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[ ४२ ] इम जीतो 'प्रभमाल' वार नब जाए । लूटि आरबां लिया लूटि, असि गज बही लाए । 'विलंद' तणा बाढ़िया, रूक झाटां रवदायण । च्यार सहस च्यारस, असी तेरा असुरायण । जिण मझि विवरौ जुदौ, मुगळ पड़ि रूप मयंदा। सौ पालखीनसीन पाठ असवार गयंदा । अ पड़े साह जाण इसा, प्रावै अाम दीवांणमें। ताजीमतणा भड़ तीनस, घणा अवर घमसांण में । भड़ पयदळ गज भिड़ज, पड़े विलंद रा अपारा । न को पार घायला, हुवा लोह में सुमारां ।
__ सू. प्र. भाग ३, पृ. २६१ महाराजा द्वारा वि० सं० १७८७ को कार्तिक वदि २ को शाही दरबार में स्थित अपने वकील के नाम लिखे गये पत्र से प्रकट होता है कि सर बुलन्द के हजार-बारह सौ आदमी मारे गये और सात-आठ सौ घायल हुए ।
इसी पत्र में पहले यह भी उल्लेख है कि सर बुलन्द ने दशमी के दिन ८ हजार सवारों और १० हजार पैदल सिपाहियों से अर्थात् कुल १८ हजार से महाराजा की सेना पर हमला किया था।'
अतः हम इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि सर बुलन्द के पास लगभग ५० सहस्र सेना होगी। २४ हजार तो उसने केवल दरवाजों पर ही तैनात कर दी। कछ सहस्र बुों और कंगूरों पर तथा १८ सहस्र से महाराजा पर आक्रमण किया । अत: इस प्रकार कुल ५० सहस्र के लगभग सेना हो जाती है। कवि ने भी सर्व प्रथम यही उल्लेख किया है कि सर बुलन्द पचास सहस्र सेना लेकर हमीद खां के विरुद्ध दिल्ली से गुजरात की ओर चला था। इस प्रकार ग्रंथ में दिये हुए अांकड़े विश्वसनीय जान पड़ते हैं ।
'सूरजप्रकास' ऐतिहासिक और साहित्यिक दृष्टि से अपने ढंग का एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। जोधपुरनरेश महाराजा मानसिंह इस ग्रंथ से इतने प्रभावित हए कि उन्होंने इस ग्रंथ में उल्लिखित सभी घटनाओं के चित्र बनवा दिए, जिनमें से अधिकांश जोधपुर महाराजा साहिब के 'पुस्तकप्रकाश' में आज भी उपलब्ध होते हैं ।
'पं० विश्वेश्वरनाथ रेऊ द्वारा लिखित, मारवाड़ का इतिहास, भाग १, पृष्ठ ३३६-३४०
का फुटनोट ।
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