Book Title: Sudharm Gaccha Pariksha
Author(s): Bramharshi Muni
Publisher: Ravji Desar
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(१२) — श्री सुधर्मगछ परीक्षा. उद्यमी वर्ते हे. केटलाएक जिनाज्ञानुं फल प्रवृत्तिमां निरुद्यमी . ए बन्ने वात, हे मुनि ! तारे म थान, एम कुशन (वीरप्रनु) नुं दर्शन . माटे जे पुरुष हमेश गुरुनी दृष्टिमां वर्ततो होय, गुरु प्रदर्शित मुक्ति स्वीकारतो होय, गुरुनुं बहुमान करतो होय, गुरुपर श्रा धरतो होय, गुरुकुलवास करतो होय, ते पुरुष कोने जीतीने तत्व जो शके , अने एवो महापुरुष के जेनुं मन लगार पण सर्वज्ञोपदेशथी बहार जतुं नथी. इत्यादिथापमतिना सक्षण जाण, असूत्र सवतो न करे काण; नवू करे जूनुं बोलवे, आपमति ते निश्चे हुवे ॥३५॥ जूनुं नर्बुजाणेवा जणी, विगत कहुं कांश जे सुणी; ते सांजलि कदाग्रह टाल, सुधी जिननी थाहापाख ॥३६ विरजिनेश्वर थया केवली, तेथी वरस चौदमे वली; जमालिपहेलो निन्दवथयो, कयमाणेकडेउथापीयो ॥३७ सोलम वरसे बीजो जोय, तिष्यगुप्त नामे ते होय; बेल्वे जीव प्रदेशे जीव, ए कीधी स्थापना सदीव ॥३७ वीर वरतता थया ए बेव, मुगति गया पळे कहीशुं देव; बारम वरसे पामी मुगत, गौतम गणधरनी एजुगत.३ए वीसे वर्षे सोहमस्वाम, वीर पडे गया शीवाम;
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