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[ ७७ ] में गवर्नर था। इन सबने अपने को अलग अलग सम्राट घोषित कर दिया । औरंगजेब ने चालाकी से मुराद को फुसला कर अपनी तरफ मिला लिया। बादशाह ने शुजा को रोकने के लिये जयपुर नरेश मिर्जा राजा जयसिंह को भेजा तथा औरंगजेब और मुराद दोनों का सामना करने के लिए जोधपुर नरेश महाराजा जसवन्तसिंह (प्रथम) को भेजा । उज्जैन के पास धरमत नामक स्थान पर जसवन्तसिंह और दोनों शाहजादों में युद्ध हुआ। शाही फौज के सेनापति कासिम खां ने, जो औरंगजेब को चाहता था, महाराजा को धोका दिया। इस प्रकार विजयी औरंगजेब आगे बढ़ा और उसने दारा को परास्त कर के शाहजहां को अपने महल में कैद कर दिया। औरंगजेब अपने तीनों भाइयों का खातमा कर के दिल्ली के तख्त पर बैठा । शाहजहां को साढ़े सात वर्ष तक कारागार में कठोर यातनाएं सहनी पड़ीं। बुढ़ापे में उसकी पुत्री जहांनपारा ने उस की सेवा कर के उसके भग्न हृदय को शान्त्वना दी। अन्त में २२ जनवरी १६६६ ई० को शाहजहां की जीवन-लीला समाप्त हो गई और वह अपने पुत्र के बंधनों से मुक्त हो गया। शाहजहाँ को मुमताजमहल के पावं में ताजमहल में दफनाया गया। साहू ___ यह महाराष्ट्र के निर्माणकर्ता वीर शिवाजो का पोता व शम्भाजी का पुत्र था। इसका शासनकाल ई० सन् १७०८ से ४६ तक रहा। शाहू अपनी माता तथा अन्य सम्बन्धियों के साथ १६८६ ई० में कैद कर लिया गया। मई सन् १७०७ में आजम के द्वारा मुक्त कर दिया गया। अब शाहू अपने पितामह के राज्य पर मुगल सम्राट के सामन्त के रूप में शासन करने लगा । शाहू के महाराष्ट्र में प्रवेश करते ही बहुत से मरहठे सरदार इससे प्रा मिले किन्तु ताराबाई ने विरोध किया। शाहू के व्यक्तित्व में एक विचित्र आकर्षण था। इसका स्वभाव कोमल तथा दयालु था। इसमें उच्चकोटि की आचार-व्यवहार की सभ्यता थी। शाहू ने सन् १७०८ में ताराबाई की सेना को पराजित कर सतारा पर अपना अधिकार कर लिया। इसने ४१ वर्ष तक शासन किया और पेशवाओं के नेतृत्व में मरहठा साम्राज्य की द्रुतगति से अभिवृद्धि हुई । अतः शाह की गणना महाराष्ट्र के महान् शासकों में होती है । सन् १७४६ में शाहू की मृत्यु हो गई और सारी मराठा शक्ति पेशवा के हाथ में आ गई। सुजात खां (शुजात खां)
यह गुजरात के सूबेदार शेख मुहम्मदशाह फारूखी के प्रमुख अधिकारी 'काजिमबग' का पुत्र था और बड़ा वीर तथा नीतिज्ञ था। ई० सन् १७२० में
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