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श्री सुधर्मगड परीक्षा (६७) ॥अथ श्रीविजयदेवसूरिकृत सखाप ।
॥धारती सब पूरे करीए ॥ए देशी।। वीर जिनेश्वर पय नमी, कहिस्युं सूत्राचार; एक मने जे करता सही, ना बहिये हो जवसागर पार ॥१॥ सूत्र तइत्त करी सराहो ॥ मत राचो हो गाडरीप प्रवास कुमति कदाप्रद बंडजो, बालोचो हो निजहीयामाह ॥ सूत्रम् ॥२॥ सूत्र विरुरू जे दाखियो, पासथानी रीति। ते सांजळीने टाळजो, जिनशासने हो ये जेहने प्रीति ॥ सूत्र० ॥३॥ शीलवती राजीमती, सकस महाव्रतधार; साधु न दे तेहने, आराधे हो कर भवति नार ॥ सूत्रः॥४॥ पडिकमायामांहि किम करे, साधु देवी श्राधार डाला का गेलो तुमे, पतो पहियो हो गडाचार ॥ सूत्र ॥५॥ यक देवीनी घुइ कही, अवग्रह मागे जोय, सिर्षे उपाभ जे रहे, जिनशासनी हो साधु न होय ॥ सूत्र॥६देवीनो काससग्ग करे, मन चिंते नवकार; अन्य निमंत्री अधरने, जीमारे हो ए कषण भाचार ॥सूत्रः॥७॥ इह. मोकारथि: काउसग्ग, नाजे जिनवर थाण, च्याम्मे सुखदायिनी, कांश बसपाहो खेत्र देवी सुजाण ॥ सूत्र०॥७॥पडि. कमणे थासोश्ये, जे कांश कर्यो मिथ्यात; जो सहा
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