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[ ५५ ] खींवसी भंडारी
यह महाराजा अजीतसिंह के विश्वासपात्र व्यक्तियों में से था। मुगल सम्राट फर्रुखसियर पर इसका बड़ा प्रभाव था। ग्रन्थ सूरजप्रकास के अनुसार हिन्दुओं पर से जजिया कर छुड़वाने में इसने महत्त्वपूर्ण सहयोग दिया था। यह जोधपुर राज्य की तरफ से वर्षों तक मुगल दरबार में रहा था। फर्रुखसियर की हत्या के बाद इसने दिल्ली पहुँच कर नबाब अब्दुला खां की सम्मति से मुहम्मदशाह को दिल्ली के तख्त पर बैठाया । महाराजा अभयसिंह के शासनकाल में भी यह जोधपुर का दोवान रहा था। इसका पुत्र अमरसिंह अहमदाबाद के युद्ध के समय दिल्ली में जोधपुर महाराजा की ओर से वकील था। खुरम (शाहजादा खुर्रम)
यह जहाँगोर का तीसरा पुत्र था। इसका जन्म १५९२ ई० में लाहौर में हुआ था। खुर्रम बड़ा ही योग्य तथा प्रभावशाली व्यक्ति था । जहाँगीर उसे प्राणों से अधिक प्रिय समझता था। जब ई० स० १६०६ में जहाँगीर खुसरो के विद्रोह को शान्त करने के लिए गया तब खुर्रम को ही राजधानी की सुरक्षा का भार सौंपा गया। खुर्रम ने अनेक अच्छे कार्य किये। उसी के परिणामस्वरूप जहाँगीर ने इसे शाहजहाँ की उपाधि दी । शाहजहाँ ने दक्षिण की स्थिति को, जो बिगड़ चुकी थो, सम्भालने में सफलता प्राप्त की। इससे प्रसन्न होकर उसे उच्चतम शाही सेना का सेनापति बना दिया। उसे बहुत उत्तम जागीर प्रदान की। इसने महावत खां को अपनी ओर मिला लिया और शहरयार का अन्त कर के बादशाह बन गया । बादशाह बनते ही इसने संदिग्ध व्यक्तियों को हटा दिया और अपने विश्वसनीय व्यक्तियों को राजसेवा में नियुक्त किया। ऐसे योग्य शासक की मृत्यु ७४ वर्ष का होने के बाद १६६६ ई० में हो गई। गोयंददास (भाटी गोविंददास)
मारवाड़ के इतिहास में इसका नाम उल्लेखनीय है । यह नागार के पास गांव भांडवे के भाटी मानसिंह का पुत्र था। सुरतांण मानावत इसका सहोदर था। भाटी गोविंददास ने प्रधान के पद पर आसीन होकर राज्य का प्रबन्ध शाही ढंग पर कर दिया। इससे मारवाड़ के नरेशों और सरदारों का संबंध स्वामी-सेवक सा हो गया। शादी-गमी के समय ठकुरानियों के अंत:पुर में आने जाने की प्रथा उठ गई । इन्होंने रणमल्ल के वंश के जागीरदारों के लिये दाईं तरफ और जोधाजी के वंश के जागीरदारों के लिए बाईं तरफ का स्थान नियुक्त किया। राज कार्य के लिए दीवान, बख्शी, हाकिम, दरोगा और पोतेदार आदि नियुक्त किये। मेवाड़-दमन के समय राजकुमार गजसिंहजी के साथ जा कर
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