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तथा महाराजा श्री अभयसिंह के समय जोधपुर का दीवान था। यह भी महाराजा अभयसिंह के शासनकाल में (वि.सं. १७६६ से १८०१ तक) जोधपुर का दीवान रहा था। अहमदाबाद के युद्ध के समय यह दिल्ली में महाराजा अभयसिंह का वकील था। यह बहुत बुद्धिमान, चतुर और अपने समय का महान् राजनीतिज्ञ था। अमीर उलउमरा
यह बादशाह मुहम्मदशाह के विश्वासपात्र व्यक्तियों में से था और जोधपुर के महाराजा अभयसिंह का मित्र था तथा बादशाह के बारह हजारी मनसबदारों में था। इसने महाराजा अभयसिंह को सर बुलन्द खां के विरुद्ध अहमदाबाद पर
आक्रमण करने के लिये उत्साहित किया था और गुजरात (अहमदाबाद) की सूबेदारी की सनद महाराजा अभयसिंह के नाम लिखवा दी गई थी। अली मोहम्मद खां
यह अहमदाबाद के सूबेदार सर बुलन्द खां के विश्वासपात्र व्यक्तियों में था। यह एक अनुभवी योद्धा तथा सेना के प्रमुख सेना-नायकों में था। सर बुलन्द ने इसे शहर के रेशम के प्रमुख व्यापारी गंगादास के पास एक लाख रुपया वसूल करने के लिये भेजा। इसने गंगादास से १ लाख और कुशालचन्द से साठ हजार रुपया वसूल किया। इस प्रकार अली मोहम्मद खां ने सर बुलन्द के लिये रकम वसूल की। यह महाराजा अभयसिंहजी के साथ युद्ध होने के समय पश्चिमी भाग की सेना का प्रमुख योद्धा था और उसी युद्ध में काम आया। अली बरदी खां___ यह बादशाह मुहम्मदशाह के दरबार के प्रमुख उमरावों में से एक था । यह बड़ा बहादुर, रण-कुशल एवं कुशल राजनीतिज्ञ था। इसकी वीरता और नीतिज्ञता से प्रसन्न होकर बादशाह बहादुरशाह ने इसको लाहौर का सूबेदार बना दिया था। बाद में बंगाल की व्यवस्था सुधारने के लिये इसे बंगाल का गवर्नर (सूबेदार) बना दिया गया था। इसके पूर्व यह शाही सेना का सेनापति था और अनेकों युद्धों में भाग लेकर अपनी वीरता का परिचय दे चुका था।
यह जोधपुर के महाराजा अभयसिंह का मित्र था। इसने बंगाल में अपना स्वतन्त्र शासन स्थापित कर लिया था। आबिद अली खां (प्राबद अली खां)
यह अहमदाबाद के सूबेदार सर बुलन्द खां के विश्वासपात्र सेना-नायकों में
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