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सूरजप्रकास
[ १७ दुहौ' – ईसा' बाजि दहुँवै वळां', सो कवि कहै सकाज ।
असवारी कजि प्रांणियौ', बरण कियौ इक वाज ।। ५१
महाराजा अभयसींघजीरै निज सवारीरै घोड़ा सुरजपसावरौ धरणण छप्पै- नख अहिरण धज नळी, कळी बाजू पीडा चक ।
बजै नास बांसळी, ताव वीजळी छळी तक । प्रौछ' पड़छ रवि अंग, चंमर झमर सुर' चंम्मर ।
केकी ग्रीव कसस्सि', तिकर लंकी कब्बूतर'५ । सिख दीप स्रवण मुख बीज ससि, चूर" स्यांम मूरति चसम । . सुखपाळ चाल उर ढाल सम, पनँगयाळ मुखमल पसम ।। ५२
१ ख. कवित्त छप्पै ॥ प्रथम दूहो। ग. कवित छप्पै प्रथम दुहो। २ ख. ग. यसा। ३ ख. दुहुंदै । ग. दुहूवै । ४ ख. दलां। ग. दल । ५ ख. कहे । ६ व. ग. प्रांणीयौ । ७ ख. ग. वरण। ८ ख. ग. किसौ। ६ ख. ग. अहरणि। १० ख. ग. वंसली। ११ ख. ग प्रोछ। १२ ख. प्रतिमें यह शब्द नहीं है। १३ ख. ग. कसीस । १४ ख. ग. तिकरि। १५ ख. ग. कबूतर । १६ ख. ग. चुरस । .
५१. बाजि - घोड़ा। कजि - लिए । प्राणियो - लाया गया। ५२. अहिरण - लौहका चौकोर खंड जिस पर लोहार या सोनार गर्म धातुको रख कर पीटते
हैं। यहां घोड़े के सुमोंकी दृढ़ता व कठोरताके लिए कविने प्रयोग किया है। धज - ध्वज, ध्वजा डंड। नळी-परके घुटनेके नीचेका सीधा भाग । कळी - समान । चक - चक्र, गोल, वर्तुल । नास - नाक | बांसळी - बांसुरी, मुरली। ताव - तेजी। वीजळी- विद्युत । पड़छ' 'अंग - ( ? )। चमर - पूंछ । झमर - घने बालोंयुक्त। सुर चंम्मर - सुरा गायके पूंछ के बालोंका बना हुआ चंवरके समान। केकी - मयूर, मोर। ग्रीव - गर्दन । तिकर - समान । लंकी कब्बूतर - कबूतर जो बहुत चंचल होता है और कुलांचे अधिक खाता है, इसकी घोड़ेकी चंचलतासे उपमा दी जाती है। स्रवण - श्रवण, कान । वि० वि०-घोड़ेके कानोंको दीपक शिखाकी उपमा दी जाती है। बीज - द्वितीया । चूर स्याम - शालिगरामकी मूर्ति जिसकी घोड़ेकी प्रांखसे उपमा दी. जाती है । चसम - चश्म, नेत्र । सुखपाल चाल - चलनेमें घोड़ा ऐसा आराम देने वाला है मानों सुखपाल नामक वाहन में बैठे हों। उर ढाल-धोड़ेके वक्षस्थलका भाग ढालके समान चौड़ा है। पनगयाळ'"पसम - घोड़े के गर्दनके बाल नागके समान और शरीरके । बाल मखमलके समान कोमल हैं।
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