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[ ६८ ] मुजफ्फरअली खां
यह बादशाह मुहम्मदशाह के योग्य सेनापतियों में था । जब महाराजा अजीतसिंह से अजमेर का सूबा हटाया गया तब सर्व प्रथम यही सूबेदार बनाया गया। उसने अजमेर आने का विचार किया किन्तु धन की कमी के कारण नहीं आ सका । इसको छ: लाख रुपये मिलने की आज्ञा हुई किन्तु उस समय दो लाख से अधिक नहीं मिल सके । पर इसने उतने ही में २०००० सैनिक एकत्रित कर लिये। इसी में रुपया समाप्त हो गया। महाराजा अजीतसिंह ने अजमेर खाली नहीं किया और अपने ज्येष्ठ पुत्र अभयसिंह को मुजफ्फरअली खां का सामना करने के लिए भेजा। इसी समय ई० स० १७२१ में दिल्ली से यह आज्ञा पहुँची कि यह मनोहरपुर से आगे न बढ़े। यह यहाँ तीन मास पड़ा रहा । रुपया न मिलने से सिपाही भाग खड़े हुए। मुजफ्फरअली खां प्रांबेर पहुँच कर सारे शाही फरमान व खिलअत आदि लौटा कर फकीर हो गया। मुरशिदकुली खां
यह बड़ा वोर, साहसी तथा नीति-कुशल व्यक्ति था। यह शाही सेना का सेनापति तथा लाहौर का सूबेदार रह चुका था। बादशाह मुहम्मदशाह ने इसके सामने सर बुलन्द के विरुद्ध अहमदाबाद पर आक्रमण करने का प्रस्ताव रक्खा, किन्तु इसकी हिम्मत नहीं हुई । मुराद (शाहजादा)
यह शाहजहाँ का सबसे छोटा पुत्र था। इसका जन्म ई० स० १६२४ में हुआ । यह गुजरात तथा मालवे का सूबेदार रहा । यह बड़ा वीर तथा साहसी था। इसमें सिंहासन प्राप्त करने की इच्छा तो थी किन्तु उसको पूर्ण करने के लिये कूटनीतिज्ञता तथा सतर्कता न थी। इसने भी उत्तराधिकार के लिये प्रयत्न प्रारम्भ किया और ई० स० १६५७ में अहमदाबाद में अपने आपको सम्राट घोषित कर दिया। उस समय औरंगजेब बड़ी सावधानी तथा सतर्कता से कार्य कर रहा था। उसने मुराद के पास एक पत्र भेज कर उसको अपनी ओर मिला लिया । उसने लिखा कि पंजाब, अफगानिस्तान, काश्मीर तथा सिन्ध के प्रान्त तुम्हें मिलेंगे और शेष पर औरंगजेब शासन करेगा । धरमत के युद्ध ने मुराद और औरंगजेब की शक्ति को दृढ़ बना दिया। औरंगजेब ने मुराद को बादशाह बनाने का लालच दिया। सामगढ़ के युद्ध के उपरान्त मुराद बादशाह घोषित कर दिया गया। किन्तु ई० सन् १६६० में मुराद को एक दावत में शराब पिला कर कैद कर लिया और ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिया जहां उसका वध करवा दिया ।
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