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( सुखी होने का उपाय भाग- ३
की दृष्टि से देखो तो स्वर्ण की शुद्धता कहीं देखने में नहीं आ रही है । लेकिन स्वर्ण के स्वभाव अर्थात् गुणों-विशेषताओं-क्वालिटियों के ज्ञान के आधार से जब मिश्रित अवस्था में असली स्वर्ण को देखता है तो अपनी भेदक दृष्टि के द्वारा शुद्ध स्वर्ण को स्पष्टतया पकड़ लेता है । इस दृष्टान्त का यह चरण महत्वपूर्ण है कि वर्तमान पर्याय की दृष्टि से देखा जावे तो शुद्ध स्वर्ण कहीं भी दिख नहीं रहा है। उस डली में अन्य धातुयें मिश्रित रहते हुए भी, स्वर्ण के गुणों का पक्का विश्वास होने से शुद्ध स्वर्ण को मुख्य बनाये रखता है । उस दृष्टि को कभी गौण नहीं होने देता फलस्वरूप मिश्रित डली में भी शुद्ध स्वर्ण को पहिचान लेता है । डली में मिश्रित अन्य धातुओं के सम्बंध में विचार भी नहीं करता । उनका मूल्यांकन तो दूर, उन मिश्रणों के प्रति अत्यन्त उपेक्षित होकर शुद्ध स्वर्णरूपी द्रव्य को अपनी दृष्टि में मुख्य रखकर मूल्यांकन कर लेता है ।
उपरोक्त दृष्टान्त तो सिद्धान्त समझने के लिए है, अत: हमको भी उससे शुद्ध आत्मा के स्वरूप को समझना है। भगवान अरहंत की आत्मा तो द्रव्य से शुद्ध, गुणों से शुद्ध और पर्याय से भी शुद्ध होने से १०० टंच से शुद्ध स्वर्ण के समान पूर्ण शुद्ध है। इसलिए अरहन्त के स्वरूप को समझने के लिए हमको भी ऐसे व्यक्ति से सम्पर्क करना होगा जो स्वरूप समझकर श्रद्धा भी कर चुका हो ।
सत्समागम की आवश्यकता
आत्मस्वरूप से अनभिज्ञ प्राणी को आत्मस्वरूप समझने के लिये, आत्मज्ञ पुरुषों का समागम प्राप्त कर, उनसे यथार्थ दृष्टि प्राप्त करनी होगी, उस दृष्टि से जिनवाणी के अध्ययन द्वारा आत्मा का स्वरूप अपने ज्ञान में अत्यन्त स्पष्ट समझना पड़ेगा। वह स्वरूप ज्ञान में इतना स्पष्ट हो जाना चाहिए जैसा कि केवली भगवान के ज्ञान में है, अन्तर मात्र परोक्ष और प्रत्यक्ष का रह जाना चाहिए । उक्त आत्मस्वरूप का ज्ञान, संशय, विभ्रम, विपर्यय, अनध्यवसाय रहित, स्वर्ण के दृष्टान्त के अनुसार इतना
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