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[ ६० ] मुहम्मद सुल्तान सलीम रखा गया। इसकी शिक्षा बैराम खां के पुत्र अब्दुलरहीम खानखाना के द्वारा हुई।
यह न्यायप्रिय, उदार तथा वोर था परन्तु साथ ही इसमें क्रूरता, भीरुपन आदि विरोधी गुण भी थे । ई० स० १६०५ में यह ३६ वर्ष की अवस्था में नूरुद्दीन मुहम्मद जहांगीर बादशाह गाजी की उपाधि को धारण कर के आगरे में सिंहासनारूढ़ हुआ।
दक्षिण में जब मलिक अम्बर स्वतंत्र हो गया था तब बादशाह जहाँगीर ने जोधपुर के महाराजा गजसिंह को अम्बर के बढ़ते हुए प्रभाव को दबाने के लिए भेजा था। उसमें महाराजा गजसिंहजी विजयी हुए। मलिक अम्बर पराजित हुआ। इस विजय से प्रसन्न होकर बादशाह जहांगीर ने महाराजा गजसिंह को दल-थंभन की उपाधि से विभूषित किया । जहाँदारा शाह
ई० स० १७१२ में मुईजुद्दीन बहादुर शाह का सबसे बड़ा पुत्र जहाँदारा शाह के नाम से जुलफिकार खां व महाराजा अजीतसिंह की सहायता से गद्दी पर बैठा। यह बड़ा ही अयोग्य, आरामतलब, विलासी तथा व्यभिचारी शासक था। इसने जुलफिकार खां को अपना प्रधान बनाया। बादशाह लाहौर से दिल्ली पहुँच कर लाल कुंवर के प्रेम में अनुरुक्त हो गया। नूरजहाँ की तरह लालकुंवर ने भी शासन की बागडोर अपने हाथ में रखने का प्रयास किया। किन्तु उसी समय बंगाल के गवर्नर फर्रुखसियर ने महाराजा अजीतसिंह व सैयद बन्धुओं की सहायता से जहाँदाराशाह व जुलफिकार खां की हत्या करवा कर दिल्ली का शासन अपने हाथ में ले लिया और सिंहासन पर बैठ गया । जाफर खां
यह बादशाह मुहम्मद शाह की राज्यसभा का उमराव था। बादशाह ने इसे सर बुलन्द खां के विरुद्ध अहमदाबाद को सूबेदारी देने के लिए कहा, किन्तु इसने मंजूर नहीं किया। इसने महाराजा अभयसिंह से अनुनय-विनय कर के
अहमदाबाद की सूबेदारो का परवाना महाराजा के नाम लिखवा दिया। यह . लाहौर का सूबेदार भी रह चुका था। यह महाराजा अभयसिंह का विश्वासपात्र मित्र था, किन्तु महाराजा की वीरता व निर्भयता के कारण उससे सशंकित भी रहता था। जुलफगार (जुलफिकार खां)
यह बादशाह जहांदारा शाह का विश्वासपात्र व्यक्ति था। यह ईरानी था। बादशाह जहांदार शाह धन और सेना के अभाव में भी महाराजा अजीतसिंह
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