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[ ७५ ] तोपखाना से तोपें और गोलन्दाज दिये थे। यही बाद में अवध का सूबेदार बना कर भेज दिया गया। समादत खाँ ने मुहम्मदशाह के समय में ही पूर्व में अपनी स्वतन्त्र सल्तनत कायम कर ली थी और अवध का नबाब बन गया। सफदर जंग
नादिरशाह के आक्रमण के बाद अमीरों तथा सरदारों में पारस्परिक संघर्ष प्रारंभ हो गया था। उस समय बुरहानुलमुल्क बादशाह के विश्वासपात्र व्यक्तियों में था । यह महाराजा अभयसिंह से भयभीत रहता था और उसकी खिलाफत भी करता था। यह बुरहानुलमुल्क नादिरशाह के आक्रमण के समय मारा गया और इसके स्थान पर इसका पुत्र सफदर जंग अवध का सूबेदार घोषित कर दिया गया। यह बड़ा योग्य व्यक्ति था। बाद में यही सफदर जंग अवध का स्वतन्त्र शासक बन गया और मुहम्मदशाह की आज्ञाओं का उल्लंघन करने लगा। सम-साम-उद्दौला (शम्सामुद्दौला)
यह बादशाह के विशेष विश्वासपात्रों में था। यही राज्य का मीरबक्सी था जो कि समस्त राजकीय कर्मचारियों और सैनिकों को वेतन बांटता था। यह स्वयं भी बड़ा ही वोर, नीतिकुशल व कट्टर मुसलमान था। जोधपुर के महाराजा अभयसिंह से उसकी वीरता के कारण मित्रता रखता था। जिस समय महाराजा ने सर बुलन्द के विरुद्ध पान का बीड़ा उठाया उस समय बादशाह की आज्ञा के अनुसार जो रकम महाराजा को देनी निश्चित हुई थी वह अठारह लाख रुपये इसी सम-साम-उद्दौला द्वारा दिये गये थे। यह महाराजा की प्रतिज्ञा के समय सभा-स्थान पर मौजूद था। सर बुलन्द खाँ
यह बादशाह मुहम्मद शाह के विश्वासपात्र व्यक्तियों में था। इसकी वीरता से प्रसन्न होकर बादशाह ने इसे मुबारिजुमुल्क की उपाधि दी और उसी समय गुजरात (अहमदाबाद) की सूबेदारी निजामुलमुल्क से हटा कर सर बुलन्द खाँ के नाम लिख दी। उस समय निजामुलमुल्क का चाचा हमीद खाँ सहायक के रूप में अहमदाबाद में कार्य करता था। सर बलन्द वीर, राजनीतिज्ञ और चतुर व्यक्ति था । कुछ समय के बाद यह अहमदाबाद का स्वतन्त्र शासक बन बैठा और धन एकत्रित करने के लिय मनमाना अत्याचार करने लगा जिसकी खबर फरियाद के रूप में बादशाह के पास पहुंची। इस पर बादशाह ने अहमदाबाद का सूबा सर बुलन्द से हटा कर महाराजा अभयसिंह को दे
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