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भी सुधर्मगड परीक्षा. (१५) नश्ययं ॥ सम्मत्तचरित्ताइ जुगवं । पुवंचिय सम्मत्तं ॥१॥
जावार्थः-सम्यक्त्व विना चारित्र जे जन्म मरण नाश करनार, ते सम्यक्त्व पाम्याविना चारित्रनो खान थाय नहि, श्रने दर्शन जे सम्यक्त्र ते जे जीवने उदयमां होय त्यां चारित्र होय, अने वखते न पण होय. सम्यक्त्व अने चारित्र बन्नेनो लान थाय तेमां पण प्रश्रम सम्यक्त्वनोज लान अने पनी उत्तम चारित्र नो सान थाय; माटे सर्वज्ञदेवनी थाराधनाथी जे साज जीवने थाय डे, तेमा मुख्य हेतु तो सम्यक्त्वज जाणवं, ते सम्यक्स्व अनंतानुबंधिकषायना नाश थवा. थी सम्यक्त्व परमनिधान जीव पामी शकेले. सम्यक्रम विना चारित्र नथी, अने चारित्र होय त्यां सम्यक्त्वनी जजना, अने बन्नेमां प्रश्रम सम्यक्त्व भने पनी चारित्र होय, माटे सम्यक्त्व विनातो एकडा वगरना मीमां माफक रखमवु निगोदमां थाय ... बसें वीस वर्षे वोरथी, शाखा चार प्रसेनथी ॥५॥ विद्याधर निवृत्ति नागेंड, चोथी साखा नामे चंड निवृत्ति विछि तिये गइ, विद्याधर नागेंज रही ॥६॥ शाखा चन्जतगुंठे नाम, पण नेदनो नविलदिए गम,
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