Book Title: Sudharm Gaccha Pariksha
Author(s): Bramharshi Muni
Publisher: Ravji Desar

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Page 60
________________ (५३) श्री सुधर्मगष्ठ परीक्षा, पंचांगी मानता पण नथी, आपणा चैत्य तेमांज अव्य थाप, बीजाना देरामां न आप, था थापणा गुरुनंज वांदवा, बीजातो ढींगला ढींगलीसमान तथा होलीना राजा तथा धूलीपर्वसमान जाणवा. पण "पांवकी तलेकी नहीं सूजे भाग मूरखकुं, रसुं कहत तेरे सीरपे बलतुं हे ए न्याय याद तो करो! सकल पंचांगी श्रमे मानीये बीये ! "शुवा राम राम" माफक बोली लोकोने घहेकावी जरमाववा, वली साधु संविझपद धरनार उतां क्षेत्र, पुर, पाटण तथा देश तथा उपाश्रय, धर्मशाला विगेरेमा ममता पोते करे भने श्रावक पासे करावे के थापणी जग्यामां को त्यागी महंत पुरुष होय तोपण वासो वसवा देवो नहीं, परंतु साधु थतां विचार करवो जोश्यके पोतानां घरबार कुटुंब त्यागकरी वळी मुकामनी ममताकरवी ते करवाथी सर्वपरिग्रहत्यागनामना पांचमा महाव्रतनोनंगथाय. वलीअतिगृहस्थपरिचय ते नियम (मर्यादा) थी उपरांत वरते तो प्रथम पहोर तथा बेला प्रहरमां स्वाध्याय पण बनी शके नहीं, वळी स्वेच्छाचार। गुरुसोही थक्ष, आणा जंग करी पोतानी श्छाए साधु साध्वी एकाकी विहार करे ते पण संसार वृधिनुं कारण. एक घर बोडी हजारो घरनी फीकर करवी ते साधुनो आचार नथी, माटे बावालोकना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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