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॥ श्री सद्गुरुभ्यो नमः ॥ ॥शास्त्रविशारद जैनाचार्य मुनिराज श्रीब्रह्मर्षि कृत
श्री सुधर्मगच्छ परीक्षा॥
(थार्या बंद.) जयति जगदेक मंगल,मपहत निःशेष पुरित घन तिमिरम् ॥ रविबिंबमिव यथास्थित,घस्तु विकाशं जिनेशवचः ॥१॥
॥ चोपाई ॥ वीर नमुं कर अंजनि करी, साधुतणा गुण मन संजरी; साचा धर्म परिक्षाजणी, विगति कहुं कां गछतणी ॥१॥ वीरतणा गणधर श्यार, नव ग तेइतणा श्म धार; पांच गणधरना गड पंच, पंच पंचसय मुणिवर संच ॥२॥ हातणा अहुर सय साध, सत्तम गणधरना श्म लाध; अहमनवम गणधर बे मिलि, साधु उसयलणावे बखी॥३ गह थाउमो ए सुविचार, नवमानो दिव कहुँ विचार; दसम ग्यारम बे गणधार, उसयसाधु तेहनो परिवार॥ इम श्यारे गणधरतणा, नव गछनी जाणो विवरणा; गड एक गुरुनो परिवार, सूत्रपात अंतर अवधार ॥५॥
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