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हता, ए मार्गना प्रतापी मजकुर श्राचार्यजी परम विमल वैराग्यधारक साकरोत्तम-विधान् नीवडी वैरागी जनोना मस्तकमोखि समान शोनापात्र गणाया हता. ए सूरिजीए दशाश्रुतस्कंधसूत्रवृत्ति, जंबुद्धीपपन्न तिसूत्रवृत्ति, प्राखीसूत्रवृत्ति, प्रतिमास्थापना प्रबंध, सुमतिनागिनोरास, सैद्धांतिकविचार, उपव्याख्या, स्तवनो, सबायो, कुलक अने प्रस्ताविक काठय वगरे वगरे घणा रध्या एम केटलाएकनी तो श्रवणज साक्षी थापे, (मात्र नेत्रो साक्षी श्राप एटलीज इछा . ) मजकुर श्राचार्यजी विक्रमनी पंदरमी सदीमा विद्यमान हता. तेमणे करेलीत्रणे वृत्तियोने समर्थ गीतार्पोछारा संशोधन करावी श्री संघमा प्रचलित करेखी ठे, अने अनेक गद्यपद्यात्मक लेखो कायम करी चतुर्विध संघने बाजारी कर्या में. ए पोते सौधर्मगलना इता एम अने उपर सखेल सर्व बिना एमना करेंला प्रयो उपरथीज प्रतीति मळे . एजश्रीमा ऐतिहासिक ज्ञान प्रशंसनीय इतुं एम पंण आग्रंथ कही थापेठे थने ते वांचवाथी अकरशः सत्यज जासशे. 'ए आचार्यजी हाल परलोकमां विराजमान बतां तेमना मधुरवचनो था लोकमां विराजमान रही समदृष्टिजीवोने कल्याण बक्षी रहेन भने हवे पी पण बढ़ा करे एवी श्रमारी श्छा है।
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