Book Title: Sudharm Gaccha Pariksha
Author(s): Bramharshi Muni
Publisher: Ravji Desar

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Page 66
________________ (५७) श्री सुधर्मगच परीक्षा भएयो होय पण ज्ञानयी यतो सान तेणे मेळव्यो ते मोक्षमार्गनो धाराधक जाणवो. अने बहुश्रुत बतां तत्व झाननोखान न मेखव्यो (न पाम्यो) ते विराधकजाणवो. शरणांगतनुं शिर जे झुणे, ते पाये पातक घणे; तिमश्राचारज पण जाणवो,उसूत्रनाषी मन थाणवो॥१६ए । यतः-जह सरणमुवगयाणं । जीवाणं नि. किंतए सिरे जोठ ॥ एवं आयरिन विहु । नस्सुतं पन्नवितोय.॥१॥ . लावार्थ:-जयजीत प्राणी शरणागत थयो बता शरणे न राखतां तेज माणसनुं जेम गर्बु कापे, तेम देशना देनार उत्सूत्र (सूत्र विरुक) परूपणा करनार थाचार्य पण तारवाने बदले बुडावनार अने अनंत नव ब्रमणमा नांखनार जाणवो. कोपण माणस गफलतथी गुनेहगार थवाथी, या सबल माणसथी पोताना बचाव सारु उत्तम माणसना शरणे जाय , ने तेज मा. पास पोतानुं जान जूली ते शरणागतनुज माथु कापी नाखे तो “जेनी वाड तेनी धाड" ए न्याय थाय; तेम कोश्क प्राणी संसारदावानलथी बचवा सारु धर्माचार्यनुं नाम सांजली तेनी पासे जश्ने अरज करे के, हे नगवन् ! संसारदावानलथी मने शीतल करो श्रने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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