Book Title: Sudharm Gaccha Pariksha
Author(s): Bramharshi Muni
Publisher: Ravji Desar
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(७) श्री सुधर्मगछ परीक्षा. जिन करी जगजने यादों, इहां मोह थति धूनोमा रुहि जंडार रमणी तजी, नजी थाप मति रागो।। दृष्टिरागे जमाली सह्यो, नवी जवजस तागो ॥५॥ वली आचार्य सावध जे, दुङ अनंत संसारो॥ दृष्टिरागे समती पण थयो, महा निशीय विचारो॥६॥ दुए जिनधर्म आशातना, अनाएयु कहे रंगे॥ मंड थागळे जिनवरे, वदी नगव अंगे॥॥ गामना नटने मूर्खनो, मिल्यो जेहवो जोगो॥ दृष्टिराग मिल्यो सेहवो, कथक सेवक लोगो ॥७॥
आपण गोठमी मीठमी, हठीने मन लागे। ज्ञानी गुरु वचन रखीयामणां, कटुक तीरसां वागे। दृष्टिरागे बम उपजे, ज्ञान वधे गुणरागे॥ एहमा एक तुमे श्रादरों, नलो होय जे आगे ॥१॥ दृष्टिरागी कदा मत हुवो, सदा सुगुरु अनुसरजो॥ वाचक जश विजय कहे, हित शिख मन धरजो ॥१॥
॥अथ कुगुरुनो स्वाध्याय॥
डो नाजी॥ ए देशी॥ शुफ़ संवेगी किरिया धारी, पण कुटिलाइन मूके। बाह्य प्रकारे किरिया पाले, अत्यंतरथी चूके ॥१॥
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