Book Title: Sudharm Gaccha Pariksha
Author(s): Bramharshi Muni
Publisher: Ravji Desar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 28552 THE SEYSEAN wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwERANS) ॥धाश्रुतस्कंधसूत्रनी टीका तथा जंबुपपन्नति राज सूत्रनी टीका कर्ता ॥ HARIश्री शास्त्रविशारद जैनाचार्य मुनिराजश्री ब्रह्मर्षिकृत RUNARAMVidhi ॥श्री सुधर्मगच्छ परीक्षा ॥ नपजाति बंद ॥ दिजमाणा न ममुकसति। हीलिजमा न समुज्जलंति ॥ दण चित्तण चरति धारा । मुणी समुग्घाइय ग दोषा। (आवश्यक मिति.) RAMADAMOR SmaranaaAAAAAA या प्राचीन ग्रंथ समस्त जैन बंधुनने उपयोभी जाणी यथामति संशोधन करावी ___गाम सायण कच्छ निवासी श्रावक रवजी देसरे मस्ति करावी प्रसिद्ध को. mtam श्री अहमदाबाद मध्ये रामनगर प्रिन्दींग नामक पाताना महालय यंत्रमा शा. मगनलाल दीसंगे मुडित को. संवत् १९६८ सने १९.१२ किम्मत ४ थाना. 6525 2 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सर्व हक्क प्रसिद्धकर्त्ता स्वाधिन राख्या ते. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुस्तकप्रगट प्रयोजनार्थे बे बोल. प्रिय वाचकबंद! श्रा अनाद्यनंत संसारनी अंदर जब भ्रमण करता जीवने मनुष्यपणुं-घार्यदेश-श्रने भार्य कुळनी प्राप्ति थवी, तेमज सुदेव,सुगुरु, सुधर्मनो संयो. ग मळवो ए अति दुर्खन डे! कदाचित् पूर्वकृत पुन्य नी प्रबळतावडे ते प्राप्त थाय तथापि सुदेव, सुगुरु, . धर्म उपर प्रतीति थवी महान् उर्सन डे अने जो ते उपर पूर्ण प्रतीति थाय तो अवश्य जीवर्नु कल्याण याय ने एमां जरा पण शक नथी! था पंचम काळना प्रजावथी बहुश्रुत पूर्वधर महाराजालना बिरहथी, तथा धर्ममार्गमा अनेक मत मतांतर रूप फांटा पडवाथी अने शुद्ध प्ररूपक पुरुषो घणाज थोडा दोवाथी, उन्मार्गदेशक एटखे के उत्सूत्रनी प्ररूपणा करी स्वमत स्थापन करवामां कटिबक थयेला, सूत्रनो जय त्यजी द पोतानी वा मुजब नवी नवी आचरणा स्थापन करी मात्र मारूं तेज साचुं अने बीजा कहे ते खोटुं, श्राम बेधडक बोलवावाळा बटु जन थर जवाने सीधे या विषम समयमां कोनो कहेलो धर्म-बोध जिनाज्ञा सहित धने कोनो कहेख धर्म-योष जिनाझा रहित ? श्रावीशंकाने जव्य जीवोना हृदयस्थळमां जन्म मळे ए स्वास्ताविकज Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) ए शंकाने दूर करवाने माटे, तथा व्यजीवो शुद्ध धर्म पामी शके ए माटे था श्री ब्रह्माचार्यजी रचित लघु ग्रन्थ, प्राचीन तेमज प्रमाणयुक्त अमारा जोनामां वार्थ वर्त्तमान समयनी अंदर अति उपयोगी यह रवाना लाजथी घणा (पुष्कळ ) जीवोनुं हितं सधाशे प हेतुने ध्यानमा लइ श्र थ मुद्रित कर्यो ( उपाध्यो ) बे. हालना समयनी अंदर मनुष्यो शुरू धर्मनी शोध खोळ करी रह्या े अने जमानो पण जाण पथावाळो यतो जाय बे तेवा जमानामां यावा निष्पक्ष पाति प्रमाणयुक्त ग्रंथ प्रसिद्धिनी खास जरूरज बे ! अनन्य श्रद्धालु कुं, पण अंधश्रद्धाळु न यतुं एज़ श्रेयस्कर बे. केमके अंधश्रद्धाळुनुं मानवुं एवं दोय बे के --जले साधुं होय के जुलुं होय पण अमोए तो जे अंगीकार कर्तुं तेने कदी बोमनार नथी. श्याम पकमेला गडापुंनी पेठे थाज कालनो केटलोक अंधश्रद्धालुदृष्टिरागी वर्ग अज्ञानताना वशे करीने सत्यप्ररूपक सलुरु तरफ धिःकारनी नजरथी जोतो थयो छे, के जे सुगुरु सत्यवक्ताना संंक वचनोने इसी कहावा लागतो दृष्टिपथमां पडवा लाग्यो बे, ते वर्गने या ग्रंथ अत्युपयोगी श्रशेज ! माटे विवेकी वाचकवर्ग दृष्टिरागथी हूर रही तत्वग्राहिणी दृष्टिवडे या ग्रंथ प्रणथी इति लगी वांची विचारी मनन करी शुद्ध . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तस्व संचय करवामां राग द्वेषना फंदमां न फसाता स्वपरना आस्मान कल्याण करशेज एवो थमने पूर्ण विश्वास ! अने एम थशे तो अमारो प्रयस्न पण सफळन -मतलब के "दक परीक्षक जो मळशे तो ने श्रम सफळ अमारो!" . या ग्रंथनो विषय शुं ते तो वाचकवर्ग आयोपान्त था ग्रंथर्नु अवलोकन करताज थापोधाप समजीज ले तेम , जेथी नाइक पिष्टपेषण करी कीमती काळनो व्यर्थ व्यय करवो ते अनुचित ठे. प्रिय पाठक महाशय! या मंथना कर्त्ता सौधर्मगीय शास्त्रविशारद मुनिमहाराज श्री ब्रह्माचार्यजी के जेमनो जन्म मालवाना मांजणोठ नगरमां सोलंकी क्षत्रीवीर पद्मदेवराय पिता, तथा सीतादेवी मासाने त्यां उत्तम प्रहयोगें थयो हतो, भने जेमणे किशोरवयमांज पूर्वसंचित पुन्यप्रकृति संयोगवश पोताना ना साथे मातापितानी रजा मेळव्या शिवाय द्वार. काजीनी यात्रा करवा माटे प्रयाण कर्यु हतुं. "शुजात् शुलं जायते" ए कहेवत मुजब एबुं थयु के मार्गे चालतां चालतां गिरनार पर्वतना प्रदेशमा पूर्व पुन्योदय प्रजात्र वमे जैनाचार्यनी तेमने नेट थई. मुनीने वंदना करी पोते तेमनी अगाडी बेगा, एटस मुनिवर्ये हचुवाकर्मी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ योग्यजीव जाणीने शुद्ध धर्मोपदेशनो लान थाप्यो. एथी ते वचनामृत पान करतां मनमां वैराग्य नावने जन्म मल्यो, एटझुंज नहीं पण ते वैराग्ये सत्य बैराग्य. नी दीक्षा लेवानी तेमने फरज पाडी के तेमणे पण धारका जवानुं चार बंध करी जन्मोकार करवानुं हार खोलवा मन दीधुं. घायु हतुं शुं भने थयुं शुं, "वाह! जवितव्या! तारी प्रबलता!”. एटले के धार्यो हतो हारका दर्शननो खान थने शुद्ध चारित्रनो खान थयो. गुरुश्रीए नाम राख्युं ब्रह्ममुनिकेमके ते नविष्यमा परब्रह्मज्ञानना वा परब्रह्म ( वीतराग) नाषित ज्ञानना झाता चनारा होवाथी प्रथमथीज ज्ञानदृष्टिवळे ते नामनुज पद समप्यु. तदनंतर गुरुराजे पोताना बकेला नामने सार्थक करवा माटे मुनि धर्म योग्य क्रिया-अनुष्ठानना सूत्र (सिद्धांत-तस्त्र) नो अच्यास कराव्यो, अने से पढ़ी तेमणे (पोते) अन्य महान् आचार्य पासेथी पोतानी प्रबल बुद्धिना योगथी घणाज तत्वज्ञाननो संग्रह कर्यो भने समर्थ शास्त्र विशारद बिरुदवंत थया. एथी श्री वृहत्तपागचाचार्य श्री विजयदेवसूरिजी तेमने सूरिमंत्र श्री ब्रह्माचार्य नामथी नारत जूषण तरीके विख्यातिमार्गमा स्थिर कर्या. श्री विजयदेवसूरिना शिष्य श्री विनयदेव सूर ते था ग्रन्थकारना संतारिक संबंधमां जा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हता, ए मार्गना प्रतापी मजकुर श्राचार्यजी परम विमल वैराग्यधारक साकरोत्तम-विधान् नीवडी वैरागी जनोना मस्तकमोखि समान शोनापात्र गणाया हता. ए सूरिजीए दशाश्रुतस्कंधसूत्रवृत्ति, जंबुद्धीपपन्न तिसूत्रवृत्ति, प्राखीसूत्रवृत्ति, प्रतिमास्थापना प्रबंध, सुमतिनागिनोरास, सैद्धांतिकविचार, उपव्याख्या, स्तवनो, सबायो, कुलक अने प्रस्ताविक काठय वगरे वगरे घणा रध्या एम केटलाएकनी तो श्रवणज साक्षी थापे, (मात्र नेत्रो साक्षी श्राप एटलीज इछा . ) मजकुर श्राचार्यजी विक्रमनी पंदरमी सदीमा विद्यमान हता. तेमणे करेलीत्रणे वृत्तियोने समर्थ गीतार्पोछारा संशोधन करावी श्री संघमा प्रचलित करेखी ठे, अने अनेक गद्यपद्यात्मक लेखो कायम करी चतुर्विध संघने बाजारी कर्या में. ए पोते सौधर्मगलना इता एम अने उपर सखेल सर्व बिना एमना करेंला प्रयो उपरथीज प्रतीति मळे . एजश्रीमा ऐतिहासिक ज्ञान प्रशंसनीय इतुं एम पंण आग्रंथ कही थापेठे थने ते वांचवाथी अकरशः सत्यज जासशे. 'ए आचार्यजी हाल परलोकमां विराजमान बतां तेमना मधुरवचनो था लोकमां विराजमान रही समदृष्टिजीवोने कल्याण बक्षी रहेन भने हवे पी पण बढ़ा करे एवी श्रमारी श्छा है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - या पुस्तक उपावतां मारी स्वरूप मतिना योगे जे कंश्थकर कानो मात्रा मीमी वाअर्थविन्रमताना लीधे रही गयेल होय तो ते विषे सानो इंसवत् गुणग्राही थ दोषने सुधारी वांचशे के जेथी अनंत लाल पशे. कारण के "संत्यज्य सकलान् दोषान् गुणान् गृहन्ति साधवः" तपारिवाचकवर्गनी समक दोष संबंधी त्रि. विधे मिथ्यापुष्कृत द. अप्लम् विस्तरेण शुनमस्तु! सं. १९६७ माघ पूर्णिमा } प्रकाशक. - - wwwwwwwwwww w w ~~ ~~~vvv ॥ शार्दूलविक्रीडितवृत्तम् ।। . श्रीसिद्धार्थनरें विश्रुतकुल-व्योमप्रसादयः सबोधांशुनिरस्तऽस्तरमहा-मोहान्धकारस्थितिः ॥ हप्ताशेषकुवादिकोशिककुल प्रीतिप्रणोदक्षमो जीयादस्खलितप्रतापतरणिः श्रीवर्धमानो जिनः॥१॥ है शान्तिः ॥३॥ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmcorrrrrrrrrrrrrr मा नपरन काव्य ग्रन्थना अंतमा ले, परंतु नगपवामां कांक अमुचता थइ जवाथी अहिं मोटा अक्षरमां मुदित करेल . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री सद्गुरुभ्यो नमः ॥ ॥शास्त्रविशारद जैनाचार्य मुनिराज श्रीब्रह्मर्षि कृत श्री सुधर्मगच्छ परीक्षा॥ (थार्या बंद.) जयति जगदेक मंगल,मपहत निःशेष पुरित घन तिमिरम् ॥ रविबिंबमिव यथास्थित,घस्तु विकाशं जिनेशवचः ॥१॥ ॥ चोपाई ॥ वीर नमुं कर अंजनि करी, साधुतणा गुण मन संजरी; साचा धर्म परिक्षाजणी, विगति कहुं कां गछतणी ॥१॥ वीरतणा गणधर श्यार, नव ग तेइतणा श्म धार; पांच गणधरना गड पंच, पंच पंचसय मुणिवर संच ॥२॥ हातणा अहुर सय साध, सत्तम गणधरना श्म लाध; अहमनवम गणधर बे मिलि, साधु उसयलणावे बखी॥३ गह थाउमो ए सुविचार, नवमानो दिव कहुँ विचार; दसम ग्यारम बे गणधार, उसयसाधु तेहनो परिवार॥ इम श्यारे गणधरतणा, नव गछनी जाणो विवरणा; गड एक गुरुनो परिवार, सूत्रपात अंतर अवधार ॥५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) श्री सुधर्मगच परीक्षा. श्ररथ एक गणधर सवि कहे, एके श्राचारे सवि रहे; जू जुआ सूत्रपाउ गछ दृश्रा, पुण आचारेनविजू जुआ॥६ वीरथकां गणधर नव सिझ, पढे गोयम केवल लिझा थापापणा साधु सविजेह, थाप्यासुधर्मस्वामिने तेह। सौधर्मगठ एकज ते जाण, तेहतणी सवि माने आण; सूत्रतणी एकज वांचना, अंतर पुण नहि आचारना। केको जे साचा साधुनो, सघलो ते सौधर्मस्वामिनो; कल्पसूत्रना वचन विमास, सांजली श्री सद्गुरुनी पासाए यतः-जे इमे अऊत्ताए समणा निग्गंस्था विहरंति ए एणं सबे अऊ सुहमस्स अणगारस्स अवचिका ॥ अवसेसा गणहरा नरवच्चा बुचिन्ना ॥ नावार्थ:-आजकालने विषे जे श्रमण निग्रंथ आ प्रत्यक्ष विचरे , ते तमाम नगवान् श्री सुधर्म अणगारना शिष्य संतानीया जाणवा; बाकीना गणधरो ते शिष्य संतान रहित जाणवा. हिवणां जे दीसे गठ नाम, सूत्र न दीसे तेहने ठगम; बता कहे तेहने पूजो, मन संदेह सदू टालजो ॥१॥ सामाचारिने आंतरे, जो गल कहेवास्ये पांतरे; चउदहसय बावनतो जोय, सबसे श्राचरणा सोय ॥११ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगच परीक्षा. (३ ) पुण ए वात न पंमित कहे, पाठ फेर जे गड सहहे; वीतरागनो मत ने एक, जगवई वृत्ति जो विवेक ॥१॥ ___ यतः-" यदेवमतमागमानुपातितदेवसत्य मितिमंतव्यमितरत्पुनरुपे क्षणीयमथाऽबहश्रुतेन नैतदवसातुं शक्यते तदैवं जावनीयं, आचायाणां संप्रदायादिदोषादयं मतदो जिनानां तु मतमेकमेवाविरुद्धञ्च रागादिदोषविरहितत्वात्" लावार्थः-जेनोज मत श्रागमने अनुसारे होय तेज सत्य गणाय ने एवी रीते मानQ जोए-अने तेथी वि. परीत जे होय तेने त्याग करवो जोइए. हवे अहिं बहुश्रुत बिना कोई निर्णय करी शके नहि, ते माटे श्रावी रीते विचारखं जोइए के आचार्योनी संप्रदाय आदि दोष वडे करी मतन्नेद , परंतु जिनेश्वरनो मत एकज अविरुरू होय , केमके राग द्वेषादिदोषरहित होवाश्री तेश्रोनो मत निर्दूषित गणाय , माटे तेज अंगीकार करवो जोइए अने तेनानीज कल्याण थाय, पण जे जिनागमधी विरुष्क होय ते त्याग करवो. स्वात स्थापन रसिकपणाथी प्रवचन विरुद्ध परुपेयुं होय तेनो सम्यक्दृष्टि जीवे त्याग करवो जोइए. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) श्री सुधर्मगध परीक्षा. कासग्ग चैत्यवंदननो फेर, दीसे किदां कोइ अधिकेर; सूत्रे जेहनी हा ना नहिं, तिद एकांत न करीए सहि ॥ १३ निरवद्यक्रिया संवेगी तणी, एक दीसे श्रापमति तणी; तिहपुणयाज विचारीकरी, सत्यकरोकुरूं परिही ॥१४॥ सूत्र अर्थ शुद्ध श्राचार, सौधर्मगष्ठ तेनो अणुसार; तेथी छावर मतंतर जाण, सूत्रार्थ तिथे करो प्रमाण ॥ १५ नवला गठ नवला याचार, तिणें म राचो एक लगार; सौधर्मगवनी पालो याण, जेथी पामो परम कल्याण ॥१६ परंपरने निसदीस, वरस सदस ज्यांलगी इकवीस; रदेशे सूत्रार्थ श्राधार, जे पाले ते साधु विचार ॥ १७ नाम गठ ने सूत्र विरुद्ध, परंपरा तसु म गणो सुद्ध; सूत्र विरुद्ध गद्य जे यादरे, ते जिनश्राण जंग श्राचरे ॥१७ गणाअंगे एद विचार, सूत्र पंथ गछ रीति धार; चचंगी बोले जगदीस, ते जोइ मम करसो रीस ॥१७ यतः - श्री ठाणांगे ॥ चत्तारिपुरिसजाया पन्नत्ता तंजहा - धम्मंणाममेगे जहति णो गण द्वितिं १ गए द्वितिमेगे जहति णो धम्मं. २, धम्ममेगे जहति गणधितिंपि ३, एगे णो धम्मं यो गणधितिं ४ " जावार्थ:- एक -एटले कोइक साधुतो एहवा होय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगढ़ परीक्षा. (4) ah, जिनाज्ञारूप धर्मप्रत्ये मुकी दे वे, पण पोताना मां करेली मर्यादाने मूकता नथी; जेमके कोइ प्राचार्य तीर्थंकरनी श्राज्ञाने एक बाजु राखी मर्यादा बांधी के बीजा गडवाला साधुने महाकल्पादि श्रतिशय श्रुत जणाववुं नदी, ए आचार्यनी मर्यादा बे. माटे म बीजा कांप जणावीर्ये नहि एम माने, पण ए जिनेश्वरनी श्राज्ञा नथी. जिनेश्वरनीतो एवी श्राज्ञा बे के जो योग्य होय तो सर्व पुरुषो जणी श्रुत श्रापवुं पण योग्यने श्राप नहि. मतलब के जिनेश्वरनो उपदेश योग्य पुरुष प्रते व्यापवाने मनाइनथी, बतां गांध थे जिनेश्वरनी श्राणा उल्लंघाय तो नले उल्लंघो पण श्रमे तो गनीज मर्यादा राखीशुं, इम कड़े ते पहेलो नांगो जावो. ने बीजो जांगो ए वे के गन्नुनी मर्यादाने मूके बे पण जिनेश्वरनी श्राणा मूकता नथी, ए बीजो जांगो जावो. अने श्रीजो योग्यायोग्यनो विचार ते जिनवाला तथा गष्ठमर्यादा ए बन्नेने मूके, ते श्री जो जांगो जावो. अने चोथो तो विवेकपूर्वक कार्य करे, जेमके जिनेश्वरी थापा तथा गहनी थापा बन्ने ने राखी कार्य करे, ते चोथो नांगो जावो. मुषि साहुणि श्रावक श्राविका, संघचतुर्विध सूत्रजथकां; सूत्र रथनी विणु परंपरा, जे दीसे ते म गणो खरा ||२० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) श्री सुधर्मगह परीक्षा. सूत्र अरथ सोपीने जेह, परंपरा दाखे ने तेह; जो सहहिये सूधा साध, तोनिन्दवनो स्यो अपराध ॥२१ पद अक्षर जिनधागमतणो,अनिनिवेश धरी लोपे घणो; तेनिह्नव कहिये श्रजाप, वीतरागना वचन प्रमाण ॥२२ .. यतः-पय अखरंवि कं। सवन्नहिं पवेश्यं । नरोएऊ अन्नहा लासे। मिबसिनियं॥१॥ जावार्थ:-सर्वज्ञ देवाधिदेवे परूपेलाने गणधरादिकनी परंपराथी आवेला जे पद तथा जे श्रदर तेमांथि कोइपण एक अक्षर तथा पद तेनी श्रद्धा करे नहि अने तेथी विपरित परूपणा करे ते जीव निश्चे मिथ्यादृष्टि जाणवो. पूरव श्राचारजनी थाण, केश कहे करिये परमाण; तेहतको उत्तर मन धरो, श्राचारजनी परिक्षा करो ॥३ यतः-पंच विहं आया। आयर माणातहाय जासंता ॥ आयारं दंसंता। आयरिया तेण वच्चंति ॥१॥ नावार्थः-पांच प्रकारना आचार ते ज्ञानाचार १, दर्शनावार २, चारित्राचार ३, तपाचार ४, वीर्याचार ५, ते प्रते पोते पालता तेमज यथार्थ सूर्यनी माफक प्रका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगड परीक्षा. (७) शता तेमज ते पंचाचार प्रति मुनियोने देखाडता, एहवा आचार्य जे दोय अने विषयन। दुष्टता तथा कषाय दुष्टता तेश्री बोडावनारा ते देतुथी आचार्य नगवान शुभ परुपणा करी चव्यजीवोना तारक तेनेज आचार्य (नावाचार्य कदेवाय .) . थाचारज पुण तेदज जाण, जे नाखे सुधा जिनवाण; याण विना आचारज जेह, कुपुरुषमांहे तेनी रेह ॥ २४ यतः-तिचयर समोसूरी। जो सम्म जिणमयं पयासे॥ आणं अश्कमंतो।सो-कान रिसो-न सप्य रिसो॥१॥ नावार्थः-जे आचार्य जिनमतना रहस्य तथा तल पदार्थ झानना रहस्य-मूल सूतसार प्रते सम्यक् जे रूपे, जे नावे जिनेश्वरे कह्या ते प्रमाणे प्ररूपे ते तीर्थकर समान गणाय. वली जे परमात्मानी आणाने तोडता नथी ते सत्पुरूष कवाय, अने पोतानी पूजा करवा माटेज जेनी प्रवृत्ति ते कुपुरुष एटले नादान, पोते मुबे ने बीजाने मुबाडे ते नाममात्र आचारज जाणवा. नामरस्थापनाश्ने व्य३नावध, श्राचारज चिहुंनेदेजाव; थशुद्धत्रण नांगा सूरिना, चउथे नाव धरो नावना ॥२५ नावसूरिना लक्षण एह, सूत्राचारे वरते जेह; सूत्रपंथ जे वर्ते नहीं, अशुद्ध त्रिजंगी गणिते सही ॥१६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ninomonninn (७) श्री सुधर्मगछ परीक्षा. - यतः-से जयवं किं तिबयर संतिनं आणं णाश्क्कमेऊा नदाहु आयरिय संतिअं? गोयमा! पायरिया चनविहापन्नता तंजहा--णामायरिया १, ठवणायरिया २. दवायरिया ३, नावा यरिया, तवणं जे ते जावायरिया तेसिं संतिअं आणं णाश्कमेजा ॥ जावार्थ:-हे नगवन् ! शुं तीर्थंकर संबंधी आणा प्रते न उसंघाय के श्राचार्य संबंधी थाणा न उलं. घाय? उत्तर. हे गौतम! आचाये चार प्रकारना डे, जे मके-नामाचार्य १,स्थापनाचार्य १,अव्याचार्य ३,लावा. चार्य ४. तेमांजे नावाचार्य ले ते जिनेश्वरनी आणा प्रमाणे वर्तनार होवाथी तेश्रोनी श्राणायोखंघाय नहीं. ते नावाचारजनी थाण, तेनो लोप म करशो जाण; नाम मात्र प्राचारज थे, ते उपर मम राचो किमे ॥२७ जावाचारज ते जाखिया, सूत्र वचन जे पाले क्रिया; सूत्र पखे जे किरिया करे, ते नांगा त्रणे अनुसरे ॥२०॥ यतः से जयवं कयरेणं ते नावायरिया नणं ति? गोयमा! जे अऊ पवश्एवि आगम विहिए पयंपएणाणुसंचरंति ते लावायरिया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगड परीक्षा (प.) जेनण वाससएवि पवश्ए हुत्ताणं वायामित्तेणंपि आगमन वाहिं करेंति ते-नाम-ठवणाहिं किंठश्यो। नावार्थ:-हे जगवन्! कोण नावाचार्य कदेवाय ? हे गौतम! जे याचारज थाजनो दीक्षित पण सिफांत विधियें करी पद, पदवने अनुसंचरे (चाले) ते जावा. चार्य कहीये, अने जे सो वरसनो दीक्षित पण यश्ने यागमथी उलटो (बागमथी विपरीत) श्रागम बाह्य जे वर्ते ते नामस्थापनाचार्य साथे गषयो, एटो निर्गुण प्राचार्य ते नामाचारज, स्थापनाचार्य जेवा. तेनी याणा पालवी कही नथी, . नावाचारज जे गठ मांद, ते सुधर्मगड जो श्राराहा नाम मात्र गधगरज न सरे, जो परखी साचूं नादरे ॥२॥ एक बाण पाले जिनतणी, करे कल्पना एक आपणी; तिणकारण गबपरखोसाच, रत्नवरीसेममयो काच ॥३० सोनानी परि परखी करी, ल्यो गह साचो ने संवरी; . मुंड मेलावे गठन कहाय, आणसहित थोडे गढ थाया३१ यतः-एगो-साहु-एगावि-साहुण।। साव गो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) श्री सुधर्मगच परीका. य सद्वीवा ॥ आणा जुत्तो संघो। से सो पुण अहि संघान.॥ जावार्थ:-एक साध, तथा एक साध्वी, तथा एक श्रावक, एक श्राधिका, पण जो जिनेश्वरती बाणा पा. लनार होय तो संघ कहेवाय ने. सम्यक् प्रकारे कर्मने हणे ते संघ, तथा मिथ्यात्व कचराथी रहित थै वस्तु गते वस्तुनी झा, परूपणा, प्रवर्तना, यथोचित मर्यादा कारक तथा पालक, स्वपद परपक्षने विषे शासनना प्रजावक, तेमज थाचार विचार, श्रौदार्य, धैर्य, गांजीर्य, चातुर्य, दाक्षिण्य, विनय, विवेकादि गुण जेमां होय ते संघ कहेवाय ले. ते गुणहीन होय तो संघ न कहेवाय; परंतु हाडकांनो ढगलो कदेवाय बे. नाव सूरि गठ श्राझापाल, श्रापमतिसु संगति टाल; थाप मते नर्बुजाणी करे, तो पुण जवसायर नवि तरे॥३५ यतः-जिणाणाए कुणं ताणं । नणं निवाणं कारणं ॥ सुंदरंपि सबुधिए। सवं जव निबंधणं॥ नावार्थ:-जिनेश्वरदेवनी आणा प्रमाणे जे जव्य जीव वर्ते तो निश्चे ते प्राणी निर्वाणपद साधी शकेले. अने जे प्राणी मनोमति आपमतीये वर्ते तेनुं सर्व अनु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगह परोक्षा. (११) ष्टान संसार वधारनार . श्राझा नंजिने त्रण कान, जिनपूजा मंडे सुविशाल तेहर्नु पण फल पामे नहि, जुन साख विचारी सही॥३३ यतः-आणा खंडणकारी । जवि तिकालं महा विनूश्ए ॥ पूएश् वीयरायं । संबंपि निरचयं तस्स ॥१॥ लावार्थः-वली जे जीव जोके त्रण काले मोटी विजूतिवडे वीतरागदेव- पूजन करे ने उतां जिनेश्वरदेवनी आणानुं खंडन करे ले थने वक्ष मात्र उघदृष्टिये वाहवाह कहेवराववामांज थानंद माने , तेनुं सर्व अनुष्टान तुषखंडनवत् निरर्थक डे, एटले जेम फोतरां खांडनारने कमोदनोलान मलतो नथी, तेम तेने पण अनुष्टाननो लान मसतो नथी. . तप जप संजम शीलविनाण, तसुफसपामे जो हुवे थाण; आणविना पण ते न प्रमाण, याचारंगे एह वखाण॥३४ यतः-अणाणाए एगे सोवठाणा, आणाए एगे निरुवाणा, एयंते माहोन एवं कुसलस्त दसणं इत्यादि. जावार्थ:-केटलाएक जिनाशायी विपरीत प्रवृत्ति पां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) — श्री सुधर्मगछ परीक्षा. उद्यमी वर्ते हे. केटलाएक जिनाज्ञानुं फल प्रवृत्तिमां निरुद्यमी . ए बन्ने वात, हे मुनि ! तारे म थान, एम कुशन (वीरप्रनु) नुं दर्शन . माटे जे पुरुष हमेश गुरुनी दृष्टिमां वर्ततो होय, गुरु प्रदर्शित मुक्ति स्वीकारतो होय, गुरुनुं बहुमान करतो होय, गुरुपर श्रा धरतो होय, गुरुकुलवास करतो होय, ते पुरुष कोने जीतीने तत्व जो शके , अने एवो महापुरुष के जेनुं मन लगार पण सर्वज्ञोपदेशथी बहार जतुं नथी. इत्यादिथापमतिना सक्षण जाण, असूत्र सवतो न करे काण; नवू करे जूनुं बोलवे, आपमति ते निश्चे हुवे ॥३५॥ जूनुं नर्बुजाणेवा जणी, विगत कहुं कांश जे सुणी; ते सांजलि कदाग्रह टाल, सुधी जिननी थाहापाख ॥३६ विरजिनेश्वर थया केवली, तेथी वरस चौदमे वली; जमालिपहेलो निन्दवथयो, कयमाणेकडेउथापीयो ॥३७ सोलम वरसे बीजो जोय, तिष्यगुप्त नामे ते होय; बेल्वे जीव प्रदेशे जीव, ए कीधी स्थापना सदीव ॥३७ वीर वरतता थया ए बेव, मुगति गया पळे कहीशुं देव; बारम वरसे पामी मुगत, गौतम गणधरनी एजुगत.३ए वीसे वर्षे सोहमस्वाम, वीर पडे गया शीवाम; Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्ममष्ठ परीक्षा. (१३) तेना चाव्या मुनिनापाट, जिलेदेखाडी साचि वाट ॥४० चनसठ वर्षे जंबु सिद्ध, बालपणाल शील प्रसिद्ध; थाएं वर्षे वीरथी, स्वयंजव थयो धर्मसारथी ॥ ४१ ॥ प्रतिबूधो जिनप्रतिमादेख, शासनदी पाव्यं सविशेख; मनक शिष्यने काजे कयुं, श्री दशनैकालिक उद्धयुं ॥४२ वीरथकी एकसो सित्तरे, जद्रबाहु गुरुगुणे अवतरे; उवसग्गहरं स्तवन करेत्र, मारी निवारीबे तिपखेव ॥४३ दश निर्युक्ति नवी जिथे करी, सूत्र अर्थ युगता संजरी; बसें चलदवर्षे वली जोय, त्रीजो निन्हव जगमांहोय ॥४४ थाप्यो अव्यक्तवाद विशेष, श्रासादाचार्य सुर देख; बसें पन्नर वर्षे स्युलिनऊ, शील प्रमाणे बड़े बहुजऊ ॥४५ अर्थ थकी पूरव जे चार, गया विधिन तेथी धार; वरस बसें वीसे व्यवधार, चोथो निन्दव थयो विचार ॥४६ थाप्यो शुन्यवाद तिथे जाण, समुछेदनुं सुषी वखाप; वरस बसें ठावीस थया, महावीरने मुगते गया || ४१ पंचम निन्द्रव थयो तेथे समे, वे किरिया वेढ्ने मतिगमे; वीर थकीत्रणसें पांत्रीश, वर्षे थयो का लिकसूरीश ॥४८ विनयवंत शिष्य परिदरी, गयो उज्ज्यनीपुर निंसरी; निगोदनो जेसे कह्यो विचार, इन्द्र फेरव्योव सती द्वार||४९०७ वरस चारसें त्रेपन प्रमाण, चीजो का लिकसूरीश जाण; Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) श्री सुधर्मगछ परीक्षा. बेन. सरस्वती वा जिणे, गई निल्ल उठेद्यो तेणे ॥ ५० चिहुंसय सीतेरे विक्रमराव, थयो उज्ज्यनी नयरी गाव; सिफसेनगुरुश्रावककीयो,महाप्रनावकनोजशलीयो०५१ वरस पंचसय चवालीस, निन्दव बहो जाण जगीश; जीव अजीव थने नोजीव, राशीत्रण तेणे हीसदीवा५५ गुरु समजाव्योपण नबिवल्यो, थापमते अजिमाने बढ्यो वरस चोराशीने पांचसें, वयरस्वामी सुरसाकें वसे ।।५३ वीरथकी वरसे पांचसें, चउराशी अधिके वली तिसे; निन्दव जाण थयो सातमो, गोष्टामाहील ते महातमो॥५४ तेणे थाप्यो ए मत वली, जीव कर्मयोग जेम कंबली; अपरिमाण थाप्या पचखाण, जावजीवनुं लोपे गण.५५ वरसें बसें श्री वीरथकी, नव अधिक जाणो वकि; खमणा नाम दिगंबरथया, सहसमल्ल पायक पापिया. ५६ जिनकल्पीन से नाम, तिणे मांड्यो मति परिमाण; नारीने उथापी मुगति, न कहे केवलीने वली नुगति. ५७ बीजा बोल घणा फेरवी, ग्रंथ कर्या श्रापे मति सवी; । एटला खगेजे हुवा मति, ते मांहि नविसमकित रति. ५७ समकित विणुचारित्रनकाय, श्रागम एहघि साख कहाय; यतः-नख्यिचरितं सम्मत्त विहणं। दसगान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ marn.. भी सुधर्मगड परीक्षा. (१५) नश्ययं ॥ सम्मत्तचरित्ताइ जुगवं । पुवंचिय सम्मत्तं ॥१॥ जावार्थः-सम्यक्त्व विना चारित्र जे जन्म मरण नाश करनार, ते सम्यक्त्व पाम्याविना चारित्रनो खान थाय नहि, श्रने दर्शन जे सम्यक्त्र ते जे जीवने उदयमां होय त्यां चारित्र होय, अने वखते न पण होय. सम्यक्त्व अने चारित्र बन्नेनो लान थाय तेमां पण प्रश्रम सम्यक्त्वनोज लान अने पनी उत्तम चारित्र नो सान थाय; माटे सर्वज्ञदेवनी थाराधनाथी जे साज जीवने थाय डे, तेमा मुख्य हेतु तो सम्यक्त्वज जाणवं, ते सम्यक्स्व अनंतानुबंधिकषायना नाश थवा. थी सम्यक्त्व परमनिधान जीव पामी शकेले. सम्यक्रम विना चारित्र नथी, अने चारित्र होय त्यां सम्यक्त्वनी जजना, अने बन्नेमां प्रश्रम सम्यक्त्व भने पनी चारित्र होय, माटे सम्यक्त्व विनातो एकडा वगरना मीमां माफक रखमवु निगोदमां थाय ... बसें वीस वर्षे वोरथी, शाखा चार प्रसेनथी ॥५॥ विद्याधर निवृत्ति नागेंड, चोथी साखा नामे चंड निवृत्ति विछि तिये गइ, विद्याधर नागेंज रही ॥६॥ शाखा चन्जतगुंठे नाम, पण नेदनो नविलदिए गम, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) श्री सुधर्मगई परीक्षा, चंचयो जेणे परिचालणी, मतिनेदे ते दीसे गण॥६१ पण जे हुंता साधु अनेक, कुसशाखा नामे सविवेक; ते सामाचारी श्राचार, नेदे नवि प्रीबीय लगार. ॥६॥ वीरथकी एके मारगे, वरस पाठसेंब्यासी लगे; साधुतणे याचारे रह्या, पड़े केटलाएक खहबद्या ॥३३॥ चैत्यवासतो ते श्रादरे, नवकरूपी पण नवि संचरे; खोजे लागे थाप्या घणा, उजमणा तप नवलातणा ॥४ साधुपंथ जे जुगता नही, ते करणी मांड्या सवि सही; मुनिवर मारग दीखोथयो, लोकप्रवाहि वाह्यो थयो।६५ परंपरा थापी बहुपरे, ते हिव जीतमांहि विवहरे, पण जे जीततणा के प्रकार, ते जोवु मन करी विचारा॥६६ एक जीत पासत्था करे, साधुसंवेगो एक श्राचरे; विहां जीत पहेलो परीहरो, बीजा उपर आदर करो॥६७ तोपण साधु केटला रह्या, देवट्ठीगणीला गुरु लह्या; नवसेंबसीवरसजोथया, सूत्रविचिनियेतोबहुगया ॥क्षणा श्मबहुआगमघटतादेखी, लिख्यालखाव्या ते सविशेखि; परोपगारतणे कारणे, सासन राखेवाने गुणे ॥६॥ संघ मेली शोधे जेटले, काल घणेरो थयो तेटले; ते माटे सूत्रे को जोय, वायण अंतर ए पद होय ।।७।। नवसयतन्नूए दीसई, ए पद प्रगट विचारि जोर; Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगढ परीक्षा. रथवखाणुं साचोतास, जेम थिरहुवें सम कितवा वीरथकी नवसे त्राणवे, एक प्रकार सउ पुष हुने; सतवादनराय पुरपठाण, न्यायरीति पाले ते जाए ॥ ७२ गोदावरीत पर तीर, सतवाहन संग्रामे धीर; एत्रो मोटो राजा गुणी, बहु देसे थाज्ञा ते तपी ॥ ७३ ॥ से उजेली नगरी जोइ, बलमित्र जाणुमित्र नृप हो; जगनीसुतते इनोदी खीच, कालिकसूरिवसे मंजस कि ॥७४ मार्गी नविनुमति केदनी, राये रीस करी तेहनी; श्राचार्यने दिसवट दीघ, सूरि विहार तिहांथी की ॥इए गया पुर पठाण जेटले, राये सनमान्यो तेटले; धर्म सांजले यादर करे, हियमे दरख घणेरो धरे ॥७६॥ छांते जरने तप कारवे, आठम पाखी इम जालवे; दिवरावे पारणे आहार, जगतिजाव आणि संविचार ॥199 पुण जोजो मन एड् विचार, वीर तीरथै बे ए परिहार; राजपिंग नवि सेवो सही, ते पुण लेतां तेपि पुर रही ॥७७ पण श्राव्यं हुंकडुं, तो पनि एह सांकडु पांचम दिनजोइए इंद्रजाग, नदीपजूस पनोतिहांलाग ॥७५ तो राजा कहे जगवन् सुपो, नहि पले दिन पंचमितणो; श्राघो पाठो एक दिन करो, एह वचन अम्हारुं धरो ॥ ८० १. जे. २ समन बगरनं. ३ श्री माहावीरस्वामीना शासनने विषे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ( १७ ) ||११ www.umaragyanbhandar.com Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ manduadAAdiv (१७) श्री सुधर्मगच परीक्षाः विमासतां नवि बेसे बंध, चोथतणी तो राखी संध; प्रमाण कीध राय श्रादेश, कालिकसूरि चित्तनिवेश ॥१ यतः-आसाढे पुणिमाएज्यिा डगलादियं गेएहंति, पद्योसवणकप्पंच कति, पंचदिणा ततो सावण बटुल पंचमीए पद्योसति, खित्ताजावे कारणेण पणगेसु बुढे दसमीए पद्योसवेति, एवं पारसीए, एवंपण गवुढी ताव कधति-जाव सवीसति मासोपुलो सोय सवीसति मासो नदवयसुछ पंचमीए पद्योसवेंति.अह आसाढ सुच दसमीए वासाखित्ते पविता, अहवा जत्थ आसाढमास कप्पोकन, तं वासप्पानग्गं खेतं अमं च णबि, ताहे तव पद्योसवेंति. वासंच गाढं अणुवरयं आढत्तं ताहे तन्नेव पद्योसवेंति, एक्कारसीन आढवेल डगलादि तं गेएहति, : पदोसवणाकप्प कहेंति, ताहे आसाढ पुणिमाए पद्योसवैति, एस नसग्गो, सेसकाल पद्योसर्वेताणं, अववातो अववातेवि सीसति-राय मासातो परेण अतिकमेठंण-वति, सवीसति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगड परीक्षा. (१९) राते मासे पुग्ने जति वासखेत्तं-ण-खन्नति तो-रोक हेवाधि-पक्रो-सवेयवं, तं-पुणिमाए पंवमीए एवमादि पवेसु पङोसवेयवं, पो-अपवेसु. सीसोपुबत्ति, श्याणिं कहं चमबीए अपवे पद्योसविधति? आयरित लणति, कारणिया चनही अद्यकालगया रिएण पवत्तिया. कहं जमतेकारणं ? कालगायरिज विहरंतो उधेणिंगतो, तबवासावासंतरंगिन, तवणगरीए बलमित्तोराया, तस्सकणिोनाया, नाणु मित्तो अवराया, तेसिं लगिणीनाणुसिरीणाम, तस्सपुत्तो बलनाणुणाम, सोयपगतिनदविणीययाए साहूपधुवासति आयरेहिं में धम्मोकहितो, पडिबुछो, पवावितोय. तेहिय बलमित्तनाणुमित्तेहिं कालगद्यो पद्योसविते णिविसतो कतो केति आयरिया नणंति, जहा-बलमित्त जाणु मित्ता कालग पारियाण नागेणियानवंति, मानलेत्तिका महंतं आयरं करेंति अन. जाणादियं, तं च पुरोहियस्स अप्पत्तियं, लणति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ nanew (५०) श्री सुधर्मगष्ठ परीक्षा. य एस सुद्द पासंडो वेत्तावि तोहिं रमो अग्गतो पुणोपुणो उल्लावेतो आयरिएण णिप्पट प्पसिण वागरणो कतो, ताहे से पुरोहितो आयरिय स्सपो रायाणं अणुलोमहिं विप्परिणामेति एतेरिसतो महाणुनावा, एते जेणपहेणं गच्छति तेण पहेणं जति रमागति एताणिवा अकमति तोअसिवनवति, ते ताणिग्गता एवमादियाण कारणाण अपतमेण णिग्गता विहरंता पतिछाएं णगरं तेणपखिता. पतिघाण समणसंघस्सय अधकालगेहिंसंदिछ, जावाहं आगहामि तावतुप्लेहिं णो पद्योसवियवं, तबय सयवाहणो राया, सोयकालगधं एतं सोळं णिग्गतो अनि मुहो, समण संघोय महयाविनूतीए पवितो, कालगद्यो पविहि यजणियं जहवय सुधपंचमीए पद्योसविधति. समण संघेण पडिवन्नं, ताहे रमाणियं, तदिवसं ममलोगाणुवत्तीए इंदो अणुजाएगाबोहेहित्ति, साहूचेतिते ण-पळोवासेस्स तो नहीए पद्योसवणा कऊन, आयरि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगई परीक्षा. (१) एहिं नणियं ण वट्टीत अतिकामेळ, ताहे रमा नाणियं, तो अणागय चनडीए पङोसविऊति, आयरिएण जणियं, एवंजवन, ताहे पमबीए पऊोसवियं एवं. (इति निशीथचूर्णो) जावार्थः-थाषाम मासनी पुनमना दिवसे वर्षाकालसुधि वापरवायोग्य चीजो (उपकरण) तथा डगल, राख विगेरे ग्रहण करी चोमासीपुनमें चोमासीपमिक्षा मणुं कर्याबाद, चोमासीलायक था क्षेत्र के केम? ते विचारमा कोश्ये पुग्युं, तो ते साधु कहे के प्रावण वद पांचम पनि बने ते खरं, तेम करतो जणायु के क्षेत्रमा योग्यता नथी, एम विचारी पांच पांच दिवसनी वृद्धि त्यांसुधि करे के यावत् एकमास थने वीसदिवस एटझे जावा शुदि पंचमीये पर्युषणा करे. शिष्यशंका (प्रभ) कोइ कहेले के वीस दिवसे कहप तथा पांच पांच दिव. सनी वृधिवकल्पस्थापनारीति संघनी बाझाबमे वि. छेद पामी ते केम ? उत्तर.-चूर्णिमांतो विछेदनी वातज जणाती नथी, विछेद एटले फरी तेनी उत्पत्ति संजवे नहिते, अने अद्यापि क्षेत्रादिकनी योग्यता तथाविधन होबाथी तेम बनवा संजवडे, ने चूर्णिकार पण एज विधि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२) श्री सुधर्मगठ परीक्षा. खखी उतां विछेद 3 एम कहे बे, परूपे , ते बाबत समीक्षकोये विचार करवो जोश्ये, जे को आ बाबतमा तित्थोबालीनुं नाम दे पण तेने लगती हकिकत तेमां नथी;माटे मध्यस्थ (तटस्थ) पुरुषोये यथार्थ चारेबाजु विचारी सस्य स्वीकार. माटे आषाढपुनमे रहेq ते मूल मार्ग , तथाविधि योग्य क्षेत्र न मले तो अपवाद . अपवादमां पण विहार करतांकरतां वीस दिवस स. हित महिनो (५० मो दिवस ) उल्लंघाय नहि. जो के क्षेत्र न मले तोपण डेवट जापवा शुद पांचमे तो श्रवश्व वृक्षहे पण पर्युषण करवू. शिष्य प्रश्न. क तिथिये रहे ? उ० पूर्णातिथिये. पूर्णातिथि पांचम तेमां का प्रमाण ले ? उ जुवो! निशीथसूत्र मूलमां,-पर्व ते पांचममांज कराय " पवेसुपचोसवेयत्वं णो अपवेसु” एटले पर्वमांज पजुसण कराय. अपर्वमा एटले 'चोथ' जे अपर्व तेमां पजुसण कराय नहि. करे तो श्यो दोष? आणजंग विगेरे दोष. आणनंग प्रवाथी प्रायश्चित्त " चउगुरु पबित्तं." त्यारे शिष्य पूछे ले के जेनुं प्रायश्चित खेवू जोश्ये तो श्यामाटे ते करवु जोश्ये. अने दमणां श्रपर्व जे चोय कराय डे अने थाप कहोडो के पर्व तो पर्वना दिवसेज थाय. ते पर्व दिवस तो पांच Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगड परीक्षा (२३) मनोज सिद्धांतमां कहेल ले ते मुकी अपर्व चौथ करवायी आणाविराधक चारगुरुप्रायश्चित तो चोथ थायज केम? गुरु कहे डे के ना! तहारी वात खरी: बे, पण कारणथी सपडाय.-बीजो उपाय न जडे तो पुष्ट कारणे करवू पडे. तेवु शुं कारण अने ते कारण श्या प्रसंगे बन्युं ते कहो. गुरु कहे जे कारणिया (एटले सकारणिक)जो होयतो कराय. जेम आर्यकालिकमहासजे करी तेम. ते या प्रमाणे:-कालकार्यमहाराज विहार करता उङोणीनगरी पधास्या, त्यां वर्षाकालमादे रह्या. (चोमासामाटे रह्या.) ते नगरीने विषे बालमित्र राजा तेनो कनिष्टत्राता (नानोजाइ) युवराजपदनो धरनार जानुमित्र हतो, तेनी बहेन जानुश्री नामे हती, तेणीनो पुत्र बलनानुनामे हतो. ते बलनानु स्वनावधी: शरल अने विनयवान होवाथी साधुनी सेवा पर्युपासना करतो, ते जीव योग्य जाणी आदरपूर्वक ते प्रत्ये धर्म कह्यो अने प्रतिबोध पामवाथी दीक्षा ग्रहण करावी. ते समय बल मित्रराजानेरीस चमवाथी जे कालकाचारज चोमासामाटे रहेला तेहने देशबहार (देशनिकालो) कस्यो. एडवां कोपण सबल कारणथी ते बलमित्रराजाना राज्यमा चोमासी करी शक्या नहि ने स्यांथी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) श्री सुधर्मगछ परीक्षा. विहार करी पश्गणनगर चाल्या. ते पश्चगणनगरमां पोताना संघाहाना जे साधु हता तेने पण संदेशो कहे. वराव्यो जे हुँ श्राद्बु त्यांसुधी तमे रदेवामाटे नक्की करशो नहि. संदेशानुं कारण एज के एकेक राजाना संबंभयो (वखो तीसरं पेदाथवाना संनवथी)दरकतपडे तो बीजा स्थानांतर अशकाय. ते नगरनो राजा जे सत. वाहन तेणे सारं मान थाप्यु, ने ते पश्चगणनगरना सा. धुये पण.श्रावकारलाथे नगरमा प्रवेश कराव्यो,अने ते. असमय कालकार्ये कयु के जात्रा शुद पांचमनाज श्रीपर्व के, ने ते वात पश्गणनगरना साधुये कबूल करी. ते प्रसंगे राजाये कडं के ते दिवस तो महारे इंजयाग थवानो तेयी साधुचैत्यनु आराधन करी शकाशे नहीं, माटे बहनो दिवस राखो. श्राचार्ये कडं के पांचमनुं श्री पर्व उल्लंघाय नहीं. त्यारे राजाये कछु, चोथ करो. आवा कारणथी राजाना आग्रहवडे चोथ करी. परंतु चलावाने माटे करी नथी एम स्पष्टरीते चूर्णिकार कही बतावे ने थने जे कोइलखे के चोथ आर्यकालकमहाराजनी थाझाथी करिये ज्येि, तो कालकसूरिये नगरमा प्रवेश करताज केम कथु के नावाशुद पांचमनां पजुसण , ने साधुये पण तेवात मान्य केमकरी. आबाबतमां चूर्णिकार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगड परीक्षा (२५) स्पष्टरीते सखे ने के, चोथनी वायतनो श्रादेश राजाए कराव्यो , पण कालकाचार्यमहाराजनो थादेश तो चूर्णिकारे पांचमनोज बस्यो . चूर्णिकारे कार्तिकपुनमनी चोमासी कर्याबाद एकमना दिवसे विहार करवानीथाशा थापेली . या उपरथी सार समजवानो के चूर्णिकार पोते चोथने अपर्व कहे डे, ने अपर्वमा पजुसण कराय नहि, अने करे तो प्रायश्चित कधू ने. माटे पर्वमाज श्रीपर्व कराय. एम खुल्ली रीते निशीथसूत्र १, निशीथचूर्णि ५, कम्पनियुक्ति तथा समवायांग टीका ३, कल्पचूर्णि ४, दशाश्रुतस्कंध.५, तथा तेनी चूणि ६, तथा पंचासक हरिजप्रसूरिकृत तेनी टीका . विगेरेमां पर्वना दिवसे पजुसरा पांचमनांज कहां ले. वली चोथ कस्यापली पांचम न थाय, एम जे कदे ते खोटुं जे. कारण के जो फरी न कराती होय तो, पंचांगावा. लाये मनाई केम करी नहि? अने जे एक दिवत्त वधे एवी कुयुक्ति करो वमल (चम)मां नाखेडे, ते पुरुषे अक्षर पंचांगीना बताडवा जोइए. हवेथी चोथज करवी थने पांचम नज करवी, एवा अक्षर को स्थ डेज नहि, थने टीकाळ पण सर्वमान्य होय तेज सत्य जाणवी. सुत्तं-जेनिख पङोसवणाए ण पजोमवेति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६) श्री सुधर्मगड परीक्षा. इत्यादि ॥जेनिकु अपकोसवणाए पड़ोसवेति इत्यादि॥दोसुत्ताजुगवं वञ्चति। श्मो सुत्तथ्योप. जोसवणा गाहा ॥जेलिस्कुपडोसवणाकाले पत्ते हा पङोसबेति। अपसोसवणएत्ति अपत्तेमतीते या जो पङोसवेति। तस्मयाणादियादोसा चल गुरु पक्षित, एससमडो॥ इति निशीबचूणौँ. था सूत्रनो सारांस ए के अपर्वमा पजुसण न थाय थने जो करे तो प्रायश्चित्त, अने पर्वमां न करे तो प्रायचित; माटे पागल न घाय, तेम पास न थाय, पजु. सपना दिवसे पजुसण थाय; इटले जापवा शुद पांचमना दिवसेज पजुसण करवां न करेतो चार गुरु प्रायः श्रित. था थाझा तीर्थंकरदेवे तेमज आचार्यनगवाने पण थापेली . प्रभ १-पजुसपना दिवसोमां ज्यारे सजासमक्ष श्री. थार्यकालिकसूरि महाराजे पोतानाज मुखथी श्री कहपसूत्र वांची संजळाव्युंहतुं त्यारे तेश्री कल्प. सूत्रमा केटलां व्याख्यान (वखाण) कर्या हतां ? श्रश्रवा तो ते व्याख्याननी मर्यादा चूर्णिकारे व. ताची के केम? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भी सुधर्मगह परीक्षा. (२) उत्तर १-या बाबत संबंधी चूर्णिकारे श्री कालिकाचा र्यजीने उदेशीने कशीपण हकीकत दर्शावी नथी. प्रभ-श्रार्यकालिकसूरिमहाराज एकज थया ले के जुदा जुदा थया ? उत्तर :-ए नामवाळा श्राचार्य एकज नथी थया, परंतु जुदा जुदा यया , ते एके-एक कालिकाचार्य दत्तपुरोहितना मामा तरीके श्रोळखमा यावे एम योगशास्त्रनो बीजो प्रकाश साविती थापे, अने ते कालिकाचार्यना नाणेज दत्तपुरोहिते तेज प्राचार्यने पूबयु के-'महाराजजी! यतुं शुं फल मले ?' आना उत्तरमा गुरुए कञ्यु के'यज्ञना फखमां नरक मले!' इत्यादि इत्यादि. वली पूर्वश्रुतसमृक थार्यकालिकाचार्य के जे आर्यश्यामाचार्यना नामथी पण थोलखमा यावे डे अने तेमणेज श्री पन्नवणा उहरेस एम श्री पनवणानी टीकाज साबिती आपो रहेख ले! वली श्रार्यकालिकाचार्य सूक्ष्म निगोद संबंधी व्याख्या प्रकाशक तरीके थोलखमां आवे के एम श्री नियुक्तिनो टीका तेमनी कथासहित साक्षी थाप ! Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ () श्री सुधर्मगछ परीक्षा. वली कालिकाचार्यजी गर्दनीलराजाना उन्ले. दक तरीके श्रोलखमां थावे , एम श्री निशीथचूर्णि बतावी रहेल ! वसी बहुश्रुत कालिकाचार्य घणा शिष्यना , परिवारवाला उतां पोताना शिष्यो अविनीत हो. वाने लीधे एक शय्यातरने जणावी पोते एकलाज विहार करीबीजे स्थले पधार्या, ए वृत्तान्तथी थोलख थापे थने एनी साविती श्री उत्तरा. - ध्ययन वृहवृत्ति थापी रहेल ! .वली श्री कालिकाचार्य राजाना थादेशने सीधे सकारणीक चोथ करनार तरीके श्रोलखाय डे अने ए विषेनी साबिती श्री निशीथचूर्णिमा विद्यमान ! प्रश्न ३-केटलाक महाशयो जाहेर करे ने के-वाचना , तो श्री स्कंदिलाचार्यजीए शरु करीने अने श्री ... देवगिणितमाश्रमणजीए ते वाचनाने पुस्तका. ___ रुढ करेल , एम यात्मप्रबोध ग्रंथमां ? उत्तर ३-हा, ते वात तेमां ! प्रश्न-केटलाक कहेले के-चोथना पजुसण करनारज सजासमक्ष श्री कल्पसूत्र वांची शके एवीज म Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगढ़ परीक्षा. (२७) र्यादा बे. जो चोथन करे तो श्री कल्पसूत्र सजानी अंदर न वैचाय ए बाबतनो खुलासो केवी रीतिनो बे ? उत्तर - समीक्षक ! तमारा कड़ेषां प्रमाणे श्री कल्पसूत्रनी व्याख्याननी अंदर अने अंतरवाचनानी अंदर ' एगग्ग चित्ता जिण सासणं मि, पावणा पूय परायणा जे ॥ तिसत्तवारं निसुांति कप्पं, जवएणवं गोयम ते तरंति ॥ १ ॥ एटले के श्री वीरप्रभुजी गौतमस्वामी प्रत्ये फरमाले के-'हे गौतम! जे प्राणी, या कल्पसूत्रने पूजी ने प्रजावनायुक्त एकाग्रचित्तनी सावधानी सहित था जिनशासनने विषे विधिपूर्वक श्री गुरुमहाराजनी पासे एकत्रीश वखत सांजले वे तों ते प्राणी अवश्य या संसारसमुद्र तरीने मोक्षने पामे.' एम श्री जिनेश्वरे प्रथम गणधर देवने कझुं. ए कथन तथा कल्पसूत्रनी पूर्णाहुती समयनो आलावो (के जे अर्थसहित आयल कामां श्रवशे से ) तद्दन खंडित थर जाय. माटे लक्षपूर्वक ए शंकानुं समाधान श्रवण करः - ज्यारे श्री कल्पसूत्र (श्री वीरप्रजु पठी ए८० वर्षे ) पुस्त ★ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) भी सुधर्मगह परीक्षा. कास्तकों, ते पीथी एवो उराव कया श्राचार्य कर्यो बे के चोथ करे तेज कल्पसूत्र वांची शके, भने ते शिवाय वांचे तोविराधक चाय. ते तमारेज विचारवानुं . मतलब के उपर बतावेस गाथाज बीजाने संजखावधानी साबिती स्पष्टपणे थापी रहेल डे के श्री कल्पसूत्र एकवीसवार सांजले तेनुं कल्याण थाय. (एम श्री जिनेश्वरेज प्रथम गण धरप्रत्ये फरमावेडं .) प्रभ ५-ज्यारे श्री जवाहुस्वामीएज श्री कल्पसूत्र रच्यु डे त्यारे ते पहेबां पजुसणपर्वनी अंदर (क. उपसूत्र रचायेख न होवाथी) शुं वांचवामां था.' बतुं इतुं ? उत्तर ५-देवाधिदेव श्रीमहावीरस्वामीजीए श्री जिने श्वरोनां चरित्र तेमज श्री वीरप्रजुना सत्तावीश जब जे पोताज चरित्र जे प्रकाश कर्यु ले तेज श्री गौतमादि गणधरोए रचेल डे अने तेज मुजब परंपरागमना थाधारे श्रुतकेवली श्री नाबाहु. स्वामीजीए कस्पसानी रचना करेल , माटे गौतमस्वामीने कोशीनेज वे कल्पसूत्रनुं महाम्य श्रीमुखे वर्षज्यु के. वाक्यनी विशेष Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगड परीक्षा. (१) सावितीमां खुद श्री कामसूत्रना अंतिम यातावामांज पुरावो ने के:-तेणं कालेणं तेणं समएणं समणेनगवं महावीरे रायगिहे नगरे गुणसिलएचेए बहूणं समणाणं बहणं समणोणं बहूणं सावयाणं बहणं सारियाणं बहूणं देवाणं बहणं देवीणं मग्ग ए चेव एवमाइकइ एवं सासद एवं पनवेश एवं परूवेश पङोसवणाकप्पो नामं अज्यषं सअहं सहेन्यं सकारणं ससुत्तं सत्यं सतनयं सवागरणं नुको जुको उवयंसेत्तिबेमि.' एटले के श्री जअबाहुस्वामी पोताना शिष्यमंडळने कहे के-में जे था कल्पसूत्रनी अंदर त्रण अधिकार अर्थात् श्री जिनोनां चरित्र १. थिविरावली थने २. साधुसमाचारीरूप वा. चना प्ररुपेल, ते में मारी भनकरूपनाथी कहेल नथी; परंतु श्री तीर्थंकरदेवना उपदेशनी में थ. धिकार कहेल ने. मतसब के-ते काल चोथाया. राना अंतने विषे, राजरा होनगरीना गुणशील चैत्यने विषे वीरप्रनु समोसर्या, ते समये घा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2 ( ३३ ) श्री सुधर्मगड परीक्षा. मुनिट, घणी साविर्ज, घणा श्रावको, घणीं श्राविकार्ड, घणा देवो अने घणी देवीउ, अर्थात चतुर्विधसंघनी सजा वचे जेवी रीते या त्रण अधिकारवालुं पर्युषणाकल्प श्रीमुखयी प्ररूप्युं, तेवीज रीते हुं (जडबा हुस्वामी) पण तमो शिष्यवर्ग ने चतुर्विधसंघ अगामी कहुं हुं. तात्पर्य एज के श्री वीरप्रजुए कई एकलाएज कोइ एकांत खूणानो आश्रय लइ या त्रण वाचना यांची के कही नथी, परंतु चतुर्विधसंघ सम्यक् दृष्टिवंतनी सजामां बिराजमान थइ स्वयं वाणीac aण अधिकार गौतमादि गणधरदेव प्रत्ये प्ररूपेल बे. तथा जेम ते गौतम तथा सुधर्मास्वा - * मीए जेवी रीते ए त्रणे वाचनानने श्रमलमां मूकी तेवीज रीते हुं (नद्रबाहुस्वामी) पण गुरुपरंपराक्रमवडे ते अधिकार न्यूनाधिक कर्या त्रिनाज कहुं हुं. ते त्रण अधिकारवानुं पर्युषणा कल्पनाम अध्ययन 'स' कहेतां प्रयोजनयुक्त, परंतु निरर्थक नहीं. 'सदेवयं' - कहेतां हेतुसहित बे, एटले के जेम गुरुराजने अथवा वडीलोने, २. या व्याख्या टोकामां बे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगल परीक्षा ( ३३ ) तथा जेनी निश्राये रह्या दोय तेजश्रीने पूढया बिना के तेन धीना आदेश (हुकम - श्राज्ञा ) विना कंपण काम कर कल्पे नदीं. केमके याचार्य महाराज ते संबंधी तपास करनार अथवा तेमनुं दित चाहनार होवाथी जेम आप कल्याण थाय तेम करवाने समर्थ बे, माटेज तेश्रीने पूर्वी, ते श्रीनी श्राज्ञा मेळवी दरेक क्रिया-कार्य करवाथीज लाज बे. जो तेम करवामां आवे तो ते कार्य करनार दशविधिसाधु चक्रवाल समाचारीनो पण आराधक थाय बे. 'सकारणं'कदेतां साधुने सुखे संयमयात्रानी आराधना तथा समाधिना लायक तथाविध योग्य क्षेत्र नः मले तो अपवादे आषाढी पुनम वीत्यावाद पण बीजाक्षेत्र ने माटे तपास करतां पांचपांच दिवसनी वृद्धि कहे. यावत् पर्व दिवस जाऊवाशुदी पांच में वस्ती न मले तो जाम नी वे रहेवुं, पण एक डगलुं आगल जरखं नहीं. ए विगेरे घणां कारण बताव्या बे, तेनुं नाम सकारण, पुनः 'ससुत्तं सत्थं सजयं' कहेतां सूत्रसहित, अर्थसहित, उजय सहित, 'सवागरणं' - कहेतां पूवेला अथवा अप पूवेला पदार्थनी व्याख्या तेथे कर सहितः Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat · 4 www.umaragyanbhandar.com Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (8) श्री सुधर्मगछ परीक्षा. 'मुजो जुजोति' कहेतां वारंवार, 'नवदंसेइत्तिबेमि'-कहेता श्रोताजनना हितनेमाटे उपदेशकरे जे, तेमज जे प्रमाणे श्री तीर्थकरदेवे प्रण अधिकार गणधर जणी (प्रत्ये) प्रकाश्या, अने ते श्री गणपरमहाराजे शिष्य प्रशिष्यने जे मुजब प्ररू. . प्या तेज मुजब हुँ पण चतुर्विधसंघ समक्ष ते श्रण अधिकारज संनसावु वं. मतलब एज के था परूपणा गुरुपरंपराधमे परंपरागमनी रीति प्रमाणे में परूपणा करी पण में मारी मतिकल्प नाची फ्रूपणा करीनधी. . प्रम-महावीरस्वामी पोतानुं चरित्र पोते कहीशके ? - उत्तर ६-हा, कही शके. जो न कहे तो बीजा केम जाणी शके, किंतु पोताना मुखश्री पोतानी प्रशंसा न करे पण चरित्र तो कही शकेज. तो पजुसण चोथे कयु, राजातणुं वचन श्रादयु; पचाससीत्तरदिनराखवा,चनमासीचनदादनव्या तिणकारण चौमासी फेरवी, बन्दसनेदिन अरहिवी; पर्वतिथि एम भरहीकीध, परंपरागम नहु मन खीध ।३ .. यतः-तथा चतुर्दश्यष्टम्यादिषु तिथिषूपदिष्टा सुतथा पौर्णमासोसु च तिसृष्वपि चतुर्मासकति. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A.SA-PAAN-AAAAAAA श्री सुधर्मगड परीक्षा. (३५) थिवित्यर्थः ॥ एवंनूतेषु धर्मदिवसेषु सतिश येन प्रतिपूर्णायः पोषधोक्तानियह विशेषस्त; -प्रतिपूर्णमाहारशरीरसंस्कारब्रह्मचर्याव्यापाररूपं पौषधमनुपालयन्संपूर्ण श्रावकधर्ममनुचरति. नावार्थ:-चउदश, आठम, पुनम पटले चोमासानी त्रण पुनम (थाषाढीपुनम, कार्तिकपुनम, फागुण नी पुनम)एपर्व विगेरे पुएयतिथीयोने विषे,(इत्यादिक धर्मना दिवसोने विषे) अतिशय मनोहर अने संपूर्ण एवोजे पोषधवत थनिग्रह विशेष, तेने संपूर्णरीते पठले थाहारनो त्याग, अने शरीरसंस्कारनों त्याग, ब्रह्मचर्यपालन, व्यापारत्यागरूप पोषधवतने पालन करता संपूर्ण श्रानकधर्मने याचरण करे . एवो रोते चोमासी त्रण पुनमनी सूत्रकृतांग जगवती, उत्तराध्ययन थादि सूत्रोन। वृत्तिमा बतावेली ने तेने मुको घने चौदशने दिवसे चोमासी करवानुं कर्यु. एवी रीते त्रण पर्वतिया चोमासीनी फेरवी. वरस नवसें चोराणुं हुए, कालकसूरी कालगत हुए; . धागे चालचलावी राय, जेण ऋषिपंचमी नवोलोपाया इम फेरव्या पर्व शासता, अनाही दोसे लोपता; पांचम पुनित पारंजकरे, तो कित ते जिन थानाधराज्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) श्री सुधर्मगल परीक्षा. maumar.. सूरियाण जिनथाझा पाय, बलवंते किमहिनवि थाय; जिनधाझाजीहांलोपाय, विनय(मूळ)धर्मतिहाथीजाय, , यतः-आणा जिणंदाणं । नहु बलियत्त राहु आयरियाणा ॥ जिन आणा परिनो। "एवंगछो अविणीन्य ॥१॥ नावार्थ:-जिनेश्वर परमात्मानी श्राणाथी खरेखर श्राचार्यनी थाणा बलवान थर शके नहि, अने जिने. श्वरनी आणाथी परिघ्रष्ट (विरुक) थएला एवा पुरु'षोनो जे गछ ते पण थविनीत पुरुषोनु टोझुं गणाय, पण गड गणाय नहि. युगप्रधान कालिकसूरिने, कहे तेइ न विचारे मने; कालिकसूरिकवणगबथयो,कवणाचारतिणेथापीयो। सासु गछ नावडहरो सही, पञ्चखाण वंदण तेणे नहि; पहेलो पमिक्कमे रियावही, सामायक विधि पछे कही। पाखी चडमासो चनदशे, करे पजुसण चनथे रसें; करे प्रतिष्ठा जेणीवार, मांडे नांदि विशेष तेवारणा पहेरे कंकण ने मुडी, बाजुबंध बहिरखी जडी; *मान करे बंधे नवग्रही, सदश जुअतु पहेरे सही ।ए करे विलेपण रुडा गात्र, संघ संघाते करे जलजात्र; मालारोपण ने उपधान, ते तो माने दोष निदान॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगड परीक्षा. (३७) महानिशीथ न ते सदहे, श्रावकने चरवलु नवि कहे;; दिनप्रती देवीनी थुश् चार, नघे दशी प्रखंब विचार गए। युगप्रधानकालिकगुरुतणो, काउसग्गकरेचिहुंखोगस्सतणो अंतर पडिक्कमणे पुण जोय, एवाबोल घणातिहांहोय ।।३ न करे बोल घणा जे इसा, युगप्रधान तिणे मान्या कीसा; एहमांहे जेह काढे खोड, उन्नय ब्रष्ट मांहि ते जोड ॥ए। नविमानी तेणेजिनवराण, कालिकसूरि कर्याचप्रमाण, तोतिहांआराधकपणुं किश्यु, पख्याप्रवाहनजाणेश्श्युं एवं के कहे कह्यो श्री महावीर, कालिकसूरी होशे गंजीर, ते चोथे करशे ए पर्व, ए पण कल्पित उत्तर सर्व ॥ए॥ +-सूत्र न कालिकगुरुर्नु नाम, तो किम कहीए पजुसणगम, जाण इशे ते जोशे सूत्र, पाप नीरु टालशे उसूत्र |एsir पाट सत्तावीशमाहे नहीं, कालिकसूरी विचारो सही; जावमहरातणा गछटाल, पाट नाममाहे म निहाल ।ए पण जे लोक कदाग्रह नयों, लोधा बोल कहे अनुसयों; . होशे विधेकी ते जाणशे, पोतानो मत नवि ताणशे॥एका (जनजाषित श्रागम अनुसार, करे थापना सूत्र विचार;' - तेहतणा सवि सरशे काज, लेशे अविचलपदनुं राज॥१०० कटपे थरहुए पण जोय, दश पंचक पण रहे संवष्ठर पंचमी सही, तेतो श्राघु पालुं नहि ॥१०॥ काल विशेषे घटता श्रया, पूर्व अपमात्र का रह्या; Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -AnARANA vAAAAAAAA (३०) श्रीसुधर्मगड परीक्षा. सहस वरसे पाम्या रिछेद, सत्यमित्रथी एहज जेद||१०२ सहस थहोतेर वरसें जाण, वीर पनी पोषालमंडाण; पोरबकी बरसे चउदसे, पडस अधिके जाणो रसे१८३ः बड देठे वडगह थापिया, चनरासी थाचारज किया; . ते चउरासी म जाणवा, वडगठाना मन थाणवा ||१०४ सहनी सामाचारी एक, तेह मांहि नव द अनेक; बमपीपलसीकांतीजोय, बोकमायाजाखडीयाहोय॥१०५ हारेजा जीराउल नाम, एवमादि चनरासी गम; एक उपाध्याय अलगो हतो, काले गुरुपासें पूहतो॥१०॥ तेरे पण श्राचारज कीयो, पंचासीमो गढ थापायो; तेथी केटले काले जोय, राजसनामां चर्चा होय ॥१०॥ कंस पात्र गाथी जीकली, खरतर नाम ग्व्यो तिहां वल); विद्युत्तरश्रधिकवरससयसोल, कीधोआचारणादंदोल१०० बोज एकसोने चोवीस, फेरे जिनवल्लन सूरीस; वल। अनेरा गछ उसवाल, कोरंटा संडेरा वाल ॥१०॥ धर्मघोष नाणा पलिवास, बे वंदणिक चित्रावास वित्रावासअनेब्रह्माणिया, मलधारावादिकजाणोया॥११० एहनी नुत्पत्त नवि जाणीये, अणदो क्यांथो श्राणोये; . थणसांजल्युथदीकुंकहे, तेनरथतिघणपातिकलहे ।१११ वरस 'सोलसें उगणत्रीस, पुनमगह थापन जगीश; वीरसंवत. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगड परीक्षा. (३९) परासीअधिक सोलसे, वरसे अंचसगडमति चलें।११२ घणा बोलना अंतर कर्या, ते पण घणे जणे थादर्या : रजोहरण बने मुहपत्ति, श्रावकने नवि मापे बति।।११३॥ श्रावकने पडिकलण न कहे, श्रावश्यक नवि सहदे . पाखीाउमगणत्रीकरे, म अंतरअतिषणाचरे ॥११॥ ... यतः बारह चनदोत्तरये । अंचलिया तहय .. भागमा जणिया ॥ इत्यादि. ... जावार्थ:-विक्रम संवत १५१५ वर्षे थंचखगड तथा थागमिगह थयो, इत्यादि. चरस सत्तरसें बीते नगम, श्रागमगड धराव्यो नाम, घण युगणत्रीए पर्व, पडिक्कमणे थंतर सर्व ॥११॥ पोसहमांहि अंतर घणो, अधिकमासे पासण तणो; योगविधि नांदि फेर घणा, मन विमासजुर्ग तेहतणा।।११६. धीरथकी अवधारो मने, वरस सतरसे पंचावने; चित्रावालयकी नीकल्या, तपागल नामे सांजस्या॥११॥ - यतः-बारस. पंचासीए । बंडिय निय निय गुरूण मजायं ॥ विजापुर नयरंमिय। तवा मयं . देवनदान॥१॥ भावार्थ:-विक्रम संवत् घारसें पंचासीमा (१२ण्य) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (10) श्री सुधर्मगड परीक्षा. पोतपोताना गुरुनी मर्यादा बोनी, एटले चैत्रवालगल. ना जे श्राचार्यों तेनी मर्यादा तोमी-चैत्रवाल गहथकी अलग था विजापुर नगर। विषे देवनाथकी तपामत प्रगट थयो. तिणे गच्छथाचरणा विज्ञान, नहीं मालारोपण उपधान; श्रावकने पण नहीं चरवलो, इत्यादिक अंतर सजिलो॥११७ तसु समाचारी नवि करे, सूत्रपंथ पण ढीलो धरे; परंपरा मुख थापे घणी, न जाणीये ते किणही तणी ॥११ए सत्रश्रर्थने कूमो देखी, जो कोइ पूले सविशेखी; परंपरानुं लेश नाम, लोकतणुं मन थाणे गम ॥ १०॥ लोक न जाणे ते परे.इसी, परंपरा दाखे डे कीसी; परंपरा तो.तेहज खरी, जे जिनवर गणधर श्रादरी॥११ पण जे थापे थापापणी, तेहने माथे कोश् न धणी; तेंतो डाह्या माने फेम, सूत्र विचारी जुन एम ॥ १५॥ । । यतः-जा जिणवरेहि नणिया। गोयममाई.. हिंधोरपुरिसेंहि ॥ सा-सच्चचिय मेरा । पालि: यत्वा पयत्तेणं ॥१॥ जावार्थ:-जे मर्यादा जिनेश्वरोए कही अने गौत. ( १. चित्रावालगवन विषे. २. विशेषे करीने. . . . . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मग, परीदा. (४१) मादिक धीरपुरुषो (गणधरो) ए नाखी, तेज मर्यादा साची मानवी अने तेज मर्यादा प्रयत्न करी आदरै करवायोग्य ( उपादेय), अने तेथीज स्व परतुं का व्याण थाय . संवत पंदर पंचाशीए, क्रियातणी मति प्राणी हिये; थया ऋषीसर किरीयावंत, वैरागी देखीता संत ॥१२३॥ ते मत साचो कदे आपणो, बीजाने उथापे घणो; घणा पाट देखामे जणी, परंपरा थापे आपणी ॥ १५ ॥ न कहे साधुपणानी विगत, पाट नामनी थापे युगत; पण जे जाण हुवे ते जीय, साधुपणाविणु पाट नहोया.२५ गुरु लोपी पापी सहु कहे, तो कां बांमी अलगा रहे; सहुनुं माथा शिरुं पोषाल, ते बांडी को पड्या जंजाला५६ जो कहे ते आचारे होणं, तो पाट नाम को थापो लीण; जो गुरु तो निंदो कांइ तास, सेवो तेहनो गुरुकुशवास।१२७ साधुतमा विण दाखे पाट, तेज म जाणो सूधी वाट; जो ते सुधा गुरु जाणीया, तो लोपी कां अलगा थया ।१२७ गुरु लोपंता पातिक बहु, श्म मुख लोक कहे जे सहु; श्मतो प्रत्यनीकपणुंथाय, तो केम जिनमतआराधाय।१२। सूत्र समाचारि जे रहे, तेने निगुरा निगुरा कहे; ते उपर सांजळो विचार, मनमाणो आमलो लगार ॥१३० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (०१) भी सुधर्मगड परीक्षा ने माने जिनवरना वयल, तेहना विडंपरे निर्मल मराणा लपसीपरे ते समुरासहि, जगगुरुनी जिणेथालावहि ॥१३३ यतः-आगमं आयरं तेणं । अत्तणो हिय कंखिणा ॥ तिबनाहो गुरुधम्मो । सधे ते बहु मनिया ॥१॥ .. भावार्थः-पोतार्नु हित छनारा पुरुपोए श्रागमप्रत्ये बहुमानपूर्वक थादर करी श्रमान करवू, अने जे पुरुष ते प्रमाणे करे ठे तेणे तीर्थंकरर्नु तथा गुरुर्नु तेम धर्मनुं पण बहुज मान कथु गणाय. जे कोई दवणाने समे, किरीया मारग रुडे रमे; तिणतो श्रापणा गुरुनो संग, लोप्या दीसेने बहु जंग॥१५५ ते गुरुने वंदे पण नहि, जे वंदे तलु वारे सहिः पासधा उसन्ना कही, तसु अगुण बोले महि॥१३३॥ तेदनी दीक्षा व्रत उचार, वली करावे बीजी वार; नली प्रतिष्टे प्रतिमा जाण, नविमाने आदेश प्रमाणा१३४ तेह तणी न करे थापना, नवि थाणे गुरुनी नावना; श्रावक जे समजाव्या तेणे, तेइने पण स्वामी नवगणे॥१३५ तसु मांमधि न करावे क्रिया, तो ते कहोकेमगुरुजाणिया; मारी मात तो घंध्या केम, ए उखाणो जोवो जेम।।१३६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुमंगल परीक्षा. (YB): सूत्रे का करंडा चार, राय? शेव‍ गणिकार चर्मकार४; पद समाध्याचारज कझा, सुगुरुसणे वचने सहया ॥ १३७ यतः चत्तारि करंडगा पन्नत्ता तंजहा. राय करंडगे, गाहावइकरंडगे', वेसाकरंडगे, सोवाग करंडगे. एव मेव चत्तारि प्रायरिया पन्नता तंजहा. राय करंडग समाणे, गाहावर करंडग समाधे, वेसा करंडग समाणे, सोवाग करंडग समायें ॥ * जावार्थ :- हे जगवन् ! करंकीया केटली जातना बे ? हे गौतम ! चार प्रकारना. ते या प्रमाणे:- प्रथम करंडीयो राजानो - ते बाहारश्री रवियामयो अने अंदर पण तेजोज उत्तम हीरा, सायक, पक्षा तथा सोनाना श्राजुपाथी रजिन दोषते. वीजो करंडीयो शेठीयानोबहारथी देखावनां कि विक, पण अंदर सारा पदाश्री संपूर्ण नरेसो होय बे. तोजो करंडीयो वेश्यानोतेमां आभूषण बहारी जपका ने अंदरथी पोल, ढमढोल खाली चल काटी लोकोने फंदमांज पाडवा सारु दोष बे. अत्रे चोयो करंडीयो चंडालनो - ते वहारथी पण चांममानो अने अंदर पय केटलाक हाडकां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (18) श्री सुधर्मगल परीक्षा. तथा चाममाना कटका तेणे करी संपूर्ण होय . तेम गमे तेटलो धनवान् चंडाल होय, तोपण रात दिवस जातनो धंधो चांममाना वेपारनोज होय , तेवी रीते आचारज पण चार प्रकारना जाणवा. जेमके, बहारथी शुद्ध, अने अंदरथी पण याचारे शुरू. १, अने को बाह्यथी आचारे मंद, पण अभ्यंतरथी श्रझा तेमज परूपणा शुद्ध करी अनेक नव्य जीवोने तारनार.२, अने कोश्क बहारथी लोकने मफाण बतावनार, अने अंदर काहीन, शुरू परूपणाना वेरी, अने निर्गुणी, पुष्ट विषय कषायथी बाकटा बनेला, जेनी बगती पत्ररनी माफक होवाथी भागमरस प्रवेश करी शके नहीं, बीजाने पण तेवाज पोताना सरखा मदांध करा. वनारा.३, अने कोक चंमाल जेवा तेतो सर्वथा त्याज्य, जेनुं दर्शन करवाश्रीज अकल्याण थाय, तेवानी दण मात्र पण संगति करवी नहि. वली आ प्रसंगे महानिशीयसूत्रना अध्ययन तथा तेनी चूलिकाना अंतमां गह कोने कहीये, अने गन्छना लक्षण विगेरे हकीकत ने. ते जाणमा लेवानी बहु जरुर ने, वली सावध अने निरवद्यनी समजण माटे बहुज समजाव्यु डे. महानिशीथसूत्र परम रत्न डे, जे सांजलवा माटे सर्वथा मनाइ करे , पण तेमांनी केटलीक बाबतो सांगलवायी दुरा. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगष्ठ परीक्षा. (४५) नो नारा सम्यक्त्वनो वास याय डे, किं बहुना तथा महानिशीथसूत्रमां उपधानविधिनी हकीकत बे ते कया कया सूत्रनी बे; ते बींना सविस्तर त्यां च्यापेली बे.. जे उपधानविधि करे बे तेमां करे मिनंते तथा वांदणा तथा वंदितासूत्र तथा पञ्चखाणसूत्रना उपधान मूकी फक्त नवकार १, इरियावदी २, लोगस्स ३, शक्रस्तव ( नमोत्थु ) ४, पुखरवरदी ५, सिद्धाणं बुझाएं ६, घाटलामां आवश्यकना उपधान थाय बे; एम कोइ माने बे, परंतु तेम मनाय नदि; कारण के तेमां सामायक, (करे मिते) वांदणा, वंदितु, पञ्चखाण, या चार यावश्यकना उपधानतप वह्याविना संपूर्ण यावश्यकना उपधान मनाय नहि. छाने मात्र चैत्यवंदन विधिना उपधान कहो तो मात्र चैत्यवंदननी विधिना उपधान गणाय, पण आवश्यकना गणाय नहि. विगेरे विगेरे हकीकत योग्यगुरु गीतार्थं पासे समजवाथी अनिवज्ञान लाज प्रगट थाय बे. ए चिहुंनो जाली सुविचार, कद्देवानो की धो परिहार; शुद्ध करंडा नवि बंडाय, अशुद्धना किम पाट काय ॥ १३० जो कड़े ते जाएया मठपति, क्रियाहीण ने असंयती; ते न कहे सुधा धर्म वाट, तो तेना कांइ जाखोपाट | १३९ जो कड़े सामाचारी एक, तेथे देखाड्या पाट विवेक; Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - (४५) यीसुधर्मगड परीक्षा. तोते जुथोचित्तविमास, ममनूलोणवचन विशास॥१४० सुधर्मनी थाचरणा जुर, एहनी परे घनेरी हुश्; सूत्रवचन जोतां घणुं फेर, जेटलो अंतर सरसव मेर।।१४१६ एक कहे वहीये उपधान, एक कहे थविधी निधान; पोसह एक चिहुं पर्व कहे, सदाकाल के सबहे ॥१५शा एक पोसहमा जमण न कहे, जल पीवू पण नवि लइहे। एक थापे जिमवो ने वारि, बहुअंतर पोलह उच्चारि॥१५३ वळी जू जूआ थापे पर्व, बाठम पाखि आदिक सर्व अधिकमासपसण घणा, दिसेजगमांसविगछतणा॥१५४ सामायिक उचरतां नेद, योग नांदिरिधि घणा विजेद; एकदिकतिथिकरेप्रमाण, पडिक्कमणावेताश्कजाण ॥१४५ गणतीयें एक पर्व कहत, पमिलेहण बहु अंतर ढुंत; एक कहे साधु प्रतिष्टा करे, गृही करे का जवा१४६ देव वांदतां अंतर घणा, थुइ तिन्दि ने चारह तणा; पनिकमणे पञ्चखाणे नेद, सहहणाना घणा विजेद॥१४॥ एक कहे नारी न पजे देव, आंतर गुरुवंदन वह नेवा सामायिकउत्तरासंग कहे, वार बे अधिकुंनधि सहहे।१४७ रजोइरणने वली मुहपति, श्रावकने नदि थापे उति; एकनुंकारे पण अंतरो, आपमते ते पण पाचों॥१४ए। एवमादि परि कहुं केटली, जग माहे दीसे जेटली; Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगध परीको. ( as ) चंडुगहना जसु परिचय शे, ते सांजळी अंतरावशे । १५० मांदोमां मंदे वाद, एक एकनो उतारे नाद; एक एकने खोटा उथरे, परदरशणी सखायत करे ॥ १५सा जो हुइ सामाचारी घणी, तो कां थापे थाप धारणी; पण जोजो बोकी मन राग, वीतरागनो एकज माग।१५५ यतः - मूढा एस इ । चुक्कंति जिगुत्तवया मग्गान ॥ हारंति को हिलानं | आयहियं नेव जाति ॥ १ ॥ ; जावार्थ:- मूढ एटले, मूर्ख माणसनी एवीज टेव छे के, जिनेश्वरे करेल जे श्रागममार्ग तेथी चूकी जाय वे धने वोधित्रीजने हारे छे. ध्यात्महितने तो जाणताज नथी, केमके तेश्रोनी एवी स्थिति होय बैं; माटे मूढवृतिने स्वाग करी जिनेश्वरनी थाणाने धारा धवी के पोथी कल्याण द्याय. यतः - जंकिंचि णुठाएं। जिणंद आलाएं बहु फचं होइ ॥ जह asana बीयं । धित्यारं लह वुते ॥ १ ॥ भावार्थ:- जे कोइ अनुष्ठान (क्रिया) ( जनेश्वरनी श्राज्ञापूर्वक थाय, तो ते किया बहु फळ आवनारी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) श्री सुधर्मगच परीक्षा. थाय . जेम वडवृदनुं बीज नानुं पण क्रमे क्रमे वृद्धि ने पामे डे, तेम आणापूर्वक करेल क्रिया पण विस्तार वाळा फलने थापे . केमके थोडीपण क्रिया श्राणा सहित करेख होय तो पापना समूहने नाश करे , भने बाणारहित पूजा, पञ्चरुखाण, पोसह, उपवास, दान, शीलादि सर्व क्रिया निरर्थक कासकुसुम, सेलडी कुसुमनी माफक थाय . तेनाथी कां फल थतुं नथी. यतः-सम्मत्त रयण नवा । जाणंता बहु विहावि सत्था ॥ सुधा राहण रहिया । नः म्मति तत्येव तत्थेव॥१॥ __ लावार्थ:-सम्यक्त्वरत्नथी चष्ट थएला कदि बहु शास्त्रोने जाणता होय तोपण शुरु श्राराधना (सेवना) ए करी रहित जे होय ते तिहांने तिहांज जमे पण तेश्रोतुं निस्तार थाय नहि, केमके धर्मर्नु मूल सम्यक्व , एवो उपदेश देवाधिदेवे आपेलो. ते सांजली बुद्धिमान् पुरुषे दर्शनथी हीन थयेला एवा पासस्था, ओसन्ना, कुशीलीया, शंसत्ता अने अहबंदा तेश्रोनो , संग त्याग करवो, अने तत्वदृष्टिवाला जिनेश्वरनी थाणारूप मुगटने धारण करवावाला, शुभ निर्जयपणाथी उपदेश देवावाला, विधिमार्गना खपी, विधि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगच परीक्षा (ए) उपर बहुमान करवावाला, एवा पुरुषरत्नोनो संग करवो जेथी आराधकपणो थाय. परंतु पुन्यना उदयभी तेजोगमले. यतः धन्नाणं विहियोगो। विहिपस्का राहगा सया धन्ना ॥ विहि बहुमाणा धना। विहि परक प्रदूसगा धन्ना ॥१॥ ' नावार्थ:-जाग्यवान् पुरुषोने विधिमार्ग,अने विधि मार्गे चालनारा पुरुष तेनो योग मळे , बीजाने ते योग मलवो घणो दुर्खन डे, थने मळेलो विधिमार्ग तेने सेवन करनार पुरुषो जाग्यवान् बे; केमके सेवन करवानी श्छा थवी ते पण दुर्लन डे अने ते जाग्यवान्ने थाय , श्रने विधिमार्गने बहुमान आपनारायो भने ते मार्गने दुषण नदि लगाडनारायो पण जाग्यवान् गणाय ३. केमके केटलाएक पुरुषोबे अक्षर जणी थारनज्ञानी. नुं मोल करी पोताने ते मार्गे चालवू कडु चरियाता जेवु लागे, तेथी खोटी ब्रमणामांनुसाइज जे पोता. नी आत्मा अने बीजा नमक स्वनाववाला नव्यजी. वोने सरल मार्गश्री ऋष्ट करी नांखनारा जगत्मा घणा होय . अश्रवा नवानिनंदी जीवो अने विषयान दि जीवो पण तेवीज रीते स्वपरने वावी देठे. जे माणस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) श्री सुधर्मगल परीक्षा विधिमार्गनी निंदा करे ले ते पोतानी दुष्टता ते बड़े प्रगट करे , अने उत्सूत्र प्ररुपणनो दोष पोताना माथा उपर वहोरी ले ले. मात्र दृष्टिरागथी ते जीव संसारमा बहु नमे , घणा दुःखो सहन करवा पझे जे अने बोधीबीज पामq घणुं तेने मुश्केल यश जाय डे; माटे नव जयजीता गुण धारण करी सुविहित श्राचार्य महाराज अने जिनागम तेनी आराधना (सेवना) करवी. केमके तेज दिव्यनेत्र डे थने ते न होय तो दुःसमकासमां उत्तममार्ग पामवो घणो दुःकर . - यतः-कत्थ अम्हारिसा पाणी । दृसमा दोस दूसिया ॥ हा अणाहा कहं हुंता । न । हुँतो जश जिणागमो ॥१॥ नावार्थ:-दुसम कालना दोषे करी दूषित थयेला अमारा जेवा प्राणी अनाथो क्या ! हा इति खेदे जो जिनागमन होततो शी वले थात! एवी उत्तम नावना भागमविधिमार्ग उपर करवी. बागम उपर बहुमान राखनारा बहीमिक प्रेमरागे करीने रक्त एवा जे जीवो तेश्रोनोज कल्याण थाय . एवडा मत कीधा जूजुश्रा, तेह्ने माथे गुरु कुण हुआ; Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगड परीक्षा. (ऍ?) आप आपण मत अनुसार, वरते बहुल नवलच्याचार। १५३ सामाचारी कड़े जे नवी, सूत्र अर्थ मारग फेरवी; दीपाचारी गुरुने कहे, यापमते जइ लगा रहे ॥ १५४॥ इम करतां जो सगुरा होय, तो जगमांदि न निगुरा कोय; पापणे बंदे जे रहें, तेढ्ने कहो सगुरा कुण कहे । १५५ छाने सत्य. जो हुइ परंपरा, साधु पाटमांहि बाजे खरा; तेतो गुरु जाने दोहिला, जो जो जिनमतमांहे जला । १५६ ते माटे गुरूपरीक्षा करो, जूनो मारग जो६ श्राचरो; कुपुरु संग ठंडो हलबोल, सद्गुरु संग करो कल्लोला १५७ के कड़े सुरुकुल आपणो, न लोपिनें तसु उत्तर सुणो; कुलगुरु जिनशासन न कहाय, गुणवंतदेखी च्यादरश्राया १५० यतः - नो अप्पा पराया । गुरुणो कइया वि हुति सहाणं ॥ जिए आप रयण मंडण । मंडिय सधेवि ते सुगुरु ॥ १ ॥ इति वचनात् . जावार्थ:- आपणा गुरु ले, या बीजाना (परना) गुरु बे, एवी रीत भावकनी होय बहि. किंतु जिन आज्ञारूप रतनवमे शोजित होय ते सर्व सुगुरू आणत्रा. या आपणो लागनापाटीयासमान गष्ठ, अने बीजानोतो मत, अने या आपणा गुरु, बीजातो कुगुरु, वली बीजा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) श्री सुधर्मगष्ठ परीक्षा, पंचांगी मानता पण नथी, आपणा चैत्य तेमांज अव्य थाप, बीजाना देरामां न आप, था थापणा गुरुनंज वांदवा, बीजातो ढींगला ढींगलीसमान तथा होलीना राजा तथा धूलीपर्वसमान जाणवा. पण "पांवकी तलेकी नहीं सूजे भाग मूरखकुं, रसुं कहत तेरे सीरपे बलतुं हे ए न्याय याद तो करो! सकल पंचांगी श्रमे मानीये बीये ! "शुवा राम राम" माफक बोली लोकोने घहेकावी जरमाववा, वली साधु संविझपद धरनार उतां क्षेत्र, पुर, पाटण तथा देश तथा उपाश्रय, धर्मशाला विगेरेमा ममता पोते करे भने श्रावक पासे करावे के थापणी जग्यामां को त्यागी महंत पुरुष होय तोपण वासो वसवा देवो नहीं, परंतु साधु थतां विचार करवो जोश्यके पोतानां घरबार कुटुंब त्यागकरी वळी मुकामनी ममताकरवी ते करवाथी सर्वपरिग्रहत्यागनामना पांचमा महाव्रतनोनंगथाय. वलीअतिगृहस्थपरिचय ते नियम (मर्यादा) थी उपरांत वरते तो प्रथम पहोर तथा बेला प्रहरमां स्वाध्याय पण बनी शके नहीं, वळी स्वेच्छाचार। गुरुसोही थक्ष, आणा जंग करी पोतानी श्छाए साधु साध्वी एकाकी विहार करे ते पण संसार वृधिनुं कारण. एक घर बोडी हजारो घरनी फीकर करवी ते साधुनो आचार नथी, माटे बावालोकना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ~ श्री सुधर्मगड परीक्षा. (५३) मनी पेठे साधुये मपतिपणुं करी मुकामनी ममता करवी नहीं. त्यागी थ बीजाने बोध करे के आसार संसार डे अने पोते नित्य कजीया करे, अहंकार मम. कारथी गरकाव होय, अने गुरुकुलवासथी व्रष्ट यश ते अनंता-बंधी कषायतुं शरणुं ले , माटे संविज्ञ पुरु. षोये ग्रहणमेधावी१, श्रुतमेधावी२, मर्यादामेधावीर थ, जेथी पोतार्नु कल्याण थाय. वली था स्थले याद राखवा- डे के अढार पापस्थाननो त्याग करी कोइ वात जोयाविना, सांजल्याविना करवी ते अन्याख्यान (कुडो कलंक) थापवा जेटदु थाय बे, अने एटझुंज नहि पण ते माणसने वगर हथियारे खुन करवा जेटयुं पाप वहोरीलेवा जेवु थाय बे; माटे तेथी अटकवू, अने श्राचारसमाधि', श्रुतसमाधिर, तप समाधि३, विनयसमाधिनुंध, अवश्य ज्ञान मेलवधानी जरुर बे. वली विषकिया, गरल क्रिया तेनाथी दूर रहे, श्रने महानिशीथसूत्रना तप करवा, योग वहेवा, वहीने ते सूत्र सुगुरु सुविहत पासे तेनो अर्थ जो जा. णशो या सांजलशो तो सत्यज्ञानसूर्य तमारा हृदया. चलमा उदय थवाथी मिथ्यात्व अंधकार पूर श्रशे; माटे खास महानिशीथसूत्रनी आराधना करी जणवानी, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ama (५४) श्री सुधर्मगध परीक्षा. श्रर्थथी समजण खेवानी जरुर , तोज तमने परंपरा. गमनुं ज्ञान प्राप्त थशे अने पोताना अने परना थास्मानो उद्धार करशो; माटे गुणवान् पुरुषोनी सेवना करवी तेज कल्याणकारी ने. तेथीज मनोवांबित फलनी सिक थाय . . . : : ... . . . . इक कहे अक्षर दिये जेह, गुरु जाणी मानीजे तेहा . विहांउत्तर सुणजसउपमार, जेटलो ते लेख विएसार १५ए एक अक्षरनो दाखि मेल, मूरख मंडे बहु मत नेत्र. जोएसूधो जाणविचार, महेसत्य असत्यकरेपरीहार । १६० तेगुरु तेणे गुरू बोलाय, पण ते साधु सुगुरु न कहाय; ; उपगारी गुरु घणे प्रकार, साधु सुगुरु सूधे आचार ॥१६१ पा जे श्रारंजी परिग्रही, ते सूधा गुरु कहिये नहीं; लोहशिलाबोळे जेमनीर, तिमकुगुरुकिमपहुचावेतीर १६५ .. यतः-जह. लोह शिला अप्पंपि बोलए। तहवि लग्गं पुरिसंपि ॥ इश्सारं नो अगुरु । परमप्पाणंच बोले ॥१॥ ' नावार्थ:-जेम लोढानी शिला पोते सूबे ने बीजा जे वळगेला होय तेने पण मूबाडे; तेम विषय, कषाय, श्रारंज, परिग्रहवालो गुरु पोताने अने परप्राणीने संसारचक्रमां बाडे . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगड परीका. (५५) लोकिकग्रंथे जो विचार, तेहपण कुगुरु संग परिहार कौरव पांडवना संग्राम, साख एहनी ले तिण गम॥१६३. .. यतः-गुरोरप्यवलिप्तस्य । कार्याकार्यमजानतः ॥ नत्पथप्रतिपन्नस्य । परित्यागो वि. धीयते ॥१॥ त्यजेधमै दयाहीनं । विद्याहीनं गुरुं त्यजेत् ॥ त्यजेत्क्रोधमुखीं जायाँ । निःस्नेहान् बान्धवान् त्यजेत् ॥५॥ - जावार्थ:-जे गुरु मदथी कटा बनेला होय श्रने कार्य अकार्यनुं जेने नान नथी, वळी उन्मार्ग (अवळे रस्ते ) पोते चाले अने बीजाने पण केवळीए परुपेला धर्मथी भ्रष्ट करावे एहवा कुगुरुनो संग त्याग करवो, कारण के दयारहित जे धर्म होय तेनो स्याग करको अने विद्याहीन (अविद्यावान् ) गुरुनो त्याग करवो, क्रोधमुखी नार्याने त्याग करवी, अने स्नेह वगरना बंधुओने त्याग करवा. जिनशासन पण जो विमास, कुगुरुतणे नविरहियेपास; शेलगतज्यो शिष्यपंचसे, ज्ञाताधर्म कथा जुयो रसे॥१५ घणेसाधेपणतज्योजमालि, जिणे पाड्यो घणलोक जमालि. अंगारमर्दक नामे सूरि, सुसाधु शिष्ये की धो धरि ॥१९५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) श्री सुधर्मगष्ठ परोक्षा घर विषधर सेवीजे साप, कुगुरु सेवतां बे बहु पाप; जोजो ग्रंथ विचारी करी, राग द्वेषनी मति परिही ॥ १६६ यतः - सप्पे दीछे नासइ । लोन नहु कोइ किंपि प्रस्केइ ॥ जो चयइ कुगुरु सप्पं । हा !! मूढा जति तं दुधं ॥ १ ॥ सप्पो इक्कं मरणं । कुगुरु प्रांताई देई मरणाई ॥ तो वलि सप्पो गहियो । मा कुगुरु सेवणं जद्द ! ॥ २ ॥ : नावार्थ:- सर्पना जयथी माणस ज्यारे दूर नाशी जावे त्यारे लोक पण कर्हे के लें सारु कर्यु, पण जें प्राणी कुगुरुरूप सापने त्याग करे तो मूढ प्राणीयों बोले के तें मुंडु कयुँ, पण ते जाणता नथी के सापतो मात्र एक मरण करे अने कुगुरुतो अनंता मरण करावे. पाले क्रिया न साचूं कड़े, ते पण गुरु पदवी नवि लदे; किया विसासिमरा चिस किमेमणिधरसपर्यान दिईजिमे १६७ यतः - बहु गुण विका निलन । सुत्त जासी तहावि मुत्तो ॥ जहवर मशिवर जुत्तो । विग्धकरो विष हरो लोए ॥ १ ॥ जावार्थ:- अनेक विद्यानो जंडार होय, पण जो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगल परीक्षा. (५७) उत्सूत्र परूपनार होय तो मणिजूषित एहवो पण साप जेम विनरूप गणाय, तेम ते गुरु पण मोक्षमारगमा विन कारक जाणीगंडवो. जिम जिम बहुश्रुत बहु परिवार, घणा लोक वंदे अविचार: जो पणनकहे वागमसार, शासननो ते शत्रु विचार ॥१६७ __ यतः-जह जह बहुस्सुन समन्य। सीसगण संपरिवुडोअ॥ अविसार सोय पवयणे । तह तह सिहंत पडिणी ॥१॥ जावार्थ:-जेम जेम बहुश्रुत-घणां शास्त्र जेणे सांजयां ले एवो, अथवा जेणे घणों श्रुतनो अभ्यास कों ने एवो, तथा घणा अज्ञानी लोकोने संमत (इष्ट) एवो, वली शिष्यनां समूहवडे (घणा साधुना परिवारे) परवरेलो , उतां पण जो ते साधुना हृदयमां ते शास्त्र रहस्यनो प्रवेश न थवाथी कोरोने कोरो रह्योतो जेम " चक्रवर्तिनी खीरमां चाटवो (तावितो) पड्यो रहे तोपण खीरनो स्वाद न पामे" तेम वली जेम "न-दीमा कठोर पथरो नेदाय नहि, पाणी अंदर पेसी शके नहि" तेम शास्त्र वांचे पण तेनो रहस्य पामी शके नदि, (एटले अनुनव रहित) ते सिद्धांतनो शत्रु जाणवो. मतलब के तत्वज्ञाननो अनुलवी थो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) श्री सुधर्मगच परीक्षा भएयो होय पण ज्ञानयी यतो सान तेणे मेळव्यो ते मोक्षमार्गनो धाराधक जाणवो. अने बहुश्रुत बतां तत्व झाननोखान न मेखव्यो (न पाम्यो) ते विराधकजाणवो. शरणांगतनुं शिर जे झुणे, ते पाये पातक घणे; तिमश्राचारज पण जाणवो,उसूत्रनाषी मन थाणवो॥१६ए । यतः-जह सरणमुवगयाणं । जीवाणं नि. किंतए सिरे जोठ ॥ एवं आयरिन विहु । नस्सुतं पन्नवितोय.॥१॥ . लावार्थ:-जयजीत प्राणी शरणागत थयो बता शरणे न राखतां तेज माणसनुं जेम गर्बु कापे, तेम देशना देनार उत्सूत्र (सूत्र विरुक) परूपणा करनार थाचार्य पण तारवाने बदले बुडावनार अने अनंत नव ब्रमणमा नांखनार जाणवो. कोपण माणस गफलतथी गुनेहगार थवाथी, या सबल माणसथी पोताना बचाव सारु उत्तम माणसना शरणे जाय , ने तेज मा. पास पोतानुं जान जूली ते शरणागतनुज माथु कापी नाखे तो “जेनी वाड तेनी धाड" ए न्याय थाय; तेम कोश्क प्राणी संसारदावानलथी बचवा सारु धर्माचार्यनुं नाम सांजली तेनी पासे जश्ने अरज करे के, हे नगवन् ! संसारदावानलथी मने शीतल करो श्रने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगड परीक्षा. (एए) सन्मार्ग बताडो, त्यारे आचार्ये ते गोळाजीवने सन्मा. र्गना बदले उन्मार्ग बताडी, पोताना वाडामा दाखल करवामाटे लालचमा नाखी देवाधिदेवनो रस्तो न बतावतां सूत्रविरुष्परूपणा करे के हुं कहुं बुं तेम कर. एम बतावी सम्यक्त्वना बदले मिथ्यास्वमांनाखी धर्मः रूप मस्तक दी नाखे तेवा श्राचार्यनो संग कदी करवो नहि. तो गुरुनामे शुं राचीए, साधु सुगुरुना गुण वांचीए; । गुरुलोप्याथी बीहे जेह, साचा साधु न मुके तेह ॥१७॥ साचे समकित साचे क्रिया, साचे सद्गुरु साचे दया; . साचुं कहे ते साचा सूरि, ते वंदु जगमते सूरि ॥१७॥ जूना नवा तणी वानगी, ए देखाडी एटमा लगी; वळी जे दीसे मत नवनवा, ते पण सूत्रविरुडजाणवा॥१७२ गछाचार तणी चौपाइ, गाथा एकसो तिहुंतेर थ; ए सांजली सौधर्मगबनजो, आपमतिनीसंगति तजो॥१७३ श्म जोक्ने जिनवर आण, सूत्र अर्घ सति करो प्रमाण; : अनिनिवेशमननो परिहो,ब्रह्मकहे जिम शिवसुखवरो॥१७॥ ॥इति श्री शास्त्रविशारद जैनाचार्य श्री ब्रह्मर्षि कृत श्री सुधर्मगनपरीक्षा संपूर्णा ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) श्री सुधर्मगल परीका. ॥(श्रोता परीक्षानी) सजाय ॥ (राग कालंगहो) वरसे पुष्करावर्त सुमेहा । तब पृथ्वी जेदाये नीर। पण एक मगसेलीन नेदाय । अति न्हानो ने कठिन शरीर ॥१॥तिम गुरुवचने किमें न जेदाय । जे प्राणी होय जारी कर्म। कंठ (धुंक) शोष जो अति घणो कीजे । तोय न पामे सूधो धर्म ॥तिम ॥२॥बावनाचंदन गंध तजीने । कसमल ऊपर माखी जाय । परिमल कमलतणो मीने । मेमकमो नित कादव खाय ॥ तिम॥३॥ काले कांबल गुलियलि कापम । चोलतणो नधि बेसे रंग । वायस वान न थाये धोलो । जो नित मोहे यमुना गंग ॥ तिमः॥४॥ चिगटे कुंने जल नवि दे । न रहे काणे लाजन नीर । रवि देखी घूवम हुए थंधो । पान न सहे वसंत करीर ॥ तिम॥ ॥ ५ ॥ मूंग कांगडू कण माहे जेवो । पाणी श्रगनि न बीपे अंस । जव केलव्या न होवे तंबुल । बग सीखव्या न थाये हंस ॥ तिम० ॥६॥ मृगमद अगर कपूरे वास्यो। लसण न पामे रूमो गंध । सूरज शशिहर दीवाजोतें। किमही नवि देखे जात्यंध॥तिम ॥॥ जग्यो चंद चोरने न गमे । मेहें जवासो सूकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - श्री सुधर्मगड परीक्षा. (६१) ज्ञाय । खीर खांम प्रत मीठो नोजन । पेट कतराने न समाय ॥ तिम० ॥ ॥ मीठी प्राख न वायस चाखे । श्वानपुंडमी न समी थाप । थांबानुं वन (करहो) ऊंट चरे नही। अन्याश्ने न गमे न्याय ॥ तिम० ॥ ए॥ खाय न संनिपातियो साकर । पापीने धरमी न सुहाय। रुचे नही चंपो मधुकरने । घुण नित सूको लाकम खाय ॥ तिम॥१॥ गाम समीप नदी मूकीने । रासन राखें खरमे अंग । कुलवंती कामिनी तजीने । नीच करे पर रमणी संग ॥ तिम० ॥११॥नल फीटीने सेलडी न थाये । श्च तणे जो वाधे संग । दूध गुलें जो लीव सींचाये । तोहे मीगे नवि थाय प्रसंग ॥ तिम० ॥१५॥ खीर सर्पमुख न हुवे अमृत । काच कमायो रतन न होय । खारो न टले समुनो नदीयें। मोटे वम फत्र नीरसज होय ॥ निमः ॥ १३ ॥ माथे मणि नितु वहे जजंगम । तोहे ते नव निरविष हंत । रामतणी सेवा करे हनुमंत । लंगोटी अधिको न लहंत ॥ तिम॥१॥ (ढाख-श्री सद्गुरुवचन करे शुं तेहने. ए राग) इम लौकिक संबंध विचारी । लोकोत्तरनी सुणजो वात। चित्रे ब्रह्मदत्त बहु समजाव्यो। विरतितणी नविाणी घात॥श्री सहगुरुवचन करे शुंतेहने ॥१५॥ महावीरनो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६२) श्री सुधर्मगड परीक्षा. शिष्य जमाली। तिहनें नवि लागो उपदेश । कालिगसूरीयो कपिलादासी। गोसालो पामशे कलेस ॥ श्री॥ ॥१६॥ विष्णुकुमारनां वचन सुणीने । नमुचि न मानी काई सीख । मारणहार उदाई नृपनो । बार वरस सगि पाली दीख ॥ श्री० ॥१७॥ शिष्य पांचसे केरो नायक। अंगारमर्दक नामें सूरि । श्रावक परख्यो अजव्य दयाबिणु । निर्गुण जाणी कीधो पूरी ॥श्री० ॥१॥ संवेगी सावद्याचारज । सूत्र विरुष्क तिणें कह्यो विचार । नागिल बंधव बहु समजाव्यो । सुमतिए कुगुरु न तज्या खगार ॥ श्री० ॥१॥ शीलसनाइ रिषिये प्रतिबोधी। रूषीये नवि काढ्यो साल । वरस पंचास तरे तप खस्क. णा । तसु फल म यो एके बाल ॥ श्री० ॥॥ ईसरने मन धर्म न जेद्यो । रजा महासतीने थयो रोग । फासू जलथी काया विणसे । श्म नामें घायां बहु लोग ॥ श्री० ॥ १॥ पालककुमर नेमि ज वंद्या। कंडरीक पायो चारित्र । कृष्ण साथै वीर जश्वद्या। फखें फेर थति थयो विचित्र ॥ श्री० ॥ २५ ॥ संगति एहने हुँति रूडी। पुण नवि प्रीव्यो सार विचार । कर्म निकाचित जेहने पोते। ते प्रतिबोध न लहे लगार ॥ श्री-॥२३॥ दृष्टिरोंगें नर जे हुए रातो। जे हुई. दोषी अति घण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगध परीक्षा. (६३) घोर । मूड वचन परमारथ न सहे। विग्रह पमिया वदे कठोर ॥ श्री० ॥२४॥ए चिहुंने धर्म कदेवा बेसे। ते नवि जाणे आगम रीत । कूकरवदनें कपूरज घाले । जे डहपणने न धरे चित्त ॥ श्री० ॥२५॥ लोह वणिग जिम करे कदाग्रह । सूत्र न साचो प्री जेह । लोक प्रवाहे मूंग मेख्दावे । साचो धर्म न जाणे तेह ॥ श्री. ॥१६॥ नारी कर्म घणाने ए परें। हलूकर्म प्री तत. काल । सनतकुमार चिलातीनंदन । थावञ्चासुत गय. सुकुमाल || श्री० ॥२७॥ पर्षद पुरुष जोइने कहियो । धर्म को श्म श्राचारंग । नंदीसूत्रे सीष संजारी। ब्रह्म कहे ज्योज्यो मनरंग ॥ श्री॥२॥ ॥अथ श्री गीतार्थावबोध-कुलकम् ॥ ॥ देशी-सलोकानी.॥ ॥ नमजी केरो कहुं सालोको, एक चित्ते यी सांजळजो लोको.॥ . अथवा चनपाउंद. वीर जीणंदह दुप्प सहतर, निरतो वरते धर्म निरंतर। तेइतणो विच्छेद पयंपे, थागम वयणथकी नविकंपे। पंचमकाले पड्या प्रवाहे, केश कुगुरु जण जणने वाहे । वाध्या कोष लोनकल्लोल,अविभिनेत्रि कीपो हसबोजार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६४) श्री सुधर्मगध परीक्षा श्रावकपमुह परिग्गह ममता, मंडी बहु दीसे गुण गमता। गुणविणुजुजबलगुरुजिमरहिये,अविधिमूलपहेलोएकहीये. तिणि नविलानेसूधो धर्म, काचरतनमिलिया जिमनर्म। पारख जिम परखीने सीजे, धर्मतणो पण जेदन कीजे॥४ किणे कुसंगे कनकमल लागो, पीतलने मूले कांश मागो। इस जेम तट जन्न पिय बंडे, जैसा डोहे डहल म मंडे ॥५ जे अजाण तमु संग न कीजे, गहरि पु केम तरीजे। अंध अजाणपंथकिमदाखे, तिमसुगुरुविण धर्मकुणनाखे अबूह वश्द तूने खंधार, लोकमांहि पण सो विचार। रोग अजाएये उखध कहे, रूषिहत्याफन ते नर खदे॥७॥ इसो जाणि परखी व्योजाण, धर्मतको जिमखहो प्रमाण शब्द नेद जाणे जे अर्थ, ते गीतारथपदे समर्थ ॥॥ बागम बोल्यो शब्द विचार, दसम अंगेजाणो सविचारा तसु विशेष अनुयोगदुवार, जाणीलेजोआगम सुविचाराए नाम पमुहपद जाणे पनर, कूम सत्यपद खहे पटंतर । कूमो अर्थ कहे जाणंतो, अनिनिवेसि नव नमे अणंतो॥१० एह नेदनिरतानविजाणे, ते अजाण किम अर्थ वखाणे । दृष्टिराग उपजे प्रतीत, धर्मतणीनजना तसुचीत ॥११ नेमीविणु परधन व्यवहार, परप्रतीति तिम धर्मविचार । थापणजाणपणो इणकारण, चरणमूल समरथ जवतारण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगच परीक्षा (६५) क्रियावंत पाहेंगीतारथ, अधिको नवियणतारणसमरथ । वीर प्रकास्यो पंचम अंगे, जोश्लेज्यो बेचनंगे ॥१३॥ करे क्रिया सत्य नवि जाणे, आपण बंदे सूत्र पखाणे । देसथकी आराधक कहिये, तासु संगेधर्मनजमा लदिये जाणे सत्य कहे जे साचो, क्रियातणी आचरणा काचो। तेहने देसविराधक जाणो, तासुसंग गुणहाणि म जाणो १५ एक अजाण क्रियानहुपाले, साधुवेस जिनधर्म विटाले। लोह चान बूडंतो बोले, सर्व विराधक मुनिने तोले॥१३॥ संवेगी गीतारथ साचो, तसुदंसण गुरु जाणी राचो। आपण तरे अनेराने तारे, सर्वाराधक वीर विचारे ॥१७॥ - ज्ञानहीन किरिया आमंबर, मंमी मूढ मुसे सेयंबर । बररे मूढते किरिया न होय, विणु मूले तरुडाल मजोय नाणावरण न सम्योनरवीण, जाइतरण सुयनाणिविहीण। इनअदत्त श्रुतवत जे लीजे, इणि चोरी कांकाज नतीजे पुस्तक यांची अर्थ बिमारो, श्रारण वंदे मन हाले। गृहीयका गुरुना अधिकारि,कहो कवणपरिप पिचारि२० जेसुबुझिनृपने ब्रतदीधो, चपनजाणितेणे मन हड कीयो - तिल कारण जाणो अववाय, श्रमणोपासक बोख्यो राय॥ बागम नवसें थैली वरसे, वीर पनी लखीया मनहर्षे । गणि दिवढिये तेण पयट्टे, अपवादे उस्तग्ग न बढे ॥३२ श्रागमन णिवानी परिकेही, पुस्तकविणु जयतां किम गेही Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AN-AAAAAA (६६) भी सुधर्मगध परीक्षा. मुनिसमीपे गृहवासेवसता, अवधे नहु जाएयाश्रुतजणतां। उद्देशादिक क्रिया विशेष, वायण तयणंतर सविसेष। काखग्रहण पूजक ए कीजे, इम बागम अनुजोग सहीजे।। जोणेविधि श्रागम नणिये, तो निश्चे मुनि जणतागणिये। श्रुत धाराधी पहोंचे पार, चोथे अंगे जे श्रुत अधिकार २५ जिहने जे आव्यो अधिकार, ते नजतो नहु लहे धिक्कार। इम मी उपरांग चाले, साल जेम चिरकाल ते साले॥२६ पीपली बांधी कां तुम्हे ताणो, ज्यांसेवक त्यां राय म जाणो साधुसमीपे संजलि श्रुत अर्थ, श्रावक बोल्या तरण समर्थ। असुण्यो अदीगे अजाण्यो, जणजणसाखे अर्थवखाण्यो। ते नर हुस्ये बहुस संसारी, पंचमथंगे लेहु विचारी॥ जे बागम जयवंता संपश, तासु नाव संजलि मन कंप। श्रविधिजणी कूडो जेजाखे, बिहुँमाहि जव एक नराखाए ने निय बंद पडे नहु पासे, वसे सुगुरु गीतारण पासे। पंचमहश्चयनिरता पाले, ज्ञानतणी थाशातन टाले ॥३० सुगुरु संग संजलि संवेगी, विधिशुं श्रुत जणी अनुयोगी गीतारथ पदवी धाराधे, निश्चे ते परमप्पह साधे ॥३॥ कलश-इम बागमवाणी नवियण जाणी, संवेगी. गीयश्य पहं । सूत्रारथ साचो संजलि राचो, जिणधर्में जेम हो सुहं ॥३॥ ॥इति गीतार्थ पदावबोध कुलकम् ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA श्री सुधर्मगड परीक्षा (६७) ॥अथ श्रीविजयदेवसूरिकृत सखाप । ॥धारती सब पूरे करीए ॥ए देशी।। वीर जिनेश्वर पय नमी, कहिस्युं सूत्राचार; एक मने जे करता सही, ना बहिये हो जवसागर पार ॥१॥ सूत्र तइत्त करी सराहो ॥ मत राचो हो गाडरीप प्रवास कुमति कदाप्रद बंडजो, बालोचो हो निजहीयामाह ॥ सूत्रम् ॥२॥ सूत्र विरुरू जे दाखियो, पासथानी रीति। ते सांजळीने टाळजो, जिनशासने हो ये जेहने प्रीति ॥ सूत्र० ॥३॥ शीलवती राजीमती, सकस महाव्रतधार; साधु न दे तेहने, आराधे हो कर भवति नार ॥ सूत्रः॥४॥ पडिकमायामांहि किम करे, साधु देवी श्राधार डाला का गेलो तुमे, पतो पहियो हो गडाचार ॥ सूत्र ॥५॥ यक देवीनी घुइ कही, अवग्रह मागे जोय, सिर्षे उपाभ जे रहे, जिनशासनी हो साधु न होय ॥ सूत्र॥६देवीनो काससग्ग करे, मन चिंते नवकार; अन्य निमंत्री अधरने, जीमारे हो ए कषण भाचार ॥सूत्रः॥७॥ इह. मोकारथि: काउसग्ग, नाजे जिनवर थाण, च्याम्मे सुखदायिनी, कांश बसपाहो खेत्र देवी सुजाण ॥ सूत्र०॥७॥पडि. कमणे थासोश्ये, जे कांश कर्यो मिथ्यात; जो सहा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) श्री सुधर्मगध परीक्षा. ते दिज मांडीये, तो जेलीए हो वचनाग न बात सूत्र || || जिनवरना श्रावक थया, आणंदादिक जेय; ए नमोईत सिद्धा विना, किम करता हो व्यावश्यक तेय ॥ सूत्र ॥ १० ॥ नमोई सिद्ध जीणे कर्यो, ए उत्सूत्र अ पार; गट बाहिर ते काढियो, कां लागो हो तुम तेहनी बार || सूत्र ||११|| सूत्र विरुद्ध परंपरा, पासवानी जाण, दुष्ट किया ते गंडतां, मत यो हो मनमांहि काण ॥ सूत्र ॥ १२ ॥ जो पासष्ठा मानीये, कांइ बांडी धनवात; जो परिग्रह ठंडेवो कह्यो, तो करीवो कहां को मिथ्यात ॥ सूत्र ॥ १३ ॥ चैत्यवंदन मुखे उच्चरे, वंदे यक्ष नाण; घणुं किश्यूँ कहिये इहां, दये चेतो हो चतुरसुजाण ॥ सूत्र ॥ १४ ॥ चठमासुं पुनिन दिने, जगवइ अंग विचार; पाखी चउदिति दिनकदी, ते न करे हो किम तरे संसार ॥ सूत्र ॥ १५ ॥ पंचमि पर्व संवत्सरी, बोल्यो श्री जगनाहि; तेह विराधे मठपती, ए रुलसे हो जवसागरमांहि ॥ सूत्र ॥। १६ ।। पासवानी परंपरा, जो मानी से याज; तो पंचमहाव्रत जांजवा, एपि कारण हो किम सरस्ये काज ॥ सूत्र० ॥ ॥ १७ ॥ बोल विरुद्ध घणा इस्या, नही कहणनो जोग; तिलमांहिं काला केटला, ते जोसें दो जे पंडित लोग < Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगन्छ परीक्षा: ( ६ ) ॥ सूत्र ॥ १० ॥ खोटे मूलमे मठपती, लोक मुसे नितदीत; ते दित कारण में कह्यो, मत घायो हो कोइ मनमें रीस ॥ सूत्र ॥ १९ ॥ गष्ठाचार अनेक बे, ते जाणे सह कोर; श्री जिन सूत्र याराधज्यो, जीम तुमने हो अविचल सुख होइ ॥ सूत्र ॥२०॥ श्री विजय देवसूरी इम कहे, पालो श्रागम प्रमाण; सूत्र विरुद्ध बांडज्यो, जीम पामो हो शिवपुर ठाण ॥ सूत्र ॥ २१ ॥ इति सातिशय शक्तिधारक श्रीमद्विजयदेवसूरीणा विरचिता स्वाध्यायैकविंशतिका ॥ भेयसे जवतु ॥ || दृष्टिराग कदाग्रह परिहार हितशिक्षा || ॥ राग प्रजाती ॥ दृष्टिरागे नवि लागीये, बली जागीये चित्ते ॥ मागीए शीख ज्ञानीतणी, इव जांगीये नित्ये ॥ १ ॥ से बता दोष देखे नहि, जिहां जिहां पति रागी ॥ दोष अता पण दाखवे, जिहांधी रुचि जागी ॥ २ ॥ दृष्टिरागे चले चित्तग्री, फरे नेत्र विकराले ॥ पूर्व उपकार न सांजरे, पमे अधिक जंजाले ॥ ३ ॥ वीरजीन जब हुता विचरता, तव मंखली पुत्तो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) श्री सुधर्मगछ परीक्षा. जिन करी जगजने यादों, इहां मोह थति धूनोमा रुहि जंडार रमणी तजी, नजी थाप मति रागो।। दृष्टिरागे जमाली सह्यो, नवी जवजस तागो ॥५॥ वली आचार्य सावध जे, दुङ अनंत संसारो॥ दृष्टिरागे समती पण थयो, महा निशीय विचारो॥६॥ दुए जिनधर्म आशातना, अनाएयु कहे रंगे॥ मंड थागळे जिनवरे, वदी नगव अंगे॥॥ गामना नटने मूर्खनो, मिल्यो जेहवो जोगो॥ दृष्टिराग मिल्यो सेहवो, कथक सेवक लोगो ॥७॥ आपण गोठमी मीठमी, हठीने मन लागे। ज्ञानी गुरु वचन रखीयामणां, कटुक तीरसां वागे। दृष्टिरागे बम उपजे, ज्ञान वधे गुणरागे॥ एहमा एक तुमे श्रादरों, नलो होय जे आगे ॥१॥ दृष्टिरागी कदा मत हुवो, सदा सुगुरु अनुसरजो॥ वाचक जश विजय कहे, हित शिख मन धरजो ॥१॥ ॥अथ कुगुरुनो स्वाध्याय॥ डो नाजी॥ ए देशी॥ शुफ़ संवेगी किरिया धारी, पण कुटिलाइन मूके। बाह्य प्रकारे किरिया पाले, अत्यंतरथी चूके ॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगष्ठ परीक्षा. ( १ ) कपटी कहिया एह जिणंदे, दुष्टनुं नाम न लीजे ॥ ए यांकणी ॥ पीलां कपडां खंने धावली, काख देखाडी बोले ॥ तरुणी सुंदर देखी विशेषे, पुस्तक वांचका खोले || क० ॥ २ ॥ पेंडा देखी काढे पढधो, पडघा मान करावे || खाजां वहोरे खांत करीने, पूरीने वोलि शवे ॥ क० ॥ ३ ॥ ज्ञान मिर्षे उपदेश दइने, सूक्ष्क्ष्क्ष परि राखे || ए कपटीनुं नाम न लीजे, इम उत्सूत्र जे जखेि || क० ॥ ४ ॥ ताल कूटया सार्थे ह्रींडे, भात्रिका ले दश वार | यात्राने मिष एणी परें विचरे, डूर रह्या श्राचार | क० ॥ ५ ॥ पाशेर घीथी करे पार, वली खाये शेर || तोही ताला इणिपरें बोले, उपवासे यावे फेर || क० || ६ || बगवानी परें पगलां मांडे, खाडुं डोढुं जो ॥। महिला सार्थे बोले मीठं, साधुवेष वगोवे ॥ क० ॥ ३ ॥ श्राचारांगे वस्त्रनो जांख्यो, श्वेत मानो पेतें । तेतो मारग डूर्रे मूक्यो, कपडां रंगे देतें ॥ क० ॥ ८ ॥ बाजीगर जेम बाजी खेले, धीवरे मांडी जाल ॥ ते संवेगी सुधामत जाबो, ए सहु श्राल जंजाल ॥ क० ॥ एए ॥ उंचुं घर अगोचर होवे, मासकरूप तिहां कीजे ॥ सुख सातायें पडिले चाले, साधु जन्म फल लीजें ॥ क० ॥ १० ॥ रात जगावे महिला Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७२ ) श्री सुधर्मगष्ठ परीक्षा. मलीने, गावे गीत रसाल ॥ चार कथानां कर्मज बांधे, मनमां थइ उजमाल ॥ क० ॥ ११ ॥ मध्यान्हें महिलानेतेडे, इसीने पूढे वात ॥ खढारमो उपधान वहोतो, श्रम तुम मलशे धात || क० ॥ १२ ॥ तत्र ते कामिनी दसीने बोले, साधुं कहो बो स्वाम ॥ गठवासी गुरु घ्यावीने पढशे, तब तुम जाशे माम || क० ॥ १३ ॥ नीचुं जोश्ने इषि परें जांखे, जवानो खप कीजे ॥ नानी वय बेहजी तुमारी, एक एक गाथा बीजे ॥ क० ॥ १४ ॥ घोटकनी परें पंथें चाले, शंरमां नीचूं जोवे ॥ गमबम गाडांनी पर्रे चाले, जिनशासन ने वगोवे ॥ क० ॥ १५ ॥ रुमाल पाठां रुढां वेचे, जूनां हाथमां काले ॥ तृष्णा तोये किमहि न मूके, वली जाणे कोइ आले ॥ क० ॥ १६ ॥ बकाय जीवनो दाद करावे, ठाम वाम पाप बंधावे || ति तपनुं श्रोतुं लइने, कां मने बहोरात्रे ॥ क० ॥ १७ ॥ कदामा पहेला व्रतनो, एहने लागे दोष ॥ मृषावाद तो पग पग बोले, तेनो न करे शोष ॥ क० ॥ १० ॥ दत्त वस्तु अजाण थइने, साधारण सीरावे || चोथा व्रतनी बात बे मोटी, तेक्ष्मां काम जगावे ॥ कण् ॥ १९ ॥ विधवा पासे ि ल. यइने, काम कुसंगी मागे ॥ वायसनी परें मैथुन सेवे, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगचे परीक्षा. (७३) 1 घोघा व्रतने जागे ॥ क ॥ २० ॥ मैथुन सेवे परिमह माहे, प्रौढा पातक बांधे ॥ रीसजनी परें लोट्या दोंडे, पली उघाडे खांधे ॥ ० ॥ २२ ॥ बै श्रमा दिने अठाई, नाथं भरावे तपसी। महिमा कारण रात्रें खावें, प्रगटे तव होय हांसी ॥ ३० ॥ २३ ॥ नगर पिंडो सीया चइने विरलेज पासध्या थइ बेसे ॥ चोराशी ग बहोरी खावे, मोठा धरमां पेसे ॥ ० ॥ ३३ ॥ सुर्खे मुहपती राखी बोले, धोख करे के चाला || मांदो महि साने समजे, यांखे करे के टीला ॥ क ॥२४॥ ए कपटी नो संग निवारो, जेथे ए प्रेख वगोयो || जेख उद्यापी महा ए जुडो, मनुष्य जन्म फल खोयो || कं० ॥ १५ ॥ आदि की रिहत याचारंजे, उपाध्याय ने साधु ॥ धोले खेसह एम बोले, वारुने आधुं ॥ ० ॥ २६ ॥ मूल पण मिध्यात्व वाले, समजतो नहीं लेश ॥ जिन मतनो मारंग बोडीने, कसही करे विशेष ॥ ० ॥ २७ ॥ आपमतीनो संग तजीने, सांधु वचने रहिये ॥ वाणी पाचकजस एम बोलें, जिनांझा शिर व दिये ॥ ६० ॥ २८ ॥ ॥ अथ श्री साधुगुण सद्या ॥ ॥ विनय करीजेरें जत्रियण जावसुं - ए देशी ॥ ॥ पांचे इंद्रीरे प्रनिस वस करें, पाले नवविधि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) श्री सुधर्मगड परीक्षा सीलोजी, च्यार कषाय न सेवे संयती, लक्षण सहुये सलीलोजी ॥१॥ कहिये मिसस्येरे मुनिवर एहवा, जसु मुख पंकज पेखोजी ॥ तनु रोमंचीरे हियमो न. लसे, विलसे नयण विशेखोजी॥ कण ॥ पंचमहा. व्रत पूरा जे परे, पाले पंच श्राचारोजी ॥ सुमती गु. पतिनीरे बहुली खप करे, गुण उत्तीसे नंमारोजी ॥ का ३॥ माश शियालेजी बहुलो सी पमे, वाय वाप सीतल वायोजी ॥ तपकर पोडेजी सुनमत सेजमी, संयम सरिखो नावोजी ॥क. ४॥ ग्रीषम कालेजी तरुणो रवि तपे, जीव सवि वंजे गंदोजी ॥ सूरज सामीजी ले थातापना, उंची कर बे बांदोजी॥ क०५ ॥ वरषाकालेजी मेला कापमा, जिरमिर वरसे निरोजी ॥ मांस मसादिक परिसह थति घणा, सहे ते साधु सधीरोजी ॥क०६॥ समकित मानसरोवर फिलता, चारित्र वनसंग वासोजी ॥ तप जप संजम स्वामि निरमला, पाले पाले मनने उद्धासाजी ॥क० ७ ॥ बाविस परिसहारे विषमा जे सहे, महीयल करे विहा. रोजी ॥ खिमाखमग लेश मुनिवर कर धरे, उपसम रस जमारोजी ॥ क० ॥ मधुकरनी परें मुनिवर गौचरी, विहरे विहरे सुजतो आहारोजी ॥ ते पण निरस ने वली, थोमलो दीयें दीयें देह.आधारोजी॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्मगड परीक्षा (७५) क० ए॥ तीन प्रदक्षिणा देश वांदस्यु, हियमे श्रानंद प्रोजी ॥ श्रवणे सुपस्युंजी वाणी तसु तणी, चतुर करम दल चूरोजी ॥क० १०॥ करजोडीने वीनवस्यु वली, स्वामी सरणे राखोजी। हियमे सालेरे पापजिके किया, आलोयसुं तुम साखोजी ।। क. ११ ॥ तप पमिवजस्युंजी निरतो निरमलो, छरित करस्यु रोजी ॥ मनह मनोरथ सहुये पूरस्यु, इम नणे श्री विजय देव सूरोजी ॥ क० १५ ॥ ॥अय मुनिगुण सद्याय ॥ ॥लेखरे उतारो राजा भरथरी.-ए राग ॥ पंचमहाव्रत जे धरे । टाले पाप अढारोरे ॥ विविध परिसह जे सहे॥ नव कल्प करे बिहारोरे ॥ एहवा मुनिवर वंदिये। जिम लहिये नवनो पारोरे । केसी गुरु परदेशी जिम ॥ जव पमता दिये श्राधारोरे ॥ श्रांकणी ॥ एहवा० ॥१॥बारे नेदे तप तपे ॥ पाले पंचाचारोरे ॥ निंदक पूजक सम गिणे ॥ जोस न कहे लिगारोरे ॥ एहवा० ॥२॥ को दे वासले ॥ चंदन को लगावेरे ॥ बिडुपर समता मन धरे, जावना बारे नावेरे ॥ एहवा० ३ ॥ चालीस बिहु करी बागला, दोष तजि ले थाहारोर ।। संविनाग मुनिने करे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) श्री सुधर्मगध परीक्षा सुमति गुपति नित धारेारे ॥ पढ्वा० ४ ॥ करम बंध जेथी हुवे, न करे तिसो विवादरें ॥ नवविधि सीले नितु रमे, ए पुरो विधी पादरे ॥ एव०ि ५ ॥ अंग अगियार में जणे, पुरव चज़द विचारेरे || संयमना गुण साधतां वियण पार उतारेरे ॥ एड्वा० ६ ॥ इम अध्ययन पनरमे, साधु तथा गुण दीसेरे ॥ चरणकमल नितु सेदने, श्री ब्रह्मो नमे सुजंगी सरे ॥ एदवा० ७ ॥ इति निष्ठु अध्ययन स्वाध्यायः ॥ ॥ शार्दूलविक्रीडितवृत्तम् ॥ श्री सिद्धार्थनरेंद्र विश्रुतकुल ध्योमप्रवृत्तादयः सद्योषांशु निरस्तस्तरमहामादोभ्धकारस्थितिः ॥ होपकुवादिकौशिक कुलमी तिमलौद दमो जीयादस्खलितमवापंतरणिः श्रीवर्धमानोजिनः ॥ १ ॥ ॥ समाप्तोर्यग्रन्थः ॥ श्रेयसेनूयात् ॥ ॐ शान्तिः ॥ ३ ॥ S Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ अन्य प्रयम खरोदमारनां मुबारक नामो निचे मुजब. આ કન્ય ( જ્ઞાન ) ની આશાતના ન થાય તેમ થતાપૂર્વક સંભાળી રાખો અને અથથી ઇતિ સુધી વાંચવું, વિચારવું, મનન કરવું, શુદ્ધ સાધાપૂર્વક વર્તવું, શં ગુરૂગમથી કાળા ખપ કરે, અને સુધર્મસ્વામીની આજ્ઞાનુસારે જ્ઞાન મેળવી શક ફિલ્મમાં વર્તવાથી આત્મસુખની પ્રાપ્ત થશે. offsu. કચ્છ દેશ. ૨૧ શેઠજી તેરે ભારમલ ૨૦૨ મરહુમ શેઠ, તારેવા મુરજીનાં ધર્મપત્ની બાઈ. પાનજીએ પોતાના પતિની ભાગીરી શે, ઠાકરસી ઘેલા વીધાએ પતાની માટીના ૧૦૧ શા મેણસી યુતના ધપતીએ પાતાના પતિના પુણયા, ૧૦૧ શેઠલાલજી નરસીના માતુશ્રી બાઇ રતનબાઈ, ૧૦૧ એક બાઇએ જ્ઞાનોદ્ધાર માટે ૨૫ શેઠ, વેરસી વીરપાર, ૧૧ બાઇ. જેતબાઈ, નાની ખાખર, ૨૫ બાઈ, ગોમીબાઈ : ૨૫ શાલધાભાઈ ગુણપત, ૨૦ બાઇબલુબાઈ, ૫. શા. વેલજી તેજુ, નાગલપર ર૦૦૮. મુરજી હેમાભાઈ નવાવાસ, . ૧૦૦ શ, પચાણ લખુ mટી લાઇw. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (10) મધર દેશ (મારવાડ ). ૧૦૦ રોઠજી મહાદુરમલજી હુંજારીમલ હીરાલાલ ામપુરીચ્યા. ૧૦૦ શેઠ, રૂવદાનજી શખેચા, ૧૦૦ શેઠ. હુજારીમલજી હીશાલ. ૧૦૦: રોઝ, ‘જૈવતમલજી રામપુરી -૧૦૦ શેડ, ઉદયચંદજી રામપુરીઆ, ગુજરાત દેશ. પારૉડ એચÆામ કસ્તુરચ ૧૧૫ શા. જેાભાઈ એમચ. ૨૬ શા. જગજીવનદાસ મુળચંદ ૨૬ શા. વસ્તારામ ગણેશ, રૂપ શા માહનભાઇ જીવરાજ રૂપ શા. ચુનીલાલ મલુકચંદ ૫૧ શા ફેવ ૫૧ શેઠ, દીપચસાઈ લયન ૫૧ શા છગનલાલ નથુભાઈ ૨૫ શા. કેશવલાલ રતનચ, મંગળજીભાઇ તરફથી ીકામર "3 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat કુંલકત્તા, ,, }} અમદાવાદ, }} ઉનાવા. 23 માંડળ, પાલશુપુર. ખ'ભાત, મહીજ લા વિનતી સાથે લખવાનું કે આ મન્થની પચીસ નકલની અર ખરીદનાર સંગ્રહસ્થાનાં મુખારક નામ જગ્યા સકેાચથી દાખલ કરી શકાયાં નથી, પરંતુ જે સગૃહસ્થાએ નકલા ખરીઢ કરી આ માને ઉત્તેજન આપ્યું છે તેમના ઉપકાર માનવામાં આવે છે. લી પ્રકાશક www.umaragyanbhandar.com Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री गुरुग्यो नमः॥ ॥ शार्दूलविक्रीडितवृत्तम् ॥ नित्यानन्द पद प्रयाण सरणी श्रेयोवनी सारणी संसारार्णव तारणैक तरणी विद्यार्षि विस्तारिणी ॥ . पूण्यांकूरजर प्ररोह धरणी व्यामोह संहारिणी प्रीत्यैकस्य न तेऽखिलाहिरणी मूर्तिमनोहारिणी ॥१॥ ॥श्री जिननावपूजानक्ति परमार्थ स्वाध्याय ॥ रोग रामगिरि ।। श्री जिन जीव सहुनी वेदन, थापण समवड तोले ।। हृदय नयण जन जोवो जुगते, ते हिंसा केम बोले ।। कुगुरुतणे उपदेशे जूला, जोला नक्ति न जाणे ॥ थापी प्रतिमा अरिहंतनावे, अरिहंतनी मति नाणे ॥ साधु नक्ति गृहवासी सरीखी, ए असमजत दीसे ॥ पानी नेत्रि जयो नम नारि, जाणुं विश्वाधिसे ।। || गुरु०॥३॥ प्रथम तीर्थकर संजम लीधे, नूमंडल विदरतो । विणु श्रेयांस अवर जन केरी, न दुइ नक्ति करतां ॥ ॥ कुगुरु० ॥३॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 2 ) पटुकाय मर्दी मुनि कारणे, प्रवचने जक्ति निवारी ॥ मुनिनायक जिनपतिनो इणिपरे, कही कीणे जगति सकारी ॥ कुगुरु० ॥ ४ ॥ ॥ स्वाध्यायार्थलेशो यथा ॥ तत्र प्रथम गाथा उत्तानार्थी | परमिदं रहस्यं ॥ ये के चनाल्पमतय: पंडितमन्याः श्री जिनप्रणीत निरवयोपदेश रहस्यम जानाना वयं यतय इतिख्पापर्यंतः, इत्थं वदंति ते, व्याप्त प्रतिकृतिनक्तिं वयं कुर्मः, ततो यथावद्भक्तिमजानतां जाषासमिति - शून्यानां मतखंडनाय विधिमार्गस्थाप्रनाय यथावजिनजक्तिमकटनाय च, घ्यं प्रयासः ॥ तत्र पूर्वार्धेन जगवतः सदयत्वं कथपित्वा चतुर्थ पदे - उपदेश निश्वयःमरू पितोयथा ॥ ते हिंसा किम - एतावता ए जावार्थ:- जगवंतनो विधिवादोपदेश निरवद्य - हिंसा लेश रहित “ कुगुरु तणे उपदेशे मूल्या, जोला जक्ति न जाणे ॥ थापी प्र तिमा अरिहंतनाचे, अरिहंतनी मति नाणे " एनो भावार्थ लखीये बीये. साधु चारित्रियो जगवंतनी प्रतिमाने निश्चय नय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) मने चित्तेन विषे अरिहंत जाणे, व्यवहारे जिन चैत्य प्रतिमा जाणे (ध्यावे) यत:-“निश्चे विचारि अरिहंत एह-व्यवहार चे गुण रत्न रेह" - एवो नावतो साधु,-जे जगवते दीक्षा सीधी साधु मार्ग आदयों, ए जाणी नमे . जे कारणे साधु नाव स्तंवनो अधिकारी, ते जावस्तवनो अधिकारी साधु जगचंतनी अध्यपूजा करतो, अरिहंतनी जतिनोजाणं केम कहीए? ॥३॥ बीजी गाथाए साधुषको कोश् गृहस्थना सरखी पूजा करे, तो ए असमंजस बीते , ग्रहस्थ पणं त्रीजी निसीहि कीधा पठी अव्यपूजा करता नथी दीसता अवस्था विशेष, अने साधुथका ढुंता अव्यस्तव करे ए विपरीतपणुं ॥२॥ - त्रीजी गाथाए अवस्थाज देखाडे २ ॥ यथा जेवारे श्री आदिनाथनो जन्म दुो तेनारे चोस इंस्नात्र महोत्सव कीधो तेमज राज्यानिषेक पण कीधो. पर जगवते दीक्षा लीधी अनंतर घणे मनुष्ये कन्यारत्न राज्यादिकनी निमंत्रणा कीधी, ते तेनी कीधी पण जक्ति, परं नक्ति कहेवाणी नहीं. श्रेयांसकुमारे शुष Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मान इकुरस दीधो ते जगवते लीधो, एतावता गृहस्था वस्था श्रने चारित्रावस्थानो एटलो अंतर जाणजो॥३॥ ..हवे चोथी गाथाए पूर्वोक्त द्योते जे-काय थारंजी साधुनी नक्ति करवी सिमांतने विषे निवारी, निषेधी, साधु पण श्राधाकर्म जाणी न सेवे तो तीर्थकरदेवने चारित्रावस्थाये शुं कहे ॥५॥ विजयसुरे सूरियाने पूज्या, जिणे रूपे जिन जाणी॥ तिणे रूपे हमणां नहु दीसे, बोले प्रवचन वाणी ॥ ॥कुगुरु॥५॥ सुर श्रनिगमन जोगे समोसरणे, कुसुमपगर सुरेनरिया। नरवरे नगर महोदव बहुखा, जिनवर काजें-न-करिया। ॥कुगुरु०॥६॥ श्रावक साधु तणे अधिकारे, जिनवर संयमधारी॥ व्यवहारे वंदेवा युगतो, खेजो चतुर विचारी ॥ ॥कुगुरु०॥७॥ वामेवामे मरने अधिकारे, अनिगम पंच वखाएयां ॥ तेह विना जे अरिहंत वांदे, तेणे अरिहंत न जाण्या ।। ॥ कुगुरु०॥॥ अर्थ-पांचमी गाथाये विजयदेवताये तथा सूरित पाने जे. रूपे जगन्नाथ जाणी. अनेक प्रकारे प्रतिमानी .. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) पूजा कीधी, त्यां जेणेरूपे कहेतां व्य अरिहंतरूपे जाणी पूजी ॥ एतावता अवस्था विशेष विचारी तेवी. पूजा कीधी, तेणेरूपे हमणां नथी, एतावता हमणां जे महाव्रतधारी साधु तेने वर्तमानकाले तेणे रूपे कहेता ठयारिहंतरूपे नथी ॥ एतावता साधुने व्यवहारे दीक्षावस्था वंदनीय जाणीये डीये. दीक्षावस्थाये अव्य पूजानी विधि नथी दीसती जे कारणे नमुण्थुगंनो अधिकारी जेवारे गृहस्थ हुओ त्रीजी निसीही कीधा पली, तेवारे ते गृहस्थपण अव्य पूजा न करे तो यतिनुं झुं कहे ? ॥५॥ .. श्रही कोइ चालना करेजे जगवंतने समवसरणे देवताये फूलना पगर नर्या, तथा राजाये नगर समरा व्या, ए नगवंतनी व्यपूजा जावावस्थाये दीसे . ते . प्रत्ये उत्तर-ए फूलपगर, नगर समराववादिग्लुिनने अर्थे कांर नहीं, इंहा जगवंतने नोग्य वे नहीं एवं जाणवू ॥३॥ हवे को कहेशे साधुने अठ्यारित वंदनीय बे, तो अव्यपूजानो शो विरोध ? ते उपर कही ये बीये जे श्रावक बने साधु तीर्थंकरदेवे दीक्षा लीधी ते वार पड़ी ज्यवहारे वांदे. एतावता जे उत्सर्गमार्गे प्रतिमाधरा. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिक श्रावक वर्ने , घने साधु ए बेहुने जगवंत चिहुँ निक्षेपे वंदनीय पूजनीय ने. तथापि व्यवहारे दीक्षा खीधा धनंतर वांदे. परमार्थ ए जे प्रत्यक्ष विजयवंत जगवंतने जेम दीक्षा लीधे वांदे तेमज प्रतिमाने विषे अगवंत दीका वस्थाये वांदे, श्रने ते वारे तो अव्यस्त क्नो अवसर नथी दीसतो एबुं जाणवू ॥७॥ जावावस्थानी विधि देखाडीए जीए.-जेवारे नग वंत समवसरणने विषे बेग ने तेवारे जे कोश् गृहस्थ मनुष्य वांदवा श्रावे, तेवारे अलिगम पांच साचवे, सेमा प्रथम श्रनिगमे सचित्तव्य बांडे, हमणां तेहज नावावस्थागणी सचित्तादिके पूजा करे करावे, साध इंता ए विधि जाणीती नथी ॥७॥ गुरुना विरहनणी गुरु थाप्या, तेह सावध सहु टाले ।। जगजीवन जिन नायक आमल, बहयकाय नहु पाले ॥ ॥ कुगुरु०॥ ए॥ न्हाणविशेष कुपुमदी गदिक, जोग योग जो कहीए ॥ हरिहा जिनवर कोइ न अंतर, जबशिव विगते न लहिये ॥कुगुरु० ॥१०॥ साची जगति सुगुरु उपदेशे, अरिहंत चैत्य धाराधे॥ अरिहंतजावे भाव भरि जीपी, ते परमारथ साधे ॥ ॥ कुगुरु० ॥११॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्थः-हवे व्यस्तष विरोध प्रत्यक्ष साधुने दे। खाडे . गुरुने विरहे गुरुनी स्थापना करी ते स्थापना गुरु थागळ क्रियासमस्त साचवे , त्यां सावधपूजा को करतो दीसतो नथी, एतावता ए नावार्थ. मनशु एम जाणे ए साक्षात् संजयधारी गुरु बेगले ते बागल ५ क्रिया करुं बु, तेवारे गुरुनी दीक्षावस्थानी जावना मनमां थावे जे; तेटला माटे त्यां सावध कोइ करतो नथी. तथा गृहस्थ स्थापनाने विषे एम विचारे ए मारा गुरु अव्यपणे वर्चे बे, ते एवं नावतो गृहस्थ अव्यपूजा करतो पण विधि अतिक्रमे नहीं. परं नावावस्थाये अव्यावस्थानी पूजा ए असमंजस. जेम गुरुनी स्थापना तेम अरिंदतनी स्थापना एम विचारवं. ॥ए॥ हवे अव्यावस्था नावावस्था एकपणे विचारतां दोष कहे . स्नान, विलेपन, फूल, दीप, धूपादिक ए समस्त जोगनां अंग दीसे , ने जे अवस्था विशेष कल्पना न करीये तो लोग घने जोग एक सरखोज होय, कांइथंतर नहीं. एम विचारतां परदर्शन थने जैन दर्शनने अंतर कांई नहीं. जेणे कारणे हरिहरादिक देवपणे कहीजे, गृहस्थपणे कहीजे, तेवारे मुक्तावस्था श्रने संसारावस्था एनुं पण अंतर न थाय, एम हकेतां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिथ्यात्वादिक दोष लागे. ते कारणे दीप धूपादि व्यारिहंतने गृहस्थावस्थाये योग्य जाणीये बीये. ग्रहस्थ तथाप्रकारे करता पण दीसे उ. साधुने दीक्षावस्त्राये व्यवहारे वंदनीय जे ते कारणे अव्यस्तवनो अधिकार साधुने जाणीता नथी तथा साधुने निषेधवो पण नथी जाणीतो नाटकादिवत् // 10 // हवे शुद्ध नक्तिनो फल कहे. जे कोइ सुगुरुना उपदेश थकी शक प्रकारे पूजा आणी समाचरे ते संसार तरी मुक्ति परमपद साधे // 11 // एते ऽहतां चैत्य मुदाहरन्ति मुक्यर्थिनिर्मुक्ति निमित्तमय॑म् / पुष्पादिपूजां चरितानुवादैः प्रकाशयन्तो न निषेधयन्ति // 1 // इति स्वाध्यायार्थः // शुनंजूयात् / / संवत् नयनबाण कलावर्षे कार्तिक शुक्ल पंचम्यां लिखिता हेमराजेन. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com