Book Title: Sudharm Gaccha Pariksha
Author(s): Bramharshi Muni
Publisher: Ravji Desar

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Page 74
________________ AN-AAAAAA (६६) भी सुधर्मगध परीक्षा. मुनिसमीपे गृहवासेवसता, अवधे नहु जाएयाश्रुतजणतां। उद्देशादिक क्रिया विशेष, वायण तयणंतर सविसेष। काखग्रहण पूजक ए कीजे, इम बागम अनुजोग सहीजे।। जोणेविधि श्रागम नणिये, तो निश्चे मुनि जणतागणिये। श्रुत धाराधी पहोंचे पार, चोथे अंगे जे श्रुत अधिकार २५ जिहने जे आव्यो अधिकार, ते नजतो नहु लहे धिक्कार। इम मी उपरांग चाले, साल जेम चिरकाल ते साले॥२६ पीपली बांधी कां तुम्हे ताणो, ज्यांसेवक त्यां राय म जाणो साधुसमीपे संजलि श्रुत अर्थ, श्रावक बोल्या तरण समर्थ। असुण्यो अदीगे अजाण्यो, जणजणसाखे अर्थवखाण्यो। ते नर हुस्ये बहुस संसारी, पंचमथंगे लेहु विचारी॥ जे बागम जयवंता संपश, तासु नाव संजलि मन कंप। श्रविधिजणी कूडो जेजाखे, बिहुँमाहि जव एक नराखाए ने निय बंद पडे नहु पासे, वसे सुगुरु गीतारण पासे। पंचमहश्चयनिरता पाले, ज्ञानतणी थाशातन टाले ॥३० सुगुरु संग संजलि संवेगी, विधिशुं श्रुत जणी अनुयोगी गीतारथ पदवी धाराधे, निश्चे ते परमप्पह साधे ॥३॥ कलश-इम बागमवाणी नवियण जाणी, संवेगी. गीयश्य पहं । सूत्रारथ साचो संजलि राचो, जिणधर्में जेम हो सुहं ॥३॥ ॥इति गीतार्थ पदावबोध कुलकम् ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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