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अफगान खां सिन्ध का सूबेदार था । तदनन्तर बादशाह की राजसभा के राजमंत्रियों में सम्मिलित कर लिया गया था । सर बुलन्द खां के विरुद्ध अहमदाबाद युद्ध में जाने का निमन्त्रण इसे भी दिया गया था, किन्तु इसने स्वीकार नहीं किया ।
अभयकरण
यह राठौड़ वीर दुर्गादास का पुत्र था और सर बुलन्द खाँ के विरुद्ध ग्रहमदाबाद के युद्ध में महाराजा अभयसिंह के साथ था । यह सेना की एक टुकड़ी का नायक था । भद्र के किले पर लगाये गये पाँच मोर्चों में से एक मोर्चे पर अभयकरण ( कर्णोत ) चांपावत महासिंह तथा भागीरथदास प्रादि थे । ई. सन् १७३० ता. १० अक्टोबर को शेरसिंह मेड़तिया ( सरदार सिंहोत ) के मोर्चे पर भयंकर आक्रमण होने पर अभयकरण उसकी सहायता को गया था और इसने अतुल साहस और वीरता का परिचय दिया था। इसो मोर्चे पर यह घायल हो गया था किन्तु बचा लिया गया था ।
भरांमकुली ( इब्राहीम कुली खां ) -
यह शाही सेना के मुख्य सेनापति सुजात खाँ का भाई था, और महाराजा अभयसिंह के विश्वासपात्र व्यक्तियों में से एक था। यह मालवा, सूरत और अहमदपुर का सूबेदार ( गवर्नर ) था । बड़ा योग्य राजनीतिज्ञ तथा रणकुशल व्यक्ति था, किन्तु किन्हीं प्रान्तरिक कारणों से हमीद खाँ इससे शत्रुता
रखता था ।
पेशवा ने अपनी छः हजार सेना के साथ मालवा पर आक्रमण कर दिया तो इब्राहीम कुली खाँ ने बड़ी वीरता से पेशवा की सेना से मुकाबिला किया । किन्तु हमीद खाँ की चालाकी से इसी युद्ध में पेशवा व हमीद खाँ के व्यक्तियों ने इब्राहीमकुली खाँ की हत्या कर डाली ।
अमरसिंह (महाराणा अमरसिंह द्वितीय ) -
यह अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् वि.सं. १७५५ में गद्दी पर बैठा । इसका जन्म वि.सं. १७२६ में हुग्रा था । यह बहुत तेज स्वभाव का था । गद्दीनशीनी के समय डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ के राजाओं ने महाराणा को नजरें नहीं भेजीं। अतः कुपित होकर महाराणा ने उन पर चढ़ाई करके १ लाख ७५ हजार रुपया वसूल किया। यह आबू पर कब्जा करना चाहता था परन्तु जोधपुर के महाराजा अजीतसिंह को मदद से यह स्थान देवड़ों से नहीं ले सका । पिता
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