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में इसने मुगलों से लिये हुए प्रदेश शाहजहाँ को सौंप दिये । यह वि.सं. १६८३ (ई.स. १६२६) में अस्सी वर्ष की अवस्था में मृत्यु को प्राप्त हुआ।
अकबर (बादशाह)
जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर का जन्म ई.स. २३ नवम्बर १५४२ को हुमायूं की पत्नी हमीदाबानू के गर्भ से अमरकोट में हुआ था और ई.स. १५५६ में कालानर में इसका राज्याभिषेक हुआ। उस समय भारत की स्थिति सोचनीय थी और अकबर के अधिकार में पंजाब का थोड़ा सा भाग था। इसने अपनी बुद्धिमानी से बैरामखाँ के पंजे से निकल कर अपने राज्य की स्थिति को दृढ़ बनाने का प्रयत्न किया। ई.स. १५५६ में पानीपत के दूसरे युद्ध के बाद हेमू का अंत हो गया और दिल्ली में मुगल सत्ता स्थापित हो गई। उसके बाद ही आगरे पर भी अकबर का प्राधिपत्य हो गया । अकबर एक महत्त्वाकांक्षी सम्राट था और सम्पूर्ण भारत में अपनी सत्ता कायम करने की कामना करता था। इसी कामना से अकबर ने राजपतों के साथ अपना सम्बन्ध जोड़ा और जोधपुर के स्वामी सवाई राजा सूरसिंह को गजरात की रक्षा का भार सौंपा । गजरात पहुँच कर इन्होंने मुजफ्फर के उपद्रव को दबाया और वह गुजरात छोड़ कर भाग गया । दक्षिण के उपद्रवों को भी दबाने के लिये अकबर ने सवाई राजा सूरसिंह को भेजा था । इन्होंने अम्बरचम्पू को भगा कर दक्षिण में शान्ति स्थापित की थी। अकबर विद्वानों का आदर करता था। इसकी सभा के नवरत्न इतिहास-प्रसिद्ध हैं। सम्राट अकबर अपनी योग्यता के कारण ही इतिहास में अकबर महान् के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अकबर (शाहजादा)
औरंगजेब उत्तरकालीन मुगल सम्राट था। उसके कुल पांच पुत्र थे । इन्हीं पुत्रों में सबसे बड़ा सुल्तानमुहम्मद था। अकबर औरंगजेब का चौथा पुत्र था। यह मारवाड़ पर आक्रमण करने वाली शाही सेना का सेनापति था। दुर्गादास ने मारवाड़ के उद्धार के लिये अपनी चतुराई से शाहजादा अकबर को अपनी ओर मिला लिया और नाडोल में राठौड़ सरदारों ने उसका बादशाह होना घोषित कर दिया। किन्तु बाद में औरंगजेब की चालाकी से वह असफल रहा और अपने कुटम्ब और माल असबाब को लेकर राठौड़ों की शरण में चला गया। कई दिन मारवाड़ में रहने के बाद अकबर अपने परिवार सहित हज करने चला गया। हज करके ईरान आ गया और वहीं पर ईस्वी सन् १७०६ में उसका देहान्त हो गया ।
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