Book Title: Sudharm Gaccha Pariksha
Author(s): Bramharshi Muni
Publisher: Ravji Desar
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(६४) श्री सुधर्मगध परीक्षा श्रावकपमुह परिग्गह ममता, मंडी बहु दीसे गुण गमता। गुणविणुजुजबलगुरुजिमरहिये,अविधिमूलपहेलोएकहीये. तिणि नविलानेसूधो धर्म, काचरतनमिलिया जिमनर्म। पारख जिम परखीने सीजे, धर्मतणो पण जेदन कीजे॥४ किणे कुसंगे कनकमल लागो, पीतलने मूले कांश मागो।
इस जेम तट जन्न पिय बंडे, जैसा डोहे डहल म मंडे ॥५ जे अजाण तमु संग न कीजे, गहरि पु केम तरीजे। अंध अजाणपंथकिमदाखे, तिमसुगुरुविण धर्मकुणनाखे अबूह वश्द तूने खंधार, लोकमांहि पण सो विचार। रोग अजाएये उखध कहे, रूषिहत्याफन ते नर खदे॥७॥ इसो जाणि परखी व्योजाण, धर्मतको जिमखहो प्रमाण शब्द नेद जाणे जे अर्थ, ते गीतारथपदे समर्थ ॥॥ बागम बोल्यो शब्द विचार, दसम अंगेजाणो सविचारा तसु विशेष अनुयोगदुवार, जाणीलेजोआगम सुविचाराए नाम पमुहपद जाणे पनर, कूम सत्यपद खहे पटंतर । कूमो अर्थ कहे जाणंतो, अनिनिवेसि नव नमे अणंतो॥१० एह नेदनिरतानविजाणे, ते अजाण किम अर्थ वखाणे । दृष्टिराग उपजे प्रतीत, धर्मतणीनजना तसुचीत ॥११ नेमीविणु परधन व्यवहार, परप्रतीति तिम धर्मविचार । थापणजाणपणो इणकारण, चरणमूल समरथ जवतारण
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