Book Title: Sudharm Gaccha Pariksha
Author(s): Bramharshi Muni
Publisher: Ravji Desar
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(१५) श्री सुधर्मगई परीक्षा, चंचयो जेणे परिचालणी, मतिनेदे ते दीसे गण॥६१ पण जे हुंता साधु अनेक, कुसशाखा नामे सविवेक; ते सामाचारी श्राचार, नेदे नवि प्रीबीय लगार. ॥६॥ वीरथकी एके मारगे, वरस पाठसेंब्यासी लगे; साधुतणे याचारे रह्या, पड़े केटलाएक खहबद्या ॥३३॥ चैत्यवासतो ते श्रादरे, नवकरूपी पण नवि संचरे; खोजे लागे थाप्या घणा, उजमणा तप नवलातणा ॥४ साधुपंथ जे जुगता नही, ते करणी मांड्या सवि सही; मुनिवर मारग दीखोथयो, लोकप्रवाहि वाह्यो थयो।६५ परंपरा थापी बहुपरे, ते हिव जीतमांहि विवहरे, पण जे जीततणा के प्रकार, ते जोवु मन करी विचारा॥६६ एक जीत पासत्था करे, साधुसंवेगो एक श्राचरे; विहां जीत पहेलो परीहरो, बीजा उपर आदर करो॥६७ तोपण साधु केटला रह्या, देवट्ठीगणीला गुरु लह्या; नवसेंबसीवरसजोथया, सूत्रविचिनियेतोबहुगया ॥क्षणा श्मबहुआगमघटतादेखी, लिख्यालखाव्या ते सविशेखि; परोपगारतणे कारणे, सासन राखेवाने गुणे ॥६॥ संघ मेली शोधे जेटले, काल घणेरो थयो तेटले; ते माटे सूत्रे को जोय, वायण अंतर ए पद होय ।।७।। नवसयतन्नूए दीसई, ए पद प्रगट विचारि जोर;
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