Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 3
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 132
________________ आत्मा अरहन्त सदृश कैसे ? ) ( १३१ के समान जिसका प्रकाश है और जिसमें सब पदार्थ प्रतिबिम्बित होते हैं तथा आप उन सब पदार्थों के आकार रूप होता है, तो भी आकाश के प्रदेश के समान उनसे अलिप्त रहता है, वह ज्ञानरूपी सूर्य शुद्ध संवर के भेष में है, उसकी प्रभा को हमारा प्रणाम है ॥ २ ॥” उपर्युक्त प्रकार यह स्पष्ट है कि अरहंत का ज्ञान ज्ञेयों के प्रति किंचित् भी आकर्षित नहीं होता, फलतः रागद्वेष की उत्पत्ति नहीं होती और वे परमवीतरागी रहने से परमसुखी हैं आदि-आदि अनेक अपेक्षाओं द्वारा स्पष्ट किया गया है कि मेरे आत्मा का स्वभाव द्रव्य-गुण से तो अरहंत के समान है ही । लेकिन पर्याय में भी अरहन्त के समान कैसे हैं ? यह भी नयों के प्रयोगपूर्वक अनेक प्रमाणों एवं तर्कों से सिद्ध किया है, निःशंकरूप से ऐसा निर्णय कराने की विधि इसमें बताई गई है । निःशंक निर्णय प्राप्त करने का उपाय आचार्य श्री उमास्वामी के तत्वार्थसूत्र अध्याय - १ के सूत्र ६ में कहा है कि “ प्रमाण- नयैरधिगमः” अर्थात् प्रमाण नय के द्वारा, स्वरूप का यथार्थ निर्णय होता है । अत: निर्णय करने में नय ज्ञान की उपयोगिता कैसे है, यह भी इस पुस्तक में बताई गई है । द्रव्यार्थिकनय पर्यायार्थिकनय, इनका स्वरूप एवं इनका विषय बताते हुये, इनके ज्ञान के माध्यम से अपनी ही पर्यायों की भीड़-भाड़ में छुपी अपनी आत्म ज्योति को द्रव्यार्थिकनय के ज्ञान द्वारा भेदक दृष्टि अर्थात् द्रव्यदृष्टि से निकालकर, भगवान अरहंत के आत्मा की कसौटी से कसकर, अपने त्रिकाली ज्ञायकभाव में अहंपना स्थापन करने की विधि समझाई है। साथ ही पर्यायार्थिकनय के विषयभूत अपनी पर्याय एवं अन्य सभी को अपने से भिन्न परज्ञेय जानकर, उनमें से अहंपना दूर कर, उनके प्रति कर्तापने की बुद्धि के अभाव द्वारा उपेक्षाभाव जाग्रत कर, तटस्थ ज्ञाताभाव प्रगट करने का उपाय भी बताया गया है । अपने आत्मा के अंदर बसे हुए अनंत गुणों के समुदाय में बसे हुये अद्वैत आत्मस्वरूप की अनुभूति में बाधक भेदबुद्धि है । अत: उसके भी अभाव हुए बिना शुद्धात्मानुभूति प्रगट होना असंभव है । उसके अभाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 130 131 132 133 134 135 136