोहरे बड़े धनाढ्य थे । यहाँ के प्राचीन मन्दिरों में सोमनाथ का मंदिर मुख्य है । दूसरा श्रानन्दकरणजी का मंदिर है । तीसरा प्राचीन मंदिर नौलखा है। यहां की मूर्तियों के प्रासनों पर वि० सं० १९४४ से १७०६ तक के जीर्णोद्धार के लेख खुदे हैं ।
पीछोला
इस झील को विक्रम की १५ वीं शताब्दी में महाराणा लाखा के समय में पीछोली गांव के निकट बनवाया था । यह उदयपुर के राजमहलों के पश्चिमी किनारे पर विस्तीर्ण सरोवर है । इस झील में कई छोटे-बड़े टापू हैं, जिन पर भिन्न-भिन्न समय के अनेकों सुंदर स्थान बने हुए हैं, जिनमें जग निवास और जग मंदिर नामक महल जल के मध्य में बने हुए हैं । इन्हें महाराणा जगतसिंह द्वितीय व महाराणा कर्णसिंह ने बनवाया था । जग-निवास की अपेक्षा जग - मंदिर प्राचीन है और इसमें ऐतिहासिक सामग्री अधिक है । इसमें प्राचीनता ही है - प्राधुनिक सजावट दृष्टिगोचर नहीं होती । पीछोला के दक्षिणी किनारे पर पहाड़ियों
श्रृंखला चली गई हैं जहां मत्स्य शैल पर एकलिंग गढ़ नामक प्राचीन दुर्ग बना हुआ है । जिससे तालाब की शोभा और भी बढ़ गई है ।
फतहपुर
शेखावाटी जिले का एक प्रमुख नगर है । यह शेखावत कछवाहों का ठिकाना था । इसको रावराजा लक्ष्मण सिंह ने आबाद किया था ।
बदनौर
यह मेवाड़ राज्य का प्रथम श्रेणी का ठिकारणा है और राठौड़ वंश की मेड़तिया शाखा के आधीन है । बदनौर पश्चिमी रेलवे के ब्यावर स्टेशन से २६ मील की दूरी पर है । इस नगर के चारों और पक्का शहरपनाह है। नगर में प्रवेश के लिए पूर्व दिशा में सूरजपोल नामक दरवाजा है । इसके अलावा रेवतजी का दरवाजा और पश्चिम में चांदपोल दरवाजा भी है ।
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