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वसूल करने का अधिकार प्राप्त कर लिया। इस प्रकार निजाम की सारी चाल विफल हो गई। बाद में मराठा सरदारों को शाहू के विरुद्ध भड़काना शुरू किया पर इसमें भी निराश होना पड़ा। इसने धीरे-धीरे दक्षिण में अपना राज्य स्थापित कर लिया। पिल (पिलाजी)__यह मरहठों की सेना का सेनापति था और खांडेराव दाभाड़े का प्रतिनिधि था। यह सोनगढ़ का शासक और भीलों एवं कोलियों का मददगार था। इसने बड़ौदा
और डमोई पर भी अपना अधिकार कर लिया था। खांडेराव की विधवा पत्नी उमाबाई ने चौथ उगाहने के लिए पीलाजी को नियुक्त किया । यह बड़ी भारी सेना लेकर चौथ उगाहने के लिए डाकोर नामक स्थान में पहुँचा। यह सुन कर महाराजा अभयसिंह भी सेना के साथ उससे लड़ने के लिए चला किन्तु प्रकट, रूप से छल-कपट करने में प्रवीण व्यक्तियों को सन्देश देने के बहाने पीलाजी के पास भेजा और अवसर पाकर मारने की प्राज्ञा दी। इसी के अनुसार ईंदा लखधीर ने डाकोर पहुँच कर पीलाजी को धोखे से मार डाला। फरखसेर (फर्रुखसियर)
बहादुरशाह के बाद उसका पुत्र मुईजुद्दीन जहांदारशाह के नाम से दिल्ली के तख्त पर बैठा । इसके केवल ग्यारह माह के निन्दनीय शासन के बाद फर्रुखसियर, जो बहादुरशाह के पुत्रों में मुईजुद्दीन जहांदारशाह के छोटे भाई अजोमुश्शान का पुत्र था तथा बहादुरशाह के शासनकाल में बंगाल का गवर्नर था, सैयद बन्धुत्रों की मदद से जहांदारशाह की हत्या करवा कर दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। यह भी बड़ा अयोग्य निकला। इसमें न बुद्धि थी न चरित्र-बल । यह बड़ा भीरु तथा दुर्बल शासक था । दृढ़ संकल्प का इसमें सर्वथा अभाव था। यह सैयद बन्धुओं के परामर्श पर कार्य करता था और इन्हीं के हाथ की कठपुतली हुआ था। राजपूतों, सिखों, मरहठों, जाटों और मुसलमानों के साथ भी इसका सम्बन्ध ठीक नहीं था। यहाँ तक कि कालान्तर में सैयद बन्धुत्रों से भी इसका संबंध खराब हो गया और वे एक दूसरे के शत्रु बन गये । फलस्वरूप मरहठों की सेना के साथ सैयद हुसेनअली का दिल्ली पर आक्रमण हुआ और फर्रुखसियर कैद कर लिया गया। ई० सं० १७१६ में उसकी हत्या करवा दी गई। इस प्रकार फर्रुखसियर की जीवनलीला समाप्त हुई। बखतसिंह (महाराजा)
यह महाराजा अजीतसिंह का पुत्र और महाराजा अभयसिंह का छोटा भाई था। इसका जन्म वि० सं० १७६३ की भादों वदि ७ को हुआ था। वि० सं०
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