Book Title: Sudharm Gaccha Pariksha
Author(s): Bramharshi Muni
Publisher: Ravji Desar

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Page 69
________________ - - श्री सुधर्मगड परीक्षा. (६१) ज्ञाय । खीर खांम प्रत मीठो नोजन । पेट कतराने न समाय ॥ तिम० ॥ ॥ मीठी प्राख न वायस चाखे । श्वानपुंडमी न समी थाप । थांबानुं वन (करहो) ऊंट चरे नही। अन्याश्ने न गमे न्याय ॥ तिम० ॥ ए॥ खाय न संनिपातियो साकर । पापीने धरमी न सुहाय। रुचे नही चंपो मधुकरने । घुण नित सूको लाकम खाय ॥ तिम॥१॥ गाम समीप नदी मूकीने । रासन राखें खरमे अंग । कुलवंती कामिनी तजीने । नीच करे पर रमणी संग ॥ तिम० ॥११॥नल फीटीने सेलडी न थाये । श्च तणे जो वाधे संग । दूध गुलें जो लीव सींचाये । तोहे मीगे नवि थाय प्रसंग ॥ तिम० ॥१५॥ खीर सर्पमुख न हुवे अमृत । काच कमायो रतन न होय । खारो न टले समुनो नदीयें। मोटे वम फत्र नीरसज होय ॥ निमः ॥ १३ ॥ माथे मणि नितु वहे जजंगम । तोहे ते नव निरविष हंत । रामतणी सेवा करे हनुमंत । लंगोटी अधिको न लहंत ॥ तिम॥१॥ (ढाख-श्री सद्गुरुवचन करे शुं तेहने. ए राग) इम लौकिक संबंध विचारी । लोकोत्तरनी सुणजो वात। चित्रे ब्रह्मदत्त बहु समजाव्यो। विरतितणी नविाणी घात॥श्री सहगुरुवचन करे शुंतेहने ॥१५॥ महावीरनो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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