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( ३३ ) श्री सुधर्मगड परीक्षा.
मुनिट, घणी साविर्ज, घणा श्रावको, घणीं श्राविकार्ड, घणा देवो अने घणी देवीउ, अर्थात चतुर्विधसंघनी सजा वचे जेवी रीते या त्रण अधिकारवालुं पर्युषणाकल्प श्रीमुखयी प्ररूप्युं, तेवीज रीते हुं (जडबा हुस्वामी) पण तमो शिष्यवर्ग ने चतुर्विधसंघ अगामी कहुं हुं. तात्पर्य एज के श्री वीरप्रजुए कई एकलाएज कोइ एकांत खूणानो आश्रय लइ या त्रण वाचना यांची के कही नथी, परंतु चतुर्विधसंघ सम्यक् दृष्टिवंतनी सजामां बिराजमान थइ स्वयं वाणीac aण अधिकार गौतमादि गणधरदेव प्रत्ये प्ररूपेल बे. तथा जेम ते गौतम तथा सुधर्मास्वा
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मीए जेवी रीते ए त्रणे वाचनानने श्रमलमां मूकी तेवीज रीते हुं (नद्रबाहुस्वामी) पण गुरुपरंपराक्रमवडे ते अधिकार न्यूनाधिक कर्या त्रिनाज कहुं हुं. ते त्रण अधिकारवानुं पर्युषणा कल्पनाम अध्ययन 'स' कहेतां प्रयोजनयुक्त, परंतु निरर्थक नहीं. 'सदेवयं' - कहेतां हेतुसहित बे, एटले के जेम गुरुराजने अथवा वडीलोने, २. या व्याख्या टोकामां बे.
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