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भयसिंह से मित्रता थी । महाराजा अभयसिंह ने अहमदाबाद पर चढ़ाई करने के लिये अपनी सेना सहित जोधपुर से कूच किया, जिस समय वे पालनपुर के पास पहुँचे तो इसने उनका खूब स्वागत किया । यही करीमदाद खां बाद में पालनपुर का स्वतंत्र शासक बन कर नबाब बन गया । इसने महाराजा अभयसिंह की सहायता के लिए अहमदाबाद के युद्ध में अपनी सेना को सर बुलंद खां के विरुद्ध लड़ने के लिए भेजी थी ।
किशनसिंह ( महाराजा किशनसिंह ) -
यह मोटा राजा उदयसिंह का ८ वां पुत्र था। इसने ई० सन् १६६६ में अपने नाम से किशनगढ़ राज्य की स्थापना की। यह बड़ा वीर, रणकुशल और अपनी धुन का पक्का थ। इसके तीन पुत्रों में से भारमल के पुत्र रूपसिंह ने रूपनगर बसाया था । भाटी 'गोयन्ददास' ने, जो महाराजा सूरसिंह का विश्वासपात्र था व जोधपुर राज्य का दीवान था, किशनसिंह के भतीजे गोपालदास का वध कर दिया था । उसका बदला लेने के लिए किशनसिंह ने अजमेर की हवेली पर हमला कर के भाटी गोयंददास को मार दिया। इससे नाराज होकर राजकुमार गजसिंह ने भी पीछा कर के किशनसिंह को उसके साथियों सहित
मार डाला ।
कुभा (महाराणा कुंभा ) -
यह महाराणा मोकल का पुत्र था और उसकी मृत्यु के बाद वि०सं० १४६० में राजगद्दी पर बैठा। इसके बालिग होने तक राज्य कार्य की देखभाल मंडोवर के स्वामी रणमल्ल राठौड़ करता था । यह महाराणा बड़ा यशस्वी, वीर, विद्वान् और प्रतापी हुआ जिसने कुंभलगढ़ और आबू पर अचलगढ नामक स्थान बनवाये और मालवा के बादशाह मुहम्मद तुगलक को युद्ध में पराजित कर के पकड़ लिया व ६ मास कैद में रख कर उससे दंढ लेकर छोड़ा । इसका स्मारक चित्तौड़ के किले में विद्यमान है | वि०सं० १५२५ में यह अपने ज्येष्ठ पुत्र ऊदा के हाथ से
मारा गया ।
कुससंह (ऊदावत कुंवर कुशलसह ) -
इसका स्वर्गवास पिता की मौजूदगी में ही हो गया था । यह अपने पिता के साथ महाराजा अजीतसिंह की सेवा में रहा करता था । कुंवर कुशलसिंह दिल्ली में भी महाराजा के साथ था । इसने कुंवर पद में ही अनेकों वीरता के काम किये थे । जब अजमेर का सूबेदार जगरामगढ़ और ब्यावर पर कब्जा करने की नियत से सेना लेकर प्राया तो कुंवर कुशलसिंह ने उसका सामना किया ।
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