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श्री सुधर्मगढ़ परीक्षा.
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ah, जिनाज्ञारूप धर्मप्रत्ये मुकी दे वे, पण पोताना मां करेली मर्यादाने मूकता नथी; जेमके कोइ प्राचार्य तीर्थंकरनी श्राज्ञाने एक बाजु राखी मर्यादा बांधी के बीजा गडवाला साधुने महाकल्पादि श्रतिशय श्रुत जणाववुं नदी, ए आचार्यनी मर्यादा बे. माटे
म बीजा कांप जणावीर्ये नहि एम माने, पण ए जिनेश्वरनी श्राज्ञा नथी. जिनेश्वरनीतो एवी श्राज्ञा बे के जो योग्य होय तो सर्व पुरुषो जणी श्रुत श्रापवुं पण योग्यने श्राप नहि. मतलब के जिनेश्वरनो उपदेश योग्य पुरुष प्रते व्यापवाने मनाइनथी, बतां गांध थे जिनेश्वरनी श्राणा उल्लंघाय तो नले उल्लंघो पण श्रमे तो गनीज मर्यादा राखीशुं, इम कड़े ते पहेलो नांगो जावो. ने बीजो जांगो ए वे के गन्नुनी मर्यादाने मूके बे पण जिनेश्वरनी श्राणा मूकता नथी, ए बीजो जांगो जावो. अने श्रीजो योग्यायोग्यनो विचार ते जिनवाला तथा गष्ठमर्यादा ए बन्नेने मूके, ते श्री जो जांगो जावो. अने चोथो तो विवेकपूर्वक कार्य करे, जेमके जिनेश्वरी थापा तथा गहनी थापा बन्ने ने राखी कार्य करे, ते चोथो नांगो जावो. मुषि साहुणि श्रावक श्राविका, संघचतुर्विध सूत्रजथकां; सूत्र रथनी विणु परंपरा, जे दीसे ते म गणो खरा ||२०
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