Book Title: Sudharm Gaccha Pariksha
Author(s): Bramharshi Muni
Publisher: Ravji Desar
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(४७) श्री सुधर्मगच परीक्षा. थाय . जेम वडवृदनुं बीज नानुं पण क्रमे क्रमे वृद्धि ने पामे डे, तेम आणापूर्वक करेल क्रिया पण विस्तार वाळा फलने थापे . केमके थोडीपण क्रिया श्राणा सहित करेख होय तो पापना समूहने नाश करे , भने बाणारहित पूजा, पञ्चरुखाण, पोसह, उपवास, दान, शीलादि सर्व क्रिया निरर्थक कासकुसुम, सेलडी कुसुमनी माफक थाय . तेनाथी कां फल थतुं नथी.
यतः-सम्मत्त रयण नवा । जाणंता बहु विहावि सत्था ॥ सुधा राहण रहिया । नः म्मति तत्येव तत्थेव॥१॥ __ लावार्थ:-सम्यक्त्वरत्नथी चष्ट थएला कदि बहु शास्त्रोने जाणता होय तोपण शुरु श्राराधना (सेवना) ए करी रहित जे होय ते तिहांने तिहांज जमे पण तेश्रोतुं निस्तार थाय नहि, केमके धर्मर्नु मूल सम्यक्व , एवो उपदेश देवाधिदेवे आपेलो. ते सांजली बुद्धिमान् पुरुषे दर्शनथी हीन थयेला एवा पासस्था,
ओसन्ना, कुशीलीया, शंसत्ता अने अहबंदा तेश्रोनो , संग त्याग करवो, अने तत्वदृष्टिवाला जिनेश्वरनी थाणारूप मुगटने धारण करवावाला, शुभ निर्जयपणाथी उपदेश देवावाला, विधिमार्गना खपी, विधि
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