________________
[ ६६ ]
महाराजा अजीतसिंह और सैयद बन्धुनों की चाल से बुधसिंह को गद्दी से उतारने का प्रयत्न रहा और वे सफल हुए ।
विनोद के अनुसार बुधसिंह का वि० सं० १७६६ वैशाख कृष्णा तृतिया को बेगूं से तीन कोस की दूरी पर बाघपुरा में देहावसान हो गया ।
बुरहानुलमुल्क
यह बादशाह मुहम्मद शाह के खास व्यक्तियों में था और शाही दरबार का खास दरोगा था । यह बड़ा वीर, नीति- कुशल व्यक्ति था । वीरम गांव (झालावाड़) के युद्ध में यह शाही सेना का प्रधान सेनापति था । वीरम गांव का परगना खालसा होने पर बुरहानुल-मुल्क की सिफारिश से ही यह परगना इसके प्रीति-भाजन बहराम खाँ के नाम कर दिया गया । यह अनेकों युद्धों में भाग ले चुका था ।
भाऊ कूं पावत
यह कान्हसिंह ( किसनसिंह) का पुत्र और गजसिंहपुरा के ठाकुर मुकनसिंह का छोटा भाई था । कूंपावत भावसिंह राव अमरसिंह राठौड़ के विश्वासपात्र सेवकों में था । राव अमरसिंह की मृत्यु के बाद इसके सैनिकों ने बादशाही सेना से मुकाबला किया, जिसमें मुख्य तीन थे—
(१) कूंपावत राठौड़ भावसिंह । (२) चांपावत बलू राठौड़ । ( ३) व्यास गिरधर पोहकरणा ब्राह्मण जिनमें से बलू राठौड़ और व्यास गिरधर तो काम आ गये और कूंपावत भावसिंह घायल होकर बच गया । अमरसिंह का सारा सामान इसके पास रहता था । इसने सारा सामान राव अमरसिंह के छोटे बेटे ईसरसिंह के पास पहुँचा दिया । इसी भावसिंह का पुत्र इन्द्रभाण वि० सं० १७३७ में अजमेर से ७ मील दूर पुष्कर में तहवरखांन की सेना के साथ राठौड़ों के युद्ध में वीर गति को प्राप्त हुआ ।
भीम सीसोदिया
यह महाराणा प्रताप का पोता था । इसके पिता राणा अमरसिंह के हाथ से उदयपुर निकल जाने के कारण चावंड के प्रभेद्य पहाड़ों में परिवार सहित यह विपत्ति के दिन बिता रहा था। एक दिन राणा ने शत्रु को हाथ बताने की बात भीम से कही । सुनते ही आज्ञाकारी भीम उसी दिन अपने दो हजार सवारों को लेकर ठीक अर्द्ध रात्रि के समय शत्रु सेना को चीरता हुआ सदर ड्योढी पर जा पहुँचा और ऐसी तलवार बजाई कि सैकड़ों तुर्कों को घास की तरह काट डाला । जहाँ शाही थाने लगते वहीं पर संग्राम करता । जब राणा की
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org