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[ ६७ ] बादशाह से संधि हो गई तब भीम शाही दरबार में रहने लगा। जहाँगीर ने खुश होकर इसको टोडे का परगना जागीर में देकर 'राजा' की उपाधि दी। भीम शाहजादा खुर्रम के साथ रहने लगा। खुर्रम से बादशाह के नाराज हो जाने पर भीम खुर्रम की सेना के हरावल में रहता था। वि० सं० १६८१ में हाजीपुर में खुर्रम और परवेज के बीच भयंकर युद्ध हुआ। इसमें भीम शत्रु दल को चीरता हुआ परवेज के हाथी तक पहुँच गया। परवेज की सेना में भगदड़-सी मच गई, किन्तु उसी समय जोधपुर नरेश महाराजा गजसिंह से इसका युद्ध हुआ और यह वीर गति को प्राप्त हुआ। महासिंह चांपावत (माहवसिंह)____ यह पोकरण का ठाकुर था। अहमदाबाद के युद्ध के समय वि० सं० १७८७ आश्विन सुदि ७ को महाराजा अभयसिंह ने अहमदाबाद तथा भद्र के किले पर पाँच मोर्चे लगाए। उनमें से एक मोर्चे पर अभयकरण (कर्णोत) चांपावत महासिंह (पोकरण का) तथा भागीरथदास आदि थे । इसने इस मोर्चे पर महान् वीरता का परिचय दिया और शत्रुसेना के छक्के छुड़ा दिये । यह महान् वीर, साहसी और रण-कुशल व्यक्ति था । मुकनदान दधवाडियो
'सूरजप्रकास' के रचयिता के कथनानुसार यह केसोदास दधवाड़िया का पुत्र था। यह महाराजा अभयसिंहजी का कृपा-पात्र था। यह कवि भी था और महान् वीर भी। सर बुलन्द खां के साथ जो अहमदाबाद का युद्ध हुआ उसमें मुकनदान महाराजा अभयसिंह के साथ था। इसने उस युद्ध में अपनी महान वीरता का परिचय दिया जिससे प्रसन्न होकर महाराजा अभयसिंहजी ने इसको बिलाड़ा तहसील का कूपड़ावास गांव दिया जो अब भी इसके वंशजों के अधिकार में है। मुजफर खां
यह पराक्रमी, नीतिज्ञ और रणकुशल व्यक्ति था। मुजफ्फर खाँ अनेकों बार युद्धों में अपनी वीरता का परिचय दे चुका था। यह बारह हजारी मनसबदार था। बादशाह ने इसके सामने सर बुलन्द के विरुद्ध जाने का प्रस्ताव रक्खा किन्तु इसने अस्वीकार कर दिया। मुजफ्फर खाँ अजमेर का शासक भी रह चुका था। यह पहले तो जोधपुर के महाराजा अभयसिंह से नाराज सा रहता था किन्तु फिर महाराजा की वीरता व रण-कुशलता के कारण मित्र बन गया था।
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