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( सुखी होने का उपाय भाग - ३
करने का उपाय निश्चयनय एवं व्यवहारनय का भी सांगोपांग ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है ।
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इसलिए उनका स्वरूप एवं मोक्षमार्ग में उनकी उपयोगिता भी इसमें बतलाई गई है । यथार्थतः निश्चयनय का कार्य व्यवहार का निषेधक बने रहना ही है ऐसा होने पर भी, व्यवहार मोक्षमार्ग में निश्चय का सहचारी बना रहकर भी बाधक कैसे नहीं होता, दोनों की मैत्री भी कैसे बनी रहती है आदि-आदि अनेक विषयों पर भी चर्चा की गई है। इनके यथार्थ निर्णय द्वारा दृष्टि स्पष्ट निर्मल होकर मार्ग के प्रति निःशंकता उत्पन्न हो, ऐसा प्रयास किया गया है । प्रसंगोपात्त पुरुषार्थ की यथार्थ परिभाषा, इन्द्रिय ज्ञान से भी मनजन्य ज्ञान आत्मकल्याण में विशेष बाधक है आदि-आदि विषयों पर भी विवेचन किया गया है।
उपर्युक्त विषयों के विवेचन के पश्चात् आगामी भाग-४ में शुद्धात्मानुभूति प्रगट करने की विधि पर विवेचन करने का संकल्प है । उसका विषय होगा " यथार्थ निर्णय द्वारा सविकल्प आत्मज्ञान" एवं सविकल्प आत्मज्ञानपूर्वक निर्विकल्प शुद्धात्मानुभूति ।
इसप्रकार आत्मार्थी बन्धुओं से निवेदन है कि सम्पूर्ण विषयों को मनोयोग पूर्वक पढ़कर चिंतन, मनन, अध्ययन कर अपने आत्मकल्याण के मार्ग को प्रशस्त करें। इन पुस्तकों की रचना मैंने तो मेरे उपयोग को एकाग्र करने एवं जिनवाणी में रमण कराने के लिये की है, अन्य कोई उद्देश्य नहीं रहा है लेकिन अगर कोई अन्य साधर्मी बन्धुओं के लिये लाभ का कारण बन सके तो में अपने प्रयास को सफल समझंगा और प्रसन्नता अनुभव करूंगा ।
अन्त में इसी भावना के साथ विराम लेता हूं कि इस कृति की रचना द्वारा उपर्युक्त यथार्थ मार्ग मेरी परिणति में सदा जयवंत रहे एवं सभी पाठकगण भी इसके अभ्यास द्वारा यथार्थ मार्ग प्राप्त करें ।
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