Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 3
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 129
________________ १२८ ) पर समझाने की चेष्टा की गई है। यह विषय, ऐसे आत्मार्थी को कल्याणकारी हो सकेगा, “ जिसको एकमात्र अपने आत्मकल्याण की तीव्रतम जिज्ञासा हो ।” अनादि से चला आ रहा आकुलतारूप भावसंसार के परिभ्रमण से जो थक गया हो और अब निराकुलतारूपी आत्मिकशांति का मार्ग प्राप्त करने की तीव्रतम प्यास जगी हो। जिसने इस मनुष्य जीवन के बचे हुए क्षणों का पूरा पूरा उपयोग करके, जीवन को सार्थक बनाने के लिये कमर कस ली हो, ऐसा जीव इसके माध्यम से यथार्थ मार्ग समझकर, सत्यार्थ पुरुषार्थ के द्वारा, आत्मानुभूति प्राप्त कर, कृतकृत्य हो सकेगा । ( सुखी होने का उपाय भाग - ३ जगत के अनन्तानन्त द्रव्यों में खोई हुई अपनी आत्मा को इस पुस्तक के प्रथम भाग में बताये गये मार्ग द्वारा, सबसे भिन्न समझकर, अपने आत्मद्रव्य में ही अहंपना स्थापन कर, श्रद्धा में अन्य सबसे संबंध तोड़ लिया है । तथा अनन्तानन्त द्रव्यों को मात्र परज्ञेय के रूप में उपेक्षणीय मानकर उनके प्रति कर्तृत्वबुद्धि के अभिप्राय को समाप्त कर, एकमात्र ज्ञानस्वभावी आत्मद्रव्य में ही अहंपना स्थापन करने को प्रयत्नशील है तथा स्वपरप्रकाशी ज्ञान स्वभाव का स्वरूप समझकर अपने आत्मद्रव्य के अनुसंधान का ध्येय बना लिया है। ऐसे आत्मार्थी को आत्मानुसंधान का मार्ग भाग २ से प्राप्त होगा । छहों द्रव्यों से भिन्न, अकेला अपना ज्ञान स्वभावी आत्मा, अपनी विकारी पर्यायों के बीच ऐसा छुपा हुआ है, कि कहीं जानने में ही नहीं आ रहा है। जब भी आत्मा को ढूँढ़ने का प्रयास करते हैं तो रागी द्वेषी आदि के रूप में ही आत्मा दिखता है । इस समस्या का हल इसके भाग-२ में किया गया है । भाग-२ में मोक्षमार्ग में पाँच लब्धियों की उपयोगिता, चारों अनुयोगों के अर्थ समझने की पद्धति, यथार्थ तत्त्व निर्णय का महत्व, आदि विषयों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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