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[ ५१ ] लिया था। महाराजा अभयसिंह का अहमदाबाद पर अधिकार होने के समय कंठ चांपानेर (उज्जैन) का शासक था। इसने विजय की कामना से अहमदाबाद पर आक्रमण किया। इसके साथ पील और आनंदराव की सेनाएं भी थीं। किन्तु महाराजा अभयसिंह की विजय हुई और कंठा भाग कर दक्षिण में निजामुलमुल्क के पास चला गया । कनीराम (कूपावत ठाकुर कनीराम)___ यह ठाकुर रामसिंह के बाद अपने पिता का उत्तराधिकारी हुा । बागी चांदावत दौलतसिंह को मार कर महाराजा अभयसिंह द्वारा प्रासोप बहाल करवाई। वि.सं. १७८७ में अहमदाबाद में सर बुलंद खां से युद्ध हुआ जिसमें कुंपावत कनीराम साथ था। महाराजा अभयसिंह को इस पर पूर्ण कृपा थी । महाराजा अभयसिंह की मृत्यु के बाद रामसिंह गद्दी पर बैठा किन्तु इनमें छिछोरपन होने के कारण कनीराम जोधपुर से प्रासोप चला गया। वि.सं. १८०८ में बखतसिंह ने जोधपुर पर अधिकार कर लिया। वि.सं. १८०६ में ही महाराजा बखतसिंह का विष-प्रयोग से जयपुर राज्य के गाँव सींधोली में देहान्त हो गया। तब उनका पुत्र विजयसिंह जोधपुर के राज्यसिंहासन पर बैठा। इसी वर्ष इन्हीं महाराजा ने ठाकुर कनीराम को बीकानेर से बुलाया । कनीराम ने आजन्म महाराजा विजय. सिंह की सेवा की । वि.सं. १८३२ में जोधपुर में ही इसका स्वर्गवास हो गया । दाह-संस्कार कागा बाग में हुप्रा । कागा में इसकी छत्री बनी हुई है। कमरुद्दीन खां
यह बादशाह मुहम्मदशाह के प्रधान सलाहकारों में से एक था। यह बादशाह के प्रधान वजीर निजामुल-मुल्क का विश्वासपात्र व्यक्ति था। यह योग्य तथा अनुभवी व्यक्ति था। बादशाह ने जिस समय सर बुलन्द खां के विद्रोही हो जाने पर उसके विरुद्ध विद्रोह को दबाने और उसको पदच्युत करने का प्रस्ताव रक्खा उस समय कमरुद्दोन खां भी राजसभा में मौजूद था। यह जोधपुर के महाराजा अभयसिंह के हितैषियों में था और उनसे मित्रता का व्यवहार रखता था। करण (महाराणा करणसिंह)
यह महाराणा अमरसिंह का पुत्र और राणा प्रताप का पौत्र था। इसका जन्म वि.सं. १६४० श्रावण शुक्ला १२ (ई.स. १५८३ ता० १ अगस्त को) हुआ था। उस समय दिल्ली का बादशाह जहाँगीर था। उसने शाहजादे खुर्रम को मेवाड़ विजय के लिये सवाई राजा सूरसिंह के साथ भेजा और राजकुमार गजसिंह को सादड़ी का थाना सौंपा गया। शाही सेना ने मेवाड़ को चारों तरफ से घेर
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