Book Title: Sudharm Gaccha Pariksha
Author(s): Bramharshi Muni
Publisher: Ravji Desar
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श्री सुधर्मगड परीक्षा. (५३) मनी पेठे साधुये मपतिपणुं करी मुकामनी ममता करवी नहीं. त्यागी थ बीजाने बोध करे के आसार संसार डे अने पोते नित्य कजीया करे, अहंकार मम. कारथी गरकाव होय, अने गुरुकुलवासथी व्रष्ट यश ते अनंता-बंधी कषायतुं शरणुं ले , माटे संविज्ञ पुरु. षोये ग्रहणमेधावी१, श्रुतमेधावी२, मर्यादामेधावीर थ, जेथी पोतार्नु कल्याण थाय. वली था स्थले याद राखवा- डे के अढार पापस्थाननो त्याग करी कोइ वात जोयाविना, सांजल्याविना करवी ते अन्याख्यान (कुडो कलंक) थापवा जेटदु थाय बे, अने एटझुंज नहि पण ते माणसने वगर हथियारे खुन करवा जेटयुं पाप वहोरीलेवा जेवु थाय बे; माटे तेथी अटकवू, अने श्राचारसमाधि', श्रुतसमाधिर, तप समाधि३, विनयसमाधिनुंध, अवश्य ज्ञान मेलवधानी जरुर बे. वली विषकिया, गरल क्रिया तेनाथी दूर रहे, श्रने महानिशीथसूत्रना तप करवा, योग वहेवा, वहीने ते सूत्र सुगुरु सुविहत पासे तेनो अर्थ जो जा. णशो या सांजलशो तो सत्यज्ञानसूर्य तमारा हृदया. चलमा उदय थवाथी मिथ्यात्व अंधकार पूर श्रशे; माटे खास महानिशीथसूत्रनी आराधना करी जणवानी,
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