Book Title: Sudharm Gaccha Pariksha
Author(s): Bramharshi Muni
Publisher: Ravji Desar

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Page 71
________________ श्री सुधर्मगध परीक्षा. (६३) घोर । मूड वचन परमारथ न सहे। विग्रह पमिया वदे कठोर ॥ श्री० ॥२४॥ए चिहुंने धर्म कदेवा बेसे। ते नवि जाणे आगम रीत । कूकरवदनें कपूरज घाले । जे डहपणने न धरे चित्त ॥ श्री० ॥२५॥ लोह वणिग जिम करे कदाग्रह । सूत्र न साचो प्री जेह । लोक प्रवाहे मूंग मेख्दावे । साचो धर्म न जाणे तेह ॥ श्री. ॥१६॥ नारी कर्म घणाने ए परें। हलूकर्म प्री तत. काल । सनतकुमार चिलातीनंदन । थावञ्चासुत गय. सुकुमाल || श्री० ॥२७॥ पर्षद पुरुष जोइने कहियो । धर्म को श्म श्राचारंग । नंदीसूत्रे सीष संजारी। ब्रह्म कहे ज्योज्यो मनरंग ॥ श्री॥२॥ ॥अथ श्री गीतार्थावबोध-कुलकम् ॥ ॥ देशी-सलोकानी.॥ ॥ नमजी केरो कहुं सालोको, एक चित्ते यी सांजळजो लोको.॥ . अथवा चनपाउंद. वीर जीणंदह दुप्प सहतर, निरतो वरते धर्म निरंतर। तेइतणो विच्छेद पयंपे, थागम वयणथकी नविकंपे। पंचमकाले पड्या प्रवाहे, केश कुगुरु जण जणने वाहे । वाध्या कोष लोनकल्लोल,अविभिनेत्रि कीपो हसबोजार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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