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श्री सुधर्मगई परीक्षा. (१) एहिं नणियं ण वट्टीत अतिकामेळ, ताहे रमा नाणियं, तो अणागय चनडीए पङोसविऊति, आयरिएण जणियं, एवंजवन, ताहे पमबीए पऊोसवियं एवं. (इति निशीथचूर्णो)
जावार्थः-थाषाम मासनी पुनमना दिवसे वर्षाकालसुधि वापरवायोग्य चीजो (उपकरण) तथा डगल, राख विगेरे ग्रहण करी चोमासीपुनमें चोमासीपमिक्षा मणुं कर्याबाद, चोमासीलायक था क्षेत्र के केम? ते विचारमा कोश्ये पुग्युं, तो ते साधु कहे के प्रावण वद पांचम पनि बने ते खरं, तेम करतो जणायु के क्षेत्रमा योग्यता नथी, एम विचारी पांच पांच दिवसनी वृद्धि त्यांसुधि करे के यावत् एकमास थने वीसदिवस एटझे जावा शुदि पंचमीये पर्युषणा करे. शिष्यशंका (प्रभ) कोइ कहेले के वीस दिवसे कहप तथा पांच पांच दिव. सनी वृधिवकल्पस्थापनारीति संघनी बाझाबमे वि. छेद पामी ते केम ? उत्तर.-चूर्णिमांतो विछेदनी वातज जणाती नथी, विछेद एटले फरी तेनी उत्पत्ति संजवे नहिते, अने अद्यापि क्षेत्रादिकनी योग्यता तथाविधन होबाथी तेम बनवा संजवडे, ने चूर्णिकार पण एज विधि
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