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श्री सुधर्मगन्छ परीक्षा:
( ६ ) ॥ सूत्र ॥ १० ॥ खोटे मूलमे मठपती, लोक मुसे नितदीत; ते दित कारण में कह्यो, मत घायो हो कोइ मनमें रीस ॥ सूत्र ॥ १९ ॥ गष्ठाचार अनेक बे, ते जाणे सह कोर; श्री जिन सूत्र याराधज्यो, जीम तुमने हो अविचल सुख होइ ॥ सूत्र ॥२०॥ श्री विजय देवसूरी इम कहे, पालो श्रागम प्रमाण; सूत्र विरुद्ध बांडज्यो, जीम पामो हो शिवपुर ठाण ॥ सूत्र ॥ २१ ॥ इति सातिशय शक्तिधारक श्रीमद्विजयदेवसूरीणा विरचिता स्वाध्यायैकविंशतिका ॥ भेयसे जवतु ॥
|| दृष्टिराग कदाग्रह परिहार हितशिक्षा || ॥ राग प्रजाती ॥
दृष्टिरागे नवि लागीये, बली जागीये चित्ते ॥ मागीए शीख ज्ञानीतणी, इव जांगीये नित्ये ॥ १ ॥ से बता दोष देखे नहि, जिहां जिहां पति रागी ॥ दोष अता पण दाखवे, जिहांधी रुचि जागी ॥ २ ॥ दृष्टिरागे चले चित्तग्री, फरे नेत्र विकराले ॥ पूर्व उपकार न सांजरे, पमे अधिक जंजाले ॥ ३ ॥ वीरजीन जब हुता विचरता, तव मंखली पुत्तो
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