Book Title: Sudharm Gaccha Pariksha
Author(s): Bramharshi Muni
Publisher: Ravji Desar

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Page 65
________________ श्री सुधर्मगल परीक्षा. (५७) उत्सूत्र परूपनार होय तो मणिजूषित एहवो पण साप जेम विनरूप गणाय, तेम ते गुरु पण मोक्षमारगमा विन कारक जाणीगंडवो. जिम जिम बहुश्रुत बहु परिवार, घणा लोक वंदे अविचार: जो पणनकहे वागमसार, शासननो ते शत्रु विचार ॥१६७ __ यतः-जह जह बहुस्सुन समन्य। सीसगण संपरिवुडोअ॥ अविसार सोय पवयणे । तह तह सिहंत पडिणी ॥१॥ जावार्थ:-जेम जेम बहुश्रुत-घणां शास्त्र जेणे सांजयां ले एवो, अथवा जेणे घणों श्रुतनो अभ्यास कों ने एवो, तथा घणा अज्ञानी लोकोने संमत (इष्ट) एवो, वली शिष्यनां समूहवडे (घणा साधुना परिवारे) परवरेलो , उतां पण जो ते साधुना हृदयमां ते शास्त्र रहस्यनो प्रवेश न थवाथी कोरोने कोरो रह्योतो जेम " चक्रवर्तिनी खीरमां चाटवो (तावितो) पड्यो रहे तोपण खीरनो स्वाद न पामे" तेम वली जेम "न-दीमा कठोर पथरो नेदाय नहि, पाणी अंदर पेसी शके नहि" तेम शास्त्र वांचे पण तेनो रहस्य पामी शके नदि, (एटले अनुनव रहित) ते सिद्धांतनो शत्रु जाणवो. मतलब के तत्वज्ञाननो अनुलवी थो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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