________________ मिथ्यात्वादिक दोष लागे. ते कारणे दीप धूपादि व्यारिहंतने गृहस्थावस्थाये योग्य जाणीये बीये. ग्रहस्थ तथाप्रकारे करता पण दीसे उ. साधुने दीक्षावस्त्राये व्यवहारे वंदनीय जे ते कारणे अव्यस्तवनो अधिकार साधुने जाणीता नथी तथा साधुने निषेधवो पण नथी जाणीतो नाटकादिवत् // 10 // हवे शुद्ध नक्तिनो फल कहे. जे कोइ सुगुरुना उपदेश थकी शक प्रकारे पूजा आणी समाचरे ते संसार तरी मुक्ति परमपद साधे // 11 // एते ऽहतां चैत्य मुदाहरन्ति मुक्यर्थिनिर्मुक्ति निमित्तमय॑म् / पुष्पादिपूजां चरितानुवादैः प्रकाशयन्तो न निषेधयन्ति // 1 // इति स्वाध्यायार्थः // शुनंजूयात् / / संवत् नयनबाण कलावर्षे कार्तिक शुक्ल पंचम्यां लिखिता हेमराजेन. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com