Book Title: Sudharm Gaccha Pariksha
Author(s): Bramharshi Muni
Publisher: Ravji Desar
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(१४) श्री सुधर्मगछ परीक्षा. बेन. सरस्वती वा जिणे, गई निल्ल उठेद्यो तेणे ॥ ५० चिहुंसय सीतेरे विक्रमराव, थयो उज्ज्यनी नयरी गाव; सिफसेनगुरुश्रावककीयो,महाप्रनावकनोजशलीयो०५१ वरस पंचसय चवालीस, निन्दव बहो जाण जगीश; जीव अजीव थने नोजीव, राशीत्रण तेणे हीसदीवा५५ गुरु समजाव्योपण नबिवल्यो, थापमते अजिमाने बढ्यो वरस चोराशीने पांचसें, वयरस्वामी सुरसाकें वसे ।।५३ वीरथकी वरसे पांचसें, चउराशी अधिके वली तिसे; निन्दव जाण थयो सातमो, गोष्टामाहील ते महातमो॥५४ तेणे थाप्यो ए मत वली, जीव कर्मयोग जेम कंबली; अपरिमाण थाप्या पचखाण, जावजीवनुं लोपे गण.५५ वरसें बसें श्री वीरथकी, नव अधिक जाणो वकि; खमणा नाम दिगंबरथया, सहसमल्ल पायक पापिया. ५६ जिनकल्पीन से नाम, तिणे मांड्यो मति परिमाण; नारीने उथापी मुगति, न कहे केवलीने वली नुगति. ५७ बीजा बोल घणा फेरवी, ग्रंथ कर्या श्रापे मति सवी; । एटला खगेजे हुवा मति, ते मांहि नविसमकित रति. ५७ समकित विणुचारित्रनकाय, श्रागम एहघि साख कहाय;
यतः-नख्यिचरितं सम्मत्त विहणं। दसगान
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