________________
श्री सुधर्ममष्ठ परीक्षा.
(१३)
तेना चाव्या मुनिनापाट, जिलेदेखाडी साचि वाट ॥४० चनसठ वर्षे जंबु सिद्ध, बालपणाल शील प्रसिद्ध; थाएं वर्षे वीरथी, स्वयंजव थयो धर्मसारथी ॥ ४१ ॥ प्रतिबूधो जिनप्रतिमादेख, शासनदी पाव्यं सविशेख; मनक शिष्यने काजे कयुं, श्री दशनैकालिक उद्धयुं ॥४२ वीरथकी एकसो सित्तरे, जद्रबाहु गुरुगुणे अवतरे; उवसग्गहरं स्तवन करेत्र, मारी निवारीबे तिपखेव ॥४३ दश निर्युक्ति नवी जिथे करी, सूत्र अर्थ युगता संजरी; बसें चलदवर्षे वली जोय, त्रीजो निन्हव जगमांहोय ॥४४ थाप्यो अव्यक्तवाद विशेष, श्रासादाचार्य सुर देख; बसें पन्नर वर्षे स्युलिनऊ, शील प्रमाणे बड़े बहुजऊ ॥४५ अर्थ थकी पूरव जे चार, गया विधिन तेथी धार; वरस बसें वीसे व्यवधार, चोथो निन्दव थयो विचार ॥४६ थाप्यो शुन्यवाद तिथे जाण, समुछेदनुं सुषी वखाप; वरस बसें ठावीस थया, महावीरने मुगते गया || ४१ पंचम निन्द्रव थयो तेथे समे, वे किरिया वेढ्ने मतिगमे; वीर थकीत्रणसें पांत्रीश, वर्षे थयो का लिकसूरीश ॥४८
विनयवंत शिष्य परिदरी, गयो उज्ज्यनीपुर निंसरी; निगोदनो जेसे कह्यो विचार, इन्द्र फेरव्योव सती द्वार||४९०७ वरस चारसें त्रेपन प्रमाण, चीजो का लिकसूरीश जाण;
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com