Book Title: Sudharm Gaccha Pariksha
Author(s): Bramharshi Muni
Publisher: Ravji Desar

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Page 57
________________ श्री सुधर्मगच परीक्षा (ए) उपर बहुमान करवावाला, एवा पुरुषरत्नोनो संग करवो जेथी आराधकपणो थाय. परंतु पुन्यना उदयभी तेजोगमले. यतः धन्नाणं विहियोगो। विहिपस्का राहगा सया धन्ना ॥ विहि बहुमाणा धना। विहि परक प्रदूसगा धन्ना ॥१॥ ' नावार्थ:-जाग्यवान् पुरुषोने विधिमार्ग,अने विधि मार्गे चालनारा पुरुष तेनो योग मळे , बीजाने ते योग मलवो घणो दुर्खन डे, थने मळेलो विधिमार्ग तेने सेवन करनार पुरुषो जाग्यवान् बे; केमके सेवन करवानी श्छा थवी ते पण दुर्लन डे अने ते जाग्यवान्ने थाय , श्रने विधिमार्गने बहुमान आपनारायो भने ते मार्गने दुषण नदि लगाडनारायो पण जाग्यवान् गणाय ३. केमके केटलाएक पुरुषोबे अक्षर जणी थारनज्ञानी. नुं मोल करी पोताने ते मार्गे चालवू कडु चरियाता जेवु लागे, तेथी खोटी ब्रमणामांनुसाइज जे पोता. नी आत्मा अने बीजा नमक स्वनाववाला नव्यजी. वोने सरल मार्गश्री ऋष्ट करी नांखनारा जगत्मा घणा होय . अश्रवा नवानिनंदी जीवो अने विषयान दि जीवो पण तेवीज रीते स्वपरने वावी देठे. जे माणस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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