Book Title: Surajprakas Part 03
Author(s): Sitaram Lalas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 437
________________ [ २ ] लगभग ४०० मील की लम्बाई में फैली हुई है । इसकी औसत ऊँचाई १००० फीट से लेकर ३००० फीट तक है । इसका सर्वोच्च शिखर आबू पर्वत है जो ५६५० फीट ऊँचा है । इसका अधिकांश भाग वनपूर्ण है और आबादी भी अल्प है। इसके विस्तृत क्षेत्र अधिकांश में मध्यस्थ घाटियों एवं बालू के मरुस्थल हैं । इस पर्वत की कई विच्छिन्न - खलायें भी बन गई हैं, जिनका ढाल तीव्र है और शिखर समतल है । इसमें पाई जाने वाली शिलाओं में स्लेट, शिस्ट, नाइस, संगमरमर, क्वार्ट जाइट, शेल और ग्रेनाइट विशेष हैं । अवधपुरी (अयोध्या) उत्तरप्रदेश का एक भाग जो प्राचीन काल में कौशल राज कहलाता था । इसकी राजधानी अवधपुरी (अयोध्या) थी । यह नगर घाघरा ( सरयू) नदी के दाहिने किनारे पर फैजाबाद जिले में स्थित है । इसका महत्त्व इसके प्राचीन इतिहास में ही निहित है । प्राचीन उल्लेखों के अनुसार इसका क्षेत्रफल ६६ वर्ग मील था। सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग यहां श्राया था । उसके लेखानुसार यहाँ बीस बौद्ध मन्दिर थे तथा ३००० भिक्षु रहते थे । इस प्राचीन नगर के अवशेष अब खंडहरों के रूप में रह गये हैं, जिसमें कहीं-कहीं कुछ अच्छे मंदिर भी हैं । इनमें सीता रसोई तथा हनुमान गढ़ी प्रसिद्ध हैं । अब अयोध्या एक तीर्थस्थान के रूप में रह गया है । अहमदाबाद यह नगर २३°१* उत्तर अक्षांश और ७२०३७" पूर्व देशान्तर गुजरात राज्य में बम्बई से ३०६ मील उत्तर में साबरमती नदी के बायें तट पर स्थित है । यह प्रमुख औद्योगिक, व्यापारिक तथा वितरण केन्द्र है । साबरमती तट पर एक भील सरदार के नाम पर असावल नामक रम्य स्थान था जो युद्ध की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण था, जहाँ ई० स० १४११-१२ तदनुसार वि० सं० १४६६ में तातार खां के पुत्र अहमदशाह ने साँचल नामक ग्राम के स्थान पर अहमदाबाद नगर बसा कर इसे अपनी राजधानी बनाया । १४९१ ई० से १५११ ई० तक की मध्य की शताब्दी में इसकी उत्तरोत्तर उन्नति हुई । मुगलकाल में भी यह नगर उन्नति की चरम सीमा पर था । यह व्यापार, शिल्प, चित्र, स्थापत्य आदि विभिन्न कलाओं का केन्द्र था । किन्तु मराठा काल में इसका वैभव चौपट हो गया जिसका अंग्रेजी शासन काल में पुनरुत्थान हुआ । श्रांबेर यह नगर जयपुर से सात मील उत्तर में पहाड़ों के बीच बसा हुआ है । नगर के पश्चिमी किनारे पर आंबेर का सुदृढ दुर्ग है और शिलादेवी का मन्दिर है जो बहुत सुन्दर ढंग से बना है । कछवाहा राजा काकिल ने वि० सं० १०९३ में सुसावत मीनों से छीन कर आंबेर बेर है । यहां If डाली । इसका प्राचीन नाम अम्बिकापुर था जिसका अपभ्रंश प्राचीन समय का बना अम्बिकेश्वर महादेव का मन्दिर भी है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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