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(४५) यीसुधर्मगड परीक्षा. तोते जुथोचित्तविमास, ममनूलोणवचन विशास॥१४० सुधर्मनी थाचरणा जुर, एहनी परे घनेरी हुश्; सूत्रवचन जोतां घणुं फेर, जेटलो अंतर सरसव मेर।।१४१६ एक कहे वहीये उपधान, एक कहे थविधी निधान; पोसह एक चिहुं पर्व कहे, सदाकाल के सबहे ॥१५शा एक पोसहमा जमण न कहे, जल पीवू पण नवि लइहे। एक थापे जिमवो ने वारि, बहुअंतर पोलह उच्चारि॥१५३ वळी जू जूआ थापे पर्व, बाठम पाखि आदिक सर्व अधिकमासपसण घणा, दिसेजगमांसविगछतणा॥१५४ सामायिक उचरतां नेद, योग नांदिरिधि घणा विजेद; एकदिकतिथिकरेप्रमाण, पडिक्कमणावेताश्कजाण ॥१४५ गणतीयें एक पर्व कहत, पमिलेहण बहु अंतर ढुंत; एक कहे साधु प्रतिष्टा करे, गृही करे का जवा१४६ देव वांदतां अंतर घणा, थुइ तिन्दि ने चारह तणा; पनिकमणे पञ्चखाणे नेद, सहहणाना घणा विजेद॥१४॥ एक कहे नारी न पजे देव, आंतर गुरुवंदन वह नेवा सामायिकउत्तरासंग कहे, वार बे अधिकुंनधि सहहे।१४७ रजोइरणने वली मुहपति, श्रावकने नदि थापे उति; एकनुंकारे पण अंतरो, आपमते ते पण पाचों॥१४ए। एवमादि परि कहुं केटली, जग माहे दीसे जेटली;
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